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बुधवार, 29 जुलाई 2020

जीव हत्या क्या है/कुर्बानी/त्याग/समर्पण/शरणागति/सन्यास....?!.....:::अशोकबिन्दु





हमें ताजुब्ब होता है, जब कोई मिलता है और कहता है कि हम आस्तिक हैं।



हमारा हाड़मांस/जाति/मजहब/कुल/धन/लोभ लालच/पद/आदि बल की जब हद खत्म हो जाति है तब गुरु/आत्मा/परम् आत्मा/शाश्वत/अनन्त/आदि के बल की शुरुआत होती है।


हमें किसी से प्यार है ही नहीं। हम तो सिर्फ अपने इंद्रियों की आवश्यकता हो जाओ में जी कर अपना जीवन व्यतीत कर लेना चाहते हैं हमें खुदा से प्रेम नहीं है संसार में किसी बात से प्रेम नहीं है हमारे अंदर अभी प्रेम घटित ही नहीं हुआ है हमारे अंदर तो अनेक इच्छाएं बलवती हैं हम उन्हीं में मृत्यु तक और मृत्यु के बाद भी उलझे रहते हैं यह उलझना तो सिर्फ सांसारिक है हम कहते तो हैं हम खुदा के बंदे हैं हम आस्तिक हैं लेकिन वास्तव में हम चाहते क्या हैं हमें क्या खुदा से प्रेम है हमारे स्तर हैं स्थूल ,सूक्ष्म व कारण।
कोई हमसे पूछता है कि आप अपने इस जीवन में जीवन से क्या पाना चाहते हैं किसी का जवाब नहीं है खुदा किसी का जवाब नहीं है परम आत्मा इसका मतलब क्या है हमारी ईश्वर भक्ति हमारी धार्मिकता ढोंग और पाखंड है हमारी नजर में कुर्बानी क्या है हमारी नजर में प्यार क्या है हमारी नजर में समर्पण क्या है हमारी नजर में शरणागत क्या है हमारी नजर में संन्यास क्या है ?इसका उत्तर है हम जिस स्तर पर हैं हम जिस सोच में हैं हम जिस नजरिया में हैं हम जिस भावना में हैं हम जिस समाज में हैं उस स्तर से आगे के स्तर पर अपनी सोच अपना नजरिया अपनी भावना अपने विचार आदि को ले जाना।

हम अपने सिर्फ हाड मास शरीरों या फिर हम अपने परिवार अपनी जाति अपने मजहब अपने देश के सिर्फ हाड़ मास शरीरों व इसकी आवश्यकताओं के लिए ही सिर्फ न जीना।
हमें अपना पेट पालना है हमें अपने बच्चे पालने अब अब इसके लिए हम झूठ भी बोलते हैं इसके लिए हम षड्यंत्र रखते हैं लेकिन एक कब तक चलेगा हम सिर्फ हाड मास शरीर नहीं है जगत में जो दिख रहा है वह सिर्फ स्थूल नहीं है वह सिर्फ हमारा जाति मजहब नहीं है हम जो सोच रखते हैं हम जो समझ सकते हैं हम जो नजरिया रखते हैं उसके इस तरह से आगे भी अनेक स्तर हैं अनंत स्तर हैं अरे भाई जीवन को समझो अभी हम मानवता की ओर ही नहीं हैं आत्मा की ओर कैसे होंगे परमात्मा की ओर कैसे होंगे अनंत यात्रा की और कैसे होंगे ऐसे में कुर्बानी कैसी त्याग कैसा समर्पण कैसा शरणागति कैसी सन्यास कैसा हम आगे बढ़ नहीं रहे हैं हम परिवर्तन को स्वीकार नहीं कर रहे हैं हम संसार की वस्तुओं से अपने हाड़ मास शरीर,अन्य शरीर ,शरीरों से संबंध बनाए हुए हैं हम अभी आत्मा की ओर ही नहीं पहुंचे हैं परमात्मा की बात कर रहे हैं यह धोखा है किसी ने ठीक कहा है इस दुनिया में सबसे बड़ा षड्यंत्र है खुदा के नाम से षड्यंत्र ईश्वर के नाम पर षड्यंत्र परमात्मा के नाम से षड्यंत्र।

नैतिकता शिक्षा संतवाणी गुरु आदि के लिए भौतिकता ,इन्द्रिय लालसा,शरीर आवश्यकताओं आदि को नजरअंदाज कर देना।

पार्थ सारथी राज गोपालाचारी ने 'प्यार और मृत्यु' को एक ही कहा है। किसी ने आचार्य का मतलब मृत्यु कहा है? योग का मतलब योग के पहले अंग यम को मृत्यु कहा है? मृत्यु क्या है ?ओशो कहते हैं -मैं मृत्यु सिखाता हूं ।आखिर मृत्यु क्या सिखाता हूं? राजा हरिश्चंद्र किस हद तक पहुंच गए ?कौन था वह दान करता करता स्वयं अभाव में आ गया ?पैगंबर से अपने प्रिय की कुर्बानी करने को कहा गया है ?ये प्रिय क्या है ?हमारा वर्तमान सांसारिक सुख , वस्तुएं हाड़ मास,इंद्रिय आवश्यकताओं आदि प्रति तटस्थ होकर अपने आत्मा, परम् आत्मा के प्रबंधन का साक्षी होना। धर्म स्थलों में जाकर एक दो घंटा परम आत्मा को याद कर लिया और इसके बाद जो मन में आया वह किया कहते हो कि हम खुदा के बंदे हैं हम परमात्मा को मानते हैं इससे क्या ?परमात्मा पर विश्वास है ?खुदा पर  विश्वास है तो उस पर ही छोड़ो। तुम स्वयं जिम्मेदारी क्यों लेते हो ?खुदा की क्या काफिरों पर नहीं चलती ?किसी ने हमारा नुकसान कर दिया ,खुदा के बंदे हो ?उस पर बौखला ना क्या ?हिंसा क्या? खुदा पर छोड़ो सब। सत्य, अहिंसा ,अस्तेय, अपरिग्रह ,ब्रह्मचर्य का मतलब क्या है ?यम का मतलब क्या है ?मृत्यु को जीतना है तो महामृत्यु को स्वीकार कर लो।


हमारे वैश्विक मार्गदर्शक कमलेश डी पटेल कहते हैं -महत्वपूर्ण नहीं है अपने को कौन आस्तिक मानता है या नास्तिक मानता है ?महत्वपूर्ण है कि महसूस क्या किया जा रहा है? अनुभव क्या किया जा रहा है? आगे के स्तरों पर अनंत स्तरों पर क्या यात्रा शुरू हुई है?


प्यार में सभी मर्यादाएं खत्म हो जाती हैं।चाहे कुल मर्यादा हो या लोक मर्यादा सब खत्म। भक्त मीरा क्या कहती हैं-मैंने तो ऐसी लग्न लगाई है जिसमें चाह कर भी मैं कुल मर्यादा व लोक मर्यादा  mनहीं बन्ध पाती।समझो, भाई।हमें तो ताजुब्ब होता है किसी आस्तिक को देख कर?आस्तिक की कोई मर्यादा नहीं, कुल मर्यादा, कुल मर्यादा, जाति मर्यादा, मजहब मर्यादा, धर्म स्थल मर्यादा..... न जाने कितनी मर्यादाएं?बस, आस्तिक मर्यादा छोड़ कर ?हमें ताज्जुब होता है, ऐसे में जब हमें कोई खुद को आस्तिक कहता नजर आता है।



हमारी नजर में हाड़ मास शरीर की जहां से हद खत्म हो जाती है वही से आत्मा का प्रबंधन शुरू होता है।इस हद पर पहुँचना ही त्याग है,कुर्बानी है। इस हद को पार नहीं किए तो आत्मा तक कैसे??फिर परम् आत्मा तक कैसे?



           आत्मा को मानो या न मानो लेकिन कुछ तो है । उसे चाहे कुछ भी नाम दे दो इससे फर्क नहीं पड़ता। महत्वपूर्ण बात हैं, तुम महसूस क्या करते हो? तुम अनुभव क्या करते हैं? हमारे अंदर कुछ तो है, कुछ न कुछ तो है। हम तो उसी को जीवन कहते हैं ।उसको हम हाड मास शरीर, हाड मास शरीरों से भी ऊपर व्यापक और सूक्ष्म मानते हैं। हमारे हाड़मास शरीर की हद जहां पर खत्म हो जाती है वहीं से हमारी सूक्ष्म यात्रा शुरू होती है ।वहीं से हमारी आत्मा की ओर यात्रा शुरू होती है।... और फिर ऐसे में हमारा नजरिया बदल जाता है ।हमारी समझ बदल जाती है, अनेकों भ्रम टूट जाते हैं।

 आत्मा सनातन है उससे जुड़ने से हम साहसी होते हैं इस हार मास शरीर के वृक्ष से पूर्व हम उस आत्मा से जुड़ जाएं उसे अनुभव करने लगे हम देखेंगे कि वास्तव में वही ज्ञान है वही जीवन है वही सर्वत्र व्याप्त है हम स्वत: पूरे जगत से जुड़ जाएंगे। #खुदसेखुदाकीओर  विद्यार्थी जीवन को ब्रह्मचारी जीवन कहा गया था ब्रह्मचर्य जीवन क्यों कहा गया इसलिए ही क्योंकि हम जिसे अंतर्ज्ञान कहते हैं हम जिसे अंतर दीप कहते हैं वह क्या है उसे आत्मा नाम तो या और कोई नाम तो कुछ तो है?ज्ञान से लय हुए बिना विद्यार्थी कैसा?

आत्मा ही हमें सभी से जोड़ता है पूरे जगत से जोड़ता है विश्व बंधुत्व की भावना पैदा करता है #वसुधैवकुटुंबकम की भावना पैदा करता है आत्मा से ही आता है पेड़ पौधों में जगदीश चंद्र बोस के अनुसार जो संवेदना है वह यही आत्मा है हार्टफुलनेस का मतलब क्या है यही ना बचपन से लेकर अब तक अनेक घटनाएं हम भूल चुके हैं अनेक घटनाएं याद भी हैं कौन सी घटना याद हैं वे घटनाएं याद हैं जो हमारे दिल की गहराई तक उतर गई हैं जो हमारे अंदर गहराई तक पहुंच चुकी हैं इसीलिए #हार्टफुलनेसएजुकेशन में कहां जाता 16 वी शताब्दी से जो विकास चला है उसने मानव सभ्यता को विक्षिप्त किया है मानव को मानवता से दूर किया है । #गीता में भी लिखा है आस्था और नजरिया महत्वपूर्ण । वर्तमान विकास अभी तक यहां तक नहीं पहुंचा अफसोस की बात स्कूलों से भी विद्यार्थियों के जीवन से भी शिक्षकों के जीवन शैली से भी ज्ञान के प्रति सच्चाई के प्रति आस्था का नजरिया खत्म हो चुका है।


जीव हत्या क्या है?

आखिर जीव हत्या क्या है जीव हत्या का मतलब सिर्फ हार्मा शरीर को मार देना है लेकिन हमारी दुनिया में जीव हत्या का मतलब इससे भी आगे हमारे लिए आचार्य है मृत्यु हमारे लिए योग का पहला अंग है- यम!यम का मतलब है मृत्यु।
आत्मा शरीर के हद को पार कर सूक्ष्म यात्रा में प्रवेश कर जाना मृत्यु है। ये मृत्यु जीव हत्या है,जीव से भी दूर हो ब्रह्म की ओर बढ़ जाना।





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