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शनिवार, 11 जुलाई 2020

11जुलाई जनसंख्या दिवस::आखिर जनसंख्या को आदर्श बनाने की जिम्मेदारी किसकी:::अशोकबिन्दु

विश्व जनसंख्या दिवस::11जुलाई:::

आखिर सरकारें जनसंख्या को आदर्श, मानवीय बनाने को खर्च ,वातावरण,तन्त्र स्थापित क्यों नहीं करती?यूनेस्को, सँयुक्त राष्ट्र संघ सन2002ई0 में ही मूल्य आधारित शिक्षा की वकालत कर चुका है ।जिस पर अनेक देश 10 साल पहले ही संज्ञान ले चुके हैं।
इस सम्बन्ध में दक्षिण एशिया की स्थिति बड़ी चिंतनीय है। भारत के अंदर इस सम्बंध में सन 2014ई0 से कुछ राज्यों में बातावरण बना है।हम आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, तेलंगना, मध्यप्रदेश, उत्तरांचल, नई दिल्ली आदि राज्यों को धन्यवाद देते हैं।जहां इस पर ध्यान दिया जा रहा है।मध्यप्रदेश सरकार तो इस हेतु अलग से एक विभाग स्थापित कर चुकी है-आनन्द संस्थान। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया आदि कुछ देशों में इसे शिक्षा जगत में अनिवार्य कर दिया गया है।वहां की एक युनिवर्सटी में गीता का अध्ययन भी अनिवार्य कर दिया है। अमेरिकी एक सैन्य बल को गीता का अध्ययन अनिवार्य है।हांगकांग  में गीता के आधार पर मैनेजमेंट में एक पेपर अनिवार्य कर दिया गया है।कलकत्ता विश्व विद्यालय ने प्रेम पर एक पेपर स्नातक स्तर पर अनिवार्य कर दिया है।जिसमें सन्तों की वाणियों का अध्ययन कराया जाता है।
अनेक राज्यों व देश में www.heartfulness.org/education  व हार्टफुलनेस ट्रस्ट सँयुक्त राष्ट्र संघ सूचना केंद्र भारत व भूटान के सहयोग से इस पर कार्य कर रहा है। जिसके अंतर्गत लगभग 3000 से ऊपर शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जा चुका है। राज्यों व देशों को जनसंख्या को आदर्श बनाने हेतु अपने बजट में प्रथम या द्वितीय वरीयता देने की आवश्यकता है।

कहाँ है लोकतंत्र/जनतंत्र?!
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हमें तो हर जगह पर सत्तावाद,पूंजीवाद, माफ़ियावाद, जातिवाद, पुरोहितवाद,सामन्तवाद आदि दिखाई देता है।
आम आदमी के स्वाभिमान, सम्मान, आत्मनिर्भरता आदि को जगाने ,विकास के अवसर की आवश्यकता है। प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर ने कहा था-हमारी सबसे बड़ी धरोहर है देश का नागरिक व प्रकृति।देश के नागरिकों का आत्मसम्मान ,प्रकृति का संरक्षण होना चाहिए।

कैसे भारतीय संस्कृति के संवाहक ? ये क्या है?मानवीय, नैतिक मूल्यों, शिक्षा व्यवस्था, चिकित्सा व्यवस्था ,सेवा भाव, सम्विधान प्रस्तावना आदि के लिए नागरिकों को निशुल्क वातावरण, प्रेरणा, प्रबन्धन, तन्त्र स्थापित करने की जिम्मेदारी आखिर सरकारें क्यों नहीं लेती।किसी देश के स्तर की पहचान उस देश के नागरिकों के आचरण, नजरिया से होती। इजराइल,जापान आदि देश के बच्चों का उद्देश्य क्या होता है?या वह  किस कार्य के लिए तत्पर रहता है?वहां कक्षा सात का बच्चा से जब पूछा जाता है कि वह क्या करना चाहता है?उत्तर होता है-देश सेवा। हमारी सरकारें बच्चों व बच्चों के भविष्य ,शिक्षकों की बेहतर स्थिति के लिए चिंतित नहीं दिखती। सरकार चाहें कोई दल की हो,सब की सब थाना राजनीति, माफियाओं, जातिबलों, मजहब बलों, नशा व्यापार,पूंजीपतियों के चारों ओर मंडराती रहती है। उसकी निगाह इस पर नहीं होती कि हमें देश का भावी नागरिक कैसा चाहिए?अपना काम बनता भाड़ में जाए जनता।

कोरोना संक्रमण के दौरान सब कुछ हो रहा है लेकिन बच्चे नहीं पढ़ रहे हैं। कक्षा 06 तक बच्चों के अध्ययन के स्थिति अति चिंतनीय है। ये ठीक है वास्तव में पाठ्यक्रम ज्ञान पिपासु ,दीवानगी की दृष्टि से विद्यार्थी सिर्फ 02 प्रतिशत ही होते हैं।लेकिन 98 प्रतिशत के लिए वातावरण तो मिलना ही चाहिए। गांधी  कहते थे,वातावरण ऐसा होना चाहिए कि कोई गुंडा मनमानी न कर पाए। वर्तमान में देश के अंदर प्राइवेट  अध्यापको की स्थिति अति चिंतनीय है जिन पर देश की 80 प्रतिशत शिक्षा निर्भर है।
# अशोकबिन्दु



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