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सोमवार, 6 जुलाई 2020

शहर व गांव में सिर्फ पांच ही काफी हैं।बस, उन्हें एक श्रीकृष्ण चाहिए::अशोकबिन्दु

वार्ड, मोहल्ले, नगर, गांव के साहसी कैसे हैं?
वे जातिवाद के खिलाफ नहीं खड़े हो सकते।
वे मजहबवाद के खिलाफ खड़े नहीं हो सकते।
वे नशा व्यापार के खिलाफ नहीं खड़े हो सकते।
वे अपसंस्कृति के खिलाफ नहीं खड़े हो सकते।
वे माफ़ियावाद के खिलाफ खड़े नहीं हो सकते।
वे खाद्यमिलावट के खिलाफ खड़े नहीं हो सकते।

हां, झूठ फरेब, लोभ लालच, आदि के लिए हिंसा तक फैला सकते हैं।जाति मजहब के लिए हिंसा फैला सकते हैं।
उनका किसी को दिया सम्मान भी झूठा होता है।साल में 10 बार एक ही व्यक्ति अच्छा भी और बुरा भी हो जाता है।


ऐसे लोग किसको सम्माननीय हो सकते हैं?
जय गुरुदेव ठीक कहते हैं-देश का भला दिल्ली कर ही नहीं सकती।वर्तमान तन्त्र कर ही नहीं सकता।


आत्म केंद्रित पांच व्यक्ति ही एक नगर एक गांव में काफी हैं।
उनका साहस ही वास्तव में शास्त्रीय साहस पूर्ण होता है। बाबूजी महाराज कहते हैं,आध्यात्म व्यक्ति  को साहसी बनाता है,वही वास्तव में ब्राह्मणत्व व क्षत्रियत्व में होता है।क्यों न वह दुनिया की नजर में ब्राह्मण, क्षत्रिय न हो। एक व्यक्ति के लिए पांच तत्व उसके पांडव है,उसका शरीर द्रोपदी व आत्मा श्रीकृष्ण।




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