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रविवार, 5 जुलाई 2020

अशोकबिन्दु : दैट इज ...?! पार्ट 11

समाज में नितांत अकेलापन!
किसी ने कहा है-धर्म में भी व्यक्ति अकेला। अधर्म में भी व्यक्ति अकेला।
भीड़ सम्प्रदायों के साथ होती है,जातिवाद के साथ होती है।
समाज व  सामजिकता के बीच पूंजीवाद, पुरोहितवाद, सामन्तवाद, सत्तावाद,जातिवाद, माफिया तन्त्र आदि शान से खड़ा है।

भीम राव अम्बेडकर कहते हैं, देश के अंदर सामाजिक लोकतन्त्र व आर्थिक लोकतन्त्र के बिना राजनीतिक लोकतंत्र भी खतरा है।
एक अपराधी व्यक्ति के साथ उसकी जाति या मजहब का खड़ा होना देश के लिए खतरनाक है। देश में कभी अच्छे दिन नहीं आ सकते।


सन 1947 में देश सैकड़ों देशों के रूप में होता यदि सरदार बल्लभ भाई पटेल नहीं होते। देश व विश्व की राजनीति मानव कल्याण ,मानवता के कल्याण की व्यवस्था समाज व आर्थिक स्तर पर नहीं कर सकती।

समाज व देश के ठेकेदार,कानून के रखवाले माफ़ियावाद, जातिवाद, पूंजीवाद, सत्तावाद, पुरोहितवाद आदि के साथ खड़े हैं।
हम सन 1990-91में पहली बार राजनीति के गलियारे में घुसे लेकिन हम अपने को सन्तुष्ट नहीं कर पाए।


आध्यत्म व मानवता ही से सबका कल्याण है।कमलेश डी पटेल दाजी कहते हैं-मानव का आध्यात्मिक विकास की देश व विश्व को शांति में धकेल सकता है। इसके लिए हमें मानवता व विश्व बंधुत्व से शुरुआत करनी चाहिए।

हम बचपन से ही देखते आये है कि समाज व सामजिकता में मानवता हमेशा मुश्किल में रही है। हमारे लिए पुस्तकें व महापुरुषों की वाणियों को महत्वपूर्ण स्थान रहा है। हमें तो अधिकतर इंसान असुर से कम नजर नहीं आये हैं लेकिन ये आध्यत्म ही है जो हमें जीवन जीना सिखाता है।सभी को प्रकृति अंश व ब्रह्म अंश मान कर एकता व सद्भावना का संकेत मिलता है।


सन1994ई0 के 05 अक्टूबर को पहला विश्व शिक्षक दिवस मनाया जाना शुरू हुआ।उसी वर्ष से हम शिक्षण कार्य से जुड़े और शिक्षक समाज को करीब से जानना ही नहीं महसूस करना भी शुरू किया।विद्यार्थी समाज को तो हम पहले से ही जानने व महसूस करने की कोशिश करते रहे। दोनों समाजों से वास्तव मे मुश्किल से 1.98 प्रतिशत ही रुझान या दिल से या heartfulness education में हैं।मुश्किल से heartfulness teacher या heartfulness student हैं।ज्ञान को कोई नजरिया, सोंच,श्रद्धा व आचरण बनाने का हम प्रयत्न करते रहे हैं।ऐसे में ज्ञान के आधार पर चिंतन, मनन, स्वप्न, कल्पना आवश्यक थी।

समाज में नितांत अकेलापन!
तभी ठीक कहा गया है कि धर्म हो या अधर्म ,इसमें कोई अपना नहीं होता,न कोई पराया।सन्त भी ठीक कहते है, न काहू से दोस्ती न काहू से बैर। बेटा पिता,बेटी मां,पति पत्नी ,स्त्री पुरुष, कुल समाज ,देश विश्व ..........आदि सब व्यवस्था है, प्रबन्धन है जो कि मानव जीवन का सुप्रबन्धनात्मक कर्तव्य है जो कि स्थूलतात्मक है।इससे आगे.... सूक्ष्म व कारण प्रबन्धन भी है। परिवार व रिश्तेदारी स्तर पर भी स्थिति चिंतनीय है।जो रिश्तेदार हमसे अधिक धन दौलत, पद आदि से ऊंचे हैं वे हमारे दरवाजे पर आना तक पसन्द नहीं करते या फिर वे अधर्म, अमानवता,गैरकानूनी हरकतों, लोभ लालच,भेद, मतभेद आदि का वातावरण बनाने का प्रयत्न करते हैं।अपराधी व्यक्ति के पक्ष में खड़े दिखते है।

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