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शनिवार, 21 अगस्त 2010

नक्सली कहानी: संघर्ष ��र विराम [क्या कोई है-भ��माशाह,जो कि हमारी इस मानसिकता पर आधारित हमारे अप्रकाशित कहानी संकलन व उपन्यासोँ को प्रकाशित करवा सके.हमेँ ��ोई पारिश्रमिक नहीँ च��हिए.]

चे ग्वेरा,सुभाष चन्द्र बोस,लेनिन,आदि की तश्वीरेँ जंगल के बीच झोपड़ी मेँ टंगी थी.


दो युवक बैठे बातचीत कर रहे थे-



" ललक ने अपने भाई की हत्या कर दी."


" विराम!तुम तो कृष्ण के भक्त हो? क्या नहीँ जानते कि कुरुशान(गीता)मेँ क्या लिखा है?धर्म के रास्ते पर अपना कोई नहीँ होता. "


" अधर्म का भी तो कोई अपना होता है क्या ? "



" हूँ,सच कहते हो-विराम.ललक ने क्या वास्तव मेँ धर्म मेँ जाकर अपने अत्याचारी व विधर्मी भाई की हत्या की या फिर बचपन से सहते आ रहे उपेक्षा,अकेलापन, तनाव,आदि के आखिरी हद के परिणाम स्वरूप समाज मेँ प्रदर्शन के लिए ? "



"जो भी हो.......संघर्ष!यार संघर्ष! बचपन से ही शान्ति सुकून की तलाश मेँ मैँ ' विराम ' कहाँ से कहाँ आ पहुँचा ? कभी कभार सोँचता रहा कि शान्ति का उपाय है-' इच्छाओँ की शान्ति ' ."



"विराम! तुम ऊपर से शान्ति की बात करते हो लेकिन मन से अशान्त हो.मैँ 'संघर्ष'मन से शान्त हूँ. हाँ, यह जरुर है कि मैँ नक्सली ग्रुप मेँ शामिल हो कर ' तथाकथित झूठे कानून रक्षकोँ ' की नजर मेँ अपराधी हूँ लेकिन भ्रष्टाचार व कुप्रबन्धन के खिलाफ संघर्ष से मुझे सुकून मिलता है.असाह्य गरीब मजदूर दुखी आदि लोगोँ की दुआएँ. कानून के रक्षकोँ से ईमानदार सीधे साधे शोषित आदि लोग कितना खुश होते हैँ? और बात है ललक की........."




"हाँ,संघर्ष! ललक की बात हो रही थी."




"पिछले महीने उन्नीस नवम्बर को ललक यादव ने अपने भाई मर्म यादव की हत्या कर दी.क्या गलत किया?पूरा का पूरा शहर उससे परेशान हो चुक था.पुलिस भी खामोश थी."



"तो वो कौन होता था मर्म यादव को सजा देने वाला ?"



"बस, यही सोँच तो देश को कुप्रबन्धन व भ्रष्टाचार के दलदल मेँ फँसाए हुए है.किसी न किसी को कुछ न कुछ तो करना ही होगा."




"तो इसके लिए गाँधीगिरी का भी रास्ता है."




"महत्वपूर्ण उद्देश्य है रास्ता नहीँ .मैँ अभी गाँधीवादी बन जाऊँगा यदि समाज धर्म कानून के ठेकेदार देश की व्यवस्थाओँ मेँ बदलाव करके दिखायेँ.यह लोग भाषण देते है,कागजोँ पर आंकड़े बनाते है लेकिन हम'करने'पर विश्वास करते हैँ."



पुन: -



"विराम! तुम न जाने कितनी बार राज्य सरकार के प्रतिनिधि मण्डल के साथ बात चीत के लिए हम नक्सलियोँ के पास आ चुके हो? युद्द विराम की. घोषणाओँ से सिर्फ कुछ नहीँ होने वाला. कुप्रबन्धन व भ्रष्टाचार के खिलाफ त्याग समर्पण व ईमानदारी कौन दिखाना चाहता है.?और फिर मन, ......जरा रुकना,टीवी पर यह.......हाँ,आज ओशो जन्म दिन है."



एक प्राइवेट टीवी चैनल का किसी पर्वतीय क्षेत्र के ओशो ध्यान शिविर से सीधा प्रसारण था. एक सन्यासी बोल रहे थे-" ओशो चाहते थे कि दुनिया ऐसी हो जाए कि किसी सुकरात ,मीरा को जहर न पीना पड़े , ईसा को सूली न लगे.....हाँ,हर समस्या की जड़ है हमारा मन.मन प्रबन्धन की भी......"



संघर्ष बोल पड़ा -"चाहने से क्या होता है ? आचरण चाहिए.हाँ,यह सत्य है कि मन को बैरागी और शरीय को परहित कर्मशील रखना चाहिए लेकिन, हूँ......इन्सान के सामने ऐसे हालात न आयेँ कि उसके सामने खुदकशी,विछिप्तता या अपराध के सिवा कोई रास्ता न दिखे.(कुछ रुक कर) आखिर फूलन देवी कुख्यात क्योँ न हो ? तब कहाँ सब सो जाते हैँ समाज व कानून के ठेकेदार ? विराम तो सब चाहते हैँ,शान्ति तो सब चाहते हैँ लेकिन आचरण....?! सभी समस्याओँ की जड़ मन तो है ही ,यथार्थ मेँ सभी समस्याओँ की जड़ है-आदर्श व आचरण का एक दूसरे के विपरीत खड़े होना."


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