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शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

15 अगस्त:क्या युवक स्वतन्त्र है?

मंगलवार,10 अगस्त 2010 ! कालेज पहुंचते ही कक्षा 8C की दो छात्राएँ महिमा सिँह व नित्या मिश्रा मेरे पास आकर बोलीँ," सर,आप तो लिखते रहते हैँ.आप क्या इस विषय पर लिख देँगे कि क्या युवक स्वतन्त्र है."



क्या युवक स्वतन्त्र है?इस पर कुछ भी कहने से पूर्व युवक व स्वतन्त्र शव्द को समझना आवश्यक है.शरीर से युवा हुए तो क्या हुए अन्तस से युवा होना आवश्यक है.मन की दशा दिशा सृजनात्मक -सकारात्मक -उत्साहपूर्ण नहीँ तो शरीर से युवा होने से क्या ?



अरविन्द घोष ने कहा है कि आत्मा ही स्वतन्त्रता है.गीता मेँ स्व से अभिप्राय है आत्मा या परमात्मा.हम आत्मा हैँ,हम स्वतन्त्र हैँ.हम सिर्फ शरीर ही नहीँ मन ही नहीँ ,आत्मा हैँ.अरविन्द घोष ने कहा है कि आत्मा ही स्वतन्त्रता है,ठीक ही कहा है.हमारी अब आत्मा से पकड़ दूर हो गयी है.हम शारीरिक व ऐन्द्रिक आवश्यकताओँ के वशीभूत हो कर अपनी स्थिति अर्थात अपनी आत्मा से दूर हो जाते हैँ.


किसी ने कहा है कि मनुष्य कोई न कोई प्रतिभा लेकर ही जन्म लेता है और अपनी प्रतिभा के साथ किसी को समझौता नहीँ करना चाहिए.




आज का युवा वर्ग विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद सिर्फ साक्षरोँ की भीड़ बढ़ाने मेँ सहायक है.ऐसी युवा शक्ति की स्वतन्त्रता के मायने क्या हैँ? विसंगतियोँ से भरा व दृष्टिहीन युवा या सिर्फ भौतिकवादी लालसा मेँ जीने वाला युवा स्वतन्त्रता की ओर अग्रसर नहीँ हो सकता.हाँ;स्वच्छन्दता की ओर अवश्य अग्रसर हो सकता है. जो दस प्रतिशत प्रतिभाशाली युवा हैँ,जिनमेँ वास्तव मेँ दीवानगी है -कुछ कर गुजरने की.वे सब कुप्रबन्धन,भ्रष्टाचार,संसाधन अभाव,पारिवारिक स्तर,अभिभावक सोँच,आदिके रहते अपना मन मार कर रह जाते हैँ. इन्हेँ क्या हम परतन्त्र कहेँगे?कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है.कौन सा ऐसा महापुरुष है जो सिर्फ अपने पैत्रक स्थान पर रह कर यशस्वी हुआ हो?'पलायन' युवा की प्रतिभा के अनुकृल वातावरण खोजने मेँ सहायक हो सकता है.जो साहसी है,वे अपनी प्रतिभा से समझौता न कर स्थान परिवर्तन कर और महापुरुषोँ के जीवन से प्ररेणा ले आगे बढ़ सकते है.



युवाओँ की स्वतन्त्रता या परतन्त्रता सिर्फ व्यक्ति की सोँच व सोँच की दिशा दशा है.हम अपनी क्षमताओँ व प्रतिभा के साथ समझौता न कर त्याग,समर्पण ,दीवानगी, उत्साह के सहारे आगे बढ़ सकते हैँ. हम समाज से प्रेरणा न लेकर महापुरुषोँ से प्रेरणा लेँ.समाज व संसार तो हमेँ उलझाने वाला है.



ग्रन्थोँ,महापुरुषोँ ,आदि सेँ प्रेरणा लेते हुए अपनी क्षमता व प्रतिभा के अनुरूप आगे बढ़ कर ही स्वतन्त्रता की ओर प्रत्यन कर सकते हैँ. वर्तमान के आदर्शपुरुष डा.ए.पी .जे.अब्दुल कलाम के जीवन से हमेँ प्रेरणा लेनी चाहिए.अपनी प्रतिभा से दीवानगी के सामने अपनी सगाई की तिथि तक भूल गये.अपनी धुन या अपनी निजता मेँ जीते हुए महापुरुषोँ से प्रेरणा लेते रहना ही स्वतन्त्रता है.ऐसा होना अधिकतर लोगोँ का असम्भव है.


माया मोह लोभ के वशीभूत होकर काम करने वाला क्या स्वतन्त्र है?ऐसा व्यक्ति क्या शान्ति व सुकून को प्राप्त कर सकता है?इन्सान को अपनी कमजोरियोँ को छिपाने के लिए बहाने बनाना व अन्य पर कमेण्टस या आलोचना आसान हो सकता है लेकिन आत्मसाक्षात्कार दौरान सामने नजर आने वाला अपना कड़ुवा सच झेलने की सामार्थ्य कितनोँ के पास है?अपनी निजता या स्वतन्त्रता को जानने के लिए आत्म साक्षात्कार आवश्यक है.



न जाने कितने विचार मेरे मनस पर हिलोरे मारने लगे थे.सुकरात व ओशो सम्बन्धी दृष्टान्त मेरे स्मृति मेँ आ चुके थे,जिन्होने क्रमश:17 व21 की उम्र मेँ अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा की.


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