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शनिवार, 4 सितंबर 2010

धन्य ! जनता का शासन.

प्रजातन्त्र का मतलब ये नहीँ है कि हर कोई इलेक्शन मेँ खड़ा हो जाए? काहे की संविधान की गरिमा मेँ रहने की शपथ?निष्कर्ष तक जाने की छमता नहीँ.मत मतान्तरोँ मेँ जिए जा रहे हैँ,गुण्डोँ बदमाशोँ आदि को आश्रय दिय जा रहे हैँ,आदि,काहे की संविधान के गरिमा मेँ रहने की शपथ?प्लेटो ने कहा है कि प्रजातन्त्र मूर्खोँ का शासन है.वह भीड़तन्त्र का रुप ध
रण कर लेता है.जिसका कोई धर्म नहीँ होता.पुरानी विचारधारा कि शासक दार्शनिक होना चाहिए.



जिसकी अपनी व्यक्तिगत भूख जागी हुई है,बासना जगी हुई है,जिसका विकास अपने या अपने खानदान या जाति तक ही सीमित है वह क्या करेगा जनता की सेवा? जनता को समूह-समूह,गुट-गुट,जाति-जाति,मजहब-मजहब,आदि मेँ बाँट कर देखने वाले रख सकते हैँ क्या निष्पक्ष सोँच ?



सबसे श्रेष्ठ प्राणी है मनुष्य,लेकिन उसे प्रशिक्षण जरूरी है.विधि साक्षरता के बिना चुनाव लड़ने या वोट डालने की क्या अहमियत?कैसी शपथ ?संविधान के दर्शन को जानते नहीँ, मत मतान्तरोँ के दर्शन मेँ प्रति पल जी रहे है.ऐसे मेँ विभिन्न पदोँ के उम्मीदवारोँ के लिए नारको परीक्षण आदि अनिवार्य किया जाना चाहिए,लेकिन कैसे?संसद विधानसभाओँ मेँ कौन लोग बैठे हैँ?वे ऐसा कभी नहीँ चाह सकते.


किसी भीड़,किसी गुट, किसी एक जाति,किसी एक मजहब,आदि के स्वेर्थोँ के लिए ,वोट बैँक के स्वार्थ मेँ सारे देश , संविधान,आदि के हक प्रति चुप्पी साधने वालोँ का शासन.....?!क्या यही है जनता का शासन...?!धन्य ,भारत का प्रजातन्त्र!


जनता का अनुशासन...?!जनता गुटो भीड़ोँ समूहोँ जातियोँ मजहबोँ आदि मेँ विभक्त है. हर कोई भ्रष्टाचार व कुप्रबन्धन मेँ सहायक बना हुआ है.



5 सितम्बर,शिक्षक दिवस!मैँ कहना चाहूँगा कि शिक्षक वर्ण से वैश्य नहीँ होता, समाज का दिमाग होता है-ब्राहमण होता है. अफसोस,जब ब्राहमण जाति के लोग ब्राह्मण वर्ण के नहीँ नजर आते तो अन्य से क्या उम्मीद रखेँ.अब भी देश को विश्वमित्र,चाणक्य,आदि की आवश्यकता है.


JAI ...HO...OM...AAMEEN.

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