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मंगलवार, 7 मार्च 2023

हमारे ग्रन्थों में ब्राह्मण कौन?क्षत्रिय कौन?#अशोकबिन्दु

तुम अपने को ब्राह्मण,क्षत्रिय समझते हो ,हमें इससे मतलब नहीं है।वास्तव में तुम हमें लगते क्या हो?महसूस क्या होते हो यह महत्वपूर्ण है। फिर भी... श्रीमद्भागवदगीता के 18 अध्याय के 41वे श्लोक में क्या कहा गया है? ब्राह्मणक्षत्रियविशांशुद्राणां च परन्तप । कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभावप्रभवैर्गुनै : ।।४१।। आगे का 42 वां श्लोक ब्राह्मण के गुणों को व्यक्त करता है.. शमो दमस्तपः शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च । ज्ञानं विज्ञानमस्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम् ।।४२।। क्षत्रिय के बारे में क्या कहा गया है? देखें- शौर्यम् तेजो धृतिर्दाक्षयं युद्धे चाप्यपलायनम् । दानमीश्वरभावश्च क्षात्रम् कर्म स्वभावजम् ।।४३।। वास्तव में सत्य क्या है? सत्य यह भी है कि हमारा यह हाड़ मास शरीर ,दिल, दिमाग, आत्मा आदि न हिन्दू है न मुसलमान, न ही किसी जाति - मजहब से लिप्त। समाज में धर्म की बात होती है लेकिन धर्म कहीं नजर नहीं आता।कोई कहता कि भीड़ का धर्म होता ही नहीं। मनु ने धर्म के दस लक्षण गिनाए हैं: धृति: क्षमा दमोऽस्‍तेयं शौचमिन्‍द्रियनिग्रह:। धीर्विद्या सत्‍यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्‌।। (मनुस्‍मृति ६.९२) अर्थ – धृति (धैर्य ), क्षमा (अपना अपकार करने वाले का भी उपकार करना ), दम (हमेशा संयम से धर्म में लगे रहना ), अस्तेय (चोरी न करना ), शौच ( भीतर और बाहर की पवित्रता ), इन्द्रिय निग्रह (इन्द्रियों को हमेशा धर्माचरण में लगाना ), धी ( सत्कर्मों से बुद्धि को बढ़ाना ), विद्या (यथार्थ ज्ञान लेना ). सत्यम ( हमेशा सत्य का आचरण करना ) और अक्रोध ( क्रोध को छोड़कर हमेशा शांत रहना )। यही हिंदू धर्म के दस लक्षण है।
और - हमें बार बार स्मरण में आता है - दुनिया के सभी धर्म छोंड़ कर मेरी शरण में आ। श्रीकृष्ण आखिर ऐसा क्यों कहते हैं? आखिर दुनिया के धर्म छोड़ने की जरूरत क्यों ? हम तो सोंचते हैं कि एक दिन हमें यह दुनिया ही क्या यह शरीर भी छोंड़ कर जाना है।जब हम जा रहें होंगे तो न चाह कर भी जा रहे होंगे? तब हमारे सामने आएगा कि हम जिसे अपना समझते थे वह तो सब छुट रहा है।हमारे पास क्या बच रहा है?हमारी आदतें... हमारी आदतें यह शरीर छुट जाने के बाद भी नहीं छुट पाती ।

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