बस, कलेण्डर/पंचांग बदल रहा है।
आत्मा वही, मन वही... धारणाएं वही.....
परिवर्तन की स्वीकार्यता किस स्तर पर है?
बस, कलेण्डर/पंचांग बदल रहा है।
आत्मा वही, मन वही... धारणाएं वही.....
परिवर्तन की स्वीकार्यता किस स्तर पर है?
नजर भी तीन तरह की होती है-स्थूल, सूक्ष्म व कारण।
इन तीनों में भी प्रथक प्रथक अनेक स्तर हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी एक बार कहा था- पूर्णता की नजर से देखिए।
जगत में जो भी दिख रहा है प्रकृति है। हमारा जीवन भी प्रकृति है। जिसके तीन स्तर हैं-स्थूल, सूक्ष्म व कारण। इसके अलावा दुनिया में जो भी दिख रहा है, वह बनाबटी, कृत्रिम, मानव निर्मित, पूर्वाग्रह, संस्कार, छाप, अशुद्धियां आदि हैं। इसलिए हम कहते रहे हैं-पूंजीवाद, सामन्तवाद, सत्तावाद, पुरोहितवाद, जन्मजात उच्चवाद, जन्मजात निम्नवाद, जातिवाद, मजहब वाद, धर्मस्थलवाद आदि से मुक्त को देखना, सुनना व करना शुरू कीजिए। इसके अभ्यास में रहिए।
अपने को किसी जाति या मजहब या किसी धर्म स्थल से बांध कर यदि जीवन जीते हो तो इसका मतलब है कि आप प्रकृति अभियान के खिलाफ हो,हममें व प्रकृति में जो स्वतः निरन्तर है हम उसके खिलाफ हैं।
अब जो ईसाइयत का विरोध करते है, वे उसमें सनातन को नहीं खोज पाते। अब जब कोई ईसाइयत में सीने पर दोनों ओर छुह कर ,माथे को छुह अपने हाथ को चूमता है तो क्या ये सनातन के खिलाफ है ?अनेक लोगों ने सनातन व धर्म को कर्मकांडों से दूर रखने को कहा है।सनातन व आध्यत्म सुप्रीम साइंस है। जो शरीर के चक्रों व ऊर्जा के बिंदुओं के बारे में परिचित हैं, उन्हें जानकारी होगी उन्हें पता होगा कि हृदय चक्र /अनाहत चक्र के ऊपर भी अनेक बिंदु होते है और दोनों भौहों के बीच भी एक चक्र होता है, जिसे तीसरी आंख भी कहा जाता है।
विद्वानों के हिसाब से भक्ति के दो कारण हैं-भय व अनुशीलन। किसी ने कहा है कि भीड़ का धर्म नहीं सम्प्रदाय व उन्माद होता है।धर्म सिर्फ व्यक्ति का होता है। इससे फर्क नहीं पड़ता कि कोई खुद को नास्तिक मानता है या आस्तिक?अपने को हिन्दू मानता है कि ग़ैरहिन्दू?मुस्लिम मानता है कि गैर मुस्लिम?कबीर पंथी मानता है या गैर कबीर पंथी?आदि आदि।महत्वपूर्ण है कि उसकी दिनचर्या, आदतें, अभ्यास उसे किधर ले जा रहा है? वह क्या अनुभव कर रहा है?क्या महसूस कर रहा है?क्या आचरण कर रहा है?
क्रांतिकारी भगतसिंह के पत्र पढ़िए।वे कहते हैं कि हमारी नास्तिकता को सहज ज्ञान ने ओर मजबूत कर दिया है। हम यथार्थवाद पर विश्वास करते है। योग के आठ अंगो मेँ से पहला यम का पहला चरण-सत्य है।हम कहेंगे कि योग की शुरुआत सत्य से होती है।
हमें ऋषि परम्परा /नबी परम्परा ही सनातन लगती है।जो हमें प्रकृति अभियान से जोड़ती है। हम सब का वर्तमान सत्य सत्य नहीं भ्रम है।भूख, प्यास, झूठ, लोभ लालच, काम, हिंसा, खिन्नता, भेद, ईर्ष्या, जाति, मजहब ,चापलूसी, हाँहजूरी आदि है। हम ने जो शब्द प्रयोग करते हैं उसके पीछे की स्थिति से हम अनजान हैं।उसके सूक्ष्म व कारण से अनजान है। समाज में अनेक शब्द प्रयोग किए जाते हैं। जिनका भाव ही इंसान ने खो दिया है। धर्म वीर भारती ने तो क्राइस्ट, कायस्थ, क्रष्ट, कृष आदि शब्दों की उत्पत्ति प्राचीन मूल आर्य भाषा से ही मानी है।जिसका संकेत आत्मा या आत्मा से जुड़ने से माना गया है।
एक मनोवैज्ञानिक ने तो क्रिसमिस ट्री, कल्प वृक्ष, काम धेनु को हमारे अचेतन मन/अवचेतन मन/हमारी धारणा शक्ति से माना है। मनोवैज्ञानिक बुल्फ़स मैसिंग ने तो पूरा जीवन धारणा शक्ति के प्रयोगों व अनुशीलन पर लगा दिया था। जो अपनी धारणा से दूसरे की भी धारणा बदल देता था।
#अशोकबिन्दु
खुदा व सुप्रबन्धन!!कुछ तो है जिस पर पूरा ब्रह्मांड हावी है?!::अशोकबिन्दु
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राजीव दीक्षित के प्रशंसक कुछ और कहते हैं, व मीडिया कुछ और कहती है!इन सात आठ महीनों में आयुर्वेद,हैम्योपैथी, यूनानी,योग पध्दति में लगे लोगों की सफलता पर मीडिया को कोई मतलब नहीं।
खुद या खुदा... कुदरत व आयुर्वेद आदि!! ऐसे में कुछ लोगों को कोरोना कोरोना एक षड्यंत्र नजर आता है।
हममें भी बार बार विचार कौंधता है चलो ठीक, लेकिन 2019 तक मरने वालों, बीमार होने वालों के आंकड़े उजागर किए जाएं और उसकी वर्तमान कोरोना संक्रमण काल से तुलना की जाए।
हम कहना चाहेंगे कि गीता में महाकाल के विराट रूप के दर्शन पर भी चिंतन कीजिए। अनन्त यात्रा सम्बन्धी पुस्तकों की सामिग्री पर भी चिंतन कर देखिए। अंतरिक्ष की घटनाओं पर विचार कीजिए.....कुछ है जिसमें सब बन्धा है। उसके सामने कोरोना - महाकोरोना की क्या औकात?!
अपनी आत्मा से जुड़िए।
परम्+आत्मा=परम् आत्मा / परमात्मा !!
स्वच्छता, दिनचर्या, फिजिकल डिस्टेंसिंग, योग,आस्था,आयुर्वेद आदि का सनातन महत्व है।
#कोविड20
#राजीवदीक्षित
कोरोना
बस!पूंजीवाद, सत्तावाद, आधुनिक भौतिक भोगवाद,जातिवाद ,किसान विरोधियों, वन्य समाज विरोधियों, दबंग व्यक्तियों, मजहबी व्यक्तियों,एलोपैथी की अति..... आदि का विरोध कीजिए।
हर हालत में मजबूर, शालीन, सच्चे, ईमानदार, गरीब, प्रकृति, जीव जंतुओं, बुजुर्ग व्यक्तियों,महिलाओं, बच्चों, पुस्तकों, महापुरुषों, हर समाज सेवी की कोशिशों, हर अच्छी बातों ,समाज व देश की समस्याएं उठाने वाले हर व्यक्तियों आदि का सम्मान कीजिए।उनका अपमान बर्दाश्त मत कीजिए। जानबूझ कर किसी को कष्ट मत दीजिए। बस, हो गया भजन!हो गयी पूजा।।हो गया धर्म!!
06.06pm-लगभग 11.55pm!!
20दिसम्बर2010ई0
#श्रीअर्द्धनारीश्वरशक्तिपीठबरेली!
चिरस्मरणीय वार्ता व अहसास !!
सत सत नमन!! सत श्री काल! ॐ तत् सत!!
....................................................#अशोकबिंदु
हमारे जीवन के दो रूप सामने आये हैं-स्थूल व सूक्ष्म। कम्प्यूटर के बच्चों के सामने हम इसे हार्डवेयर व साफ्टवेयर कह कर समझते हैं। आचार्य वह है जो समाज में सम रहे और अपनी आंतरिक दशा को बनाए रख सके। जैसे कि हमने गौतम बुद्ध सम्बंधित वीडियो देखी होंगी जहां बुद्ध का व्यक्तित्व हम देखते हैं।कैसे वे शालीन व सौम्य बने रहते हैं हर हालत में।हमारे अभी दो ही रूप अलग अलग मिलते हैं,एक तब जब हम ध्यान में होते है।दूसरा जब हम समाज व समाज के ऊंचनीच,आडम्बर,कर्मकांड में होते हैं। हम अपने इस दूसरे रूप में अस्वस्थ रहे हैं। हमारा स्वास्थ्य है-स्व में स्थित होना।
हम होश संभालते ही अर्थात किशोरावस्था से ही अपने सम कक्ष व्यक्तियों,सहपाठियों,परिवार,आसपड़ोस, रिश्तेदारों,समाज के बीच दोनों रूपों में अलग से रहे हैं।हम उस समय से ही समाज में व्याप्त कर्मकांडों में अरुचिवान रहे हैं। आंख बंद कर या आंख खुले भी स्थूल नजर से दूर हम हम हुए है तो मालिक की कृपा हम किसी अज्ञात,अदृश्य व सूक्ष्म अस्तित्व के अहसास में आये हैं।#कुंडलिनीजागरण सम्बन्धी चिन्तनमनन, अनन्त यात्रा सम्बन्धी चिंतन मनन , गीता के #महाकालविराटरूप का चिन्तनमनन आदि ने हमारी आंतरिक हालात बदली है। युवा अवस्था मे हमारा ध्यान श्रीअर्द्धनारीश्वर स्वरूप की ओर भी गया। जब एक अभ्यासी #कल्पनापाल के माध्यम से हमें सूचित किया गया गया कि हम श्रीअर्द्धनारीश्वर पर कुछ लिखें तो हमारे हालात श्रीअर्द्ध नारीश्वर प्रति चिंतन मनन से और सुधरे। इसके बाद फिर कल्पना पाल के माध्यम से #20दिसम्बर2010 को सायंकाल 06.06pm पर हमारी मुलाकात श्री अर्द्ध नारीश्वर शक्ति पीठ ,बरेली के प्रमुख #श्रीराजेन्द्रप्रतापसिंहभैयाजी ,गली नम 04,सैनिक कालोनी, बरेली में हुई। लगभग पांच घण्टा उनसे वार्ता ही नहीं हुई,उस रात्रि हमने कुछ नए अहसास भी किए।इसके बाद लगभग एक माह श्रीअर्द्ध नारीश्वर पर चिंतन मनन व लेखन से अपने अंतरिक दशा में पहले ज्यादा बेहतरी देखी।
किसी ने कहा कि हमारी कोई मंजिल नहीं है।हमारा तो सिर्फ रास्ता है।जहां निरन्तरता है,विकास शीलता है । अपने पहले रूप स्थूल से क्यों न हम अस्वस्थ रहे हों लेकिन दूसरे रूप से हमने एक यात्रा निरन्तर जारी रखी है।
हम 1998ई0 से #श्रीरामचन्द्रमिशन के साहित्य से भी जुड़े रहे हैं। 25दिसम्बर 2014 को हमने श्रीरामचन्द्र मिशन में पहली सिटिंग (प्राणाहुति/प्राण प्रतिष्ठा) प्राप्त की।
किसी सूफी संत ने कहा है-हमारा धर्म है -#अन्तस्थयात्रा । हम आत्मा या आत्मा के स्थान पर जो भी हो ,को ही सनातन मानते हैं। हमारे अंदर कुछ है जो स्वतः है,निरन्तर है। वह के बिना ये शरीर लाश है। किसी ने कहा है -आचार्य है मृत्यु।कोई कहता है-योग है मृत्यु।कोई कहता है-मैं महा मृत्यु सिखाता हूँ।कोई कहता है- अरे तुम आत्म हत्या करना चाहते थे?आओ हमारे साथ मौन में रहो,हमारे साथ आत्महत्या को सीखो। #बाबूजीमहाराज कहते हैं-अनन्त से पहले प्रलय है।मरने से पहले इस शरीर को लाश बना लो। कोई कहता है-योग का पहला अंग-#यम (सत्य, अहिंसा, अस्तेय,अपरिग्रह,ब्रह्मचर्य) है-मृत्यु।
वास्तव में हम सब कहते तो हैं कि परिवर्तन शाश्वत नियम है लेकिन हमें पता होना चाहिए कि सृजन व विध्वंस भी निरन्तर परिवर्तन का हिस्सा है।हर पल त्याग व स्वीकार्य है।
अन्तरनमन!
#20दिसम्बर2014ई0
पार्थ सारथी राजगोपालाचारी जी की समाधि!
20-27दिसम्बर : गुरु गोविंद सिंह अभियान!
Rajendra Singh
हमारे हमारे भक्त के साथ अन्य कोई शब्द नहीं जुड़ा है। महाभारत कब घटित होता है?! जब दोनों पक्ष-सुरत्व व असुरत्व का घड़ा भरता है। सुरत्व के साथ सिर्फ पांच पांडव- पांच तत्व, आत्मा- कृष्ण ही प्रमुख होता है। दुर्योधन कृष्ण को चाह कर भी नहीं भोग पाता।
जब से हमने होश संभाला, हमारे पढ़ने का उद्देश्य ज्ञान को उपलब्ध होना रहा है।हमारे लिए टेट, सुपर टेट, टॉपर, आई ए एस आदि परीक्षा पास भी महत्वपूर्ण नहीं हो सकते। उसकी तुलना में कोई भिखारी जो मानसिक रूप से सारी कायनात से जुड़ा है।जातिपात, मजहब वाद, जन्मजात उच्चवाद, जन्मजातनिम्नवाद, धर्मस्थलवाद आदि से मुक्त हो अपने चारों ओर व कुदरत में चेतना का अहसास करता है, जगदीश चन्द्र बसु सिद्ध सम्वेदना को सर्वत्र प्रकृति में महसूस करता है, सूक्ष्म शरीरों को महसूस करता है,उसे इधर उधर से प्रकाश कणों, तरंगों आदि का जगत के रूप में प्रकाश का सागर महसूस होता है.....आधुनिक विकास प्रकृति विनाश दिखता है..... वह हमारे लिए महान है।
आधुनिक विकास व तन्त्र मूर्खता पूर्ण है।
"तीन साल में देश के सभी गांव हाई डाटा स्पीड, नेटवर्क से जुड़ जाएंगे।"
धन्य,आपका विकास!?
पूंजीवाद से प्रभावित......
5 जी का असर कुदरत पर क्या पड़ रहा है?
आज से पचास वर्ष पहले जैविक खाद यूज होती थी,स्थानीय खाद यूज होती थी?!पूंजीवाद ने जबदस्ती ,प्रलोभन से किसानों को रासायनिक दवाइयां यूज करने को कहा।अब...
.शोध क्या कह रहे हैं? जंगल कटे.... आदिवासियों, वन्य समाज को प्रभावित किया..कारण पूंजीवाद व सत्तावाद!!?दोषी अब नस्लवाद!?
रूस की क्रांति को पढ़ो!
मिश्र की क्रांति को पढ़ो!!
क्रांति कौन करता है?!उसका कारण कौन है?!
"ईश्वर दूत ही वास्तव में राजा है।"-इसका मतलब क्या है? हमारा विश्वास।हमारा जहां पर विश्वास है वहीं से ही हम आगे बढ़ कर समाज व अपना विकास कर सकते है ।
सन2011-25ई0 का समय महत्वपूर्ण है
जागो, तभी सबेरा।
वे पूंजीपतियों, पुरोहित्वादियों, सामन्तवादियों, सत्तावादियों आदि को नजरअंदाज कर #संविधानप्रस्तावना के आधार पर देश के सभी नागरिकों का भला करने का उम्दा रखते हैं? वही क्या भविष्य में महत्वपूर्ण नहीं होंगे?
असम्भव भी सम्भव कब हुआ है?
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सरदार पटेल, गांधी, दीनदयाल उपाध्याय ,राजीव दीक्षित,अम्बेडकर, कबीर ,लोहिया आदि की मूर्तियां खड़ी नहीं करनी हैं हमें। हमें अपने जज्बात व आचरण में उनकी वाणियां भरनी हैं।
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हमारे वर्तमान उपन्यास-सन2047:47 से पहले47 के बाद! कि कुछ पंक्तियां ।
अरबियों का प्रचीन धर्म कौन सा था ?
येरुश्लम ( ईज़राईल ) जिसको अरबी में "बैत् अल मुकद्दस" यानी कि पवित्र स्थान बोला जाता है । ईसाई, यहूदी और मुसलमान इसे पवित्र स्थान मानते हैं । जिसमें एक ८ लाख दिनार का एक पुस्तकालय है जो कि तुर्की के गवर्नर ने सुल्तान अब्दुल हमीद के नाम पर बनवाया था ।
# इस पुस्तकालय में हज़ारों की संख्या में प्राचीन पाण्डुलिप्पियाँ संगर्हित हैं जो कि ऊँट की झिल्लियों, खजूर के पत्तों , जानवर के चमड़ों पर लिखी हुईं हैं । इनमें अरबी, इब्रानी, सिरियानी, मिश्री भाषाओं में लिखे भिन्न काल के सैंकड़ों नमूने हैं ।
# इनमें ऊँट कि झिल्ली पर लिखी एक पुस्तक है जिसका नाम है "सैरुलकूल" जो कि अरब के प्रचीन कवियों का इतिहास है । जिसका लेखक है "अस्मई" ।
# इस्लाम के इतिहास में जगद्विख्यात बादशाह हुए हैं जो कि अलिफ लैला की कहानियों के कारण प्रसिद्ध हुए हैं । इनका नाम था "खलीफा हारूँ रशीद" आज से करीब 1336 वर्ष पहले ।
# और यही "अस्मई" नामक लेखक खलीफा के दरबार में शोभायमान था जिसने प्राचीन अरबीयों का इतिहास बड़ी मेहनत से अपनी पुस्तक "सैरुलकूल" में लिखा था ।
तो अस्मई ने बादशाह को दरबार में जो लिखा हुआ इतिहास था वह कुछ ऐसे सुनाया :--
(१) मक्का नगर में एक मंदिर था । जिसको सभी अरबवासी पवित्रस्थान मानते थे । वहाँ दर्शन करने को जाने वाले यत्रीयों के साथ बहुत लूटपाट होती रहती थी और कई बार हत्याएँ होती रहती थीं । जिससे कि यात्रीयों की संख्या में कमी ही देखने को मिलती थी तो ऐसे में अरब की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ना ही था । जिसे रोकने के लिए अरब वासियों ने चार ऐसे महीने निश्चित किया जिसे कि "अशहरुलहराम" ( पवित्र मास ) कहा जाता है । इन महीनों में मेला लगता था जिसे कि "अकाज़ " कहा जाता था ।
(२) अकाज़ में कवि सम्मेलन रखा जाता था । दूर दूर से अरबी कवि अपनी कविताएँ ( कसीदे ) पढ़ने के लिए आया करते थे । जिन १० कवियों की कविताएँ सबसे श्रेष्ठ और उत्तम होती थीं । उनको सोने की पट्टियों पर खुदवा कर या फिर ऊँट की झिल्लियों पर या खजूर के पत्तों पर लिखवाकर मक्का मंदिर में सुरक्षित रखा जाता था । और कवि शिरोमणियों को बहुत भारी ईनाम दिए जाते थे ।
(३) ऐसे ही हर वर्ष कवि सम्मेलन होते रहते थे और अरबी कसीदे मक्का के अंदर सुरक्षित रखे जाते थे ।
(४) जब मुहम्मद साहब ने ईस्लाम का झंडा बुलंद करके यहूदियों की खैबर की बस्ती उजाड़ कर मक्का पर आक्रमण किया तो तब वहाँ पर पड़ी 360 मूर्तीयाँ और अरबी कसीदे तहस नहस करवाने शुरू कर दिए । लेकिन मुहम्मद साहब के लशकर में एक "हसन बिन साबित" नाम का अरबी कवि भी था । जो कि साहित्य प्रेमी होने के कारण मुहम्मद साहब के द्वारा हो रहे कसीदों के नाश को सहन न कर सका । और बहुत से बहुमूल्य कसीदे अपने साथ लेकर सुरक्षित मक्का से निकल गया । और उन कसीदों को अपने पास सुरक्षित रखा ।
(५) ये कसीदे "हसन बिन साबित" के देहान्त के बाद उसकी तीसरी पीढ़ी में "मस्लम बिन अस्लम बिन हसान" के पास परम्परा से आए । और उसी समय में बगदाद में एक "खलीफा हारूँ रशीद" नाम का विख्यात साहित्य प्रेमी था । जिसकी चर्चा दूर दूर तक थी । उससे प्रभावित होकर मस्लम ये कसीदे लेकर मदीना से बगदाद रवाना हुआ ।
(६) मसल्म ने वे कसीदे मुझे ( अस्मई को ) दिखाए । जिनकी संख्या 11 हैं । तीन कसीदे तो एक ही कवि जिसका नाम "लबी बिन अख़्तब बिन तुर्फा" के हैं जो सोने के पत्रों पर अंकित हैं । बाकी 8 कसीदे ऊँट की झिल्लियों पर अन्य कवियों के हैं । ये लबी नामक कवि मुहम्मद साहब से 2300 साल पुराना है । { यानि कि आज से 1336 + 2300 = 3636 वर्ष पुराना हुआ }
(७) मस्लम को 'हजरत अमीरुलमोमीन' ने इसके लिए बहुत बड़ा ईनाम दिया है ।
लबि बिन अख़्तब बिन तुर्फा ने जो अरबी शेयर लिखे हैं उनमें से पाँच शेर इस पुस्तक "सैरुलकूल" में लिखे हैं जिनको अस्मई ने बादशाह के दरबार में पेश किया था :-
(1) अया मुबारक -अल- अर्जे युशन्निहा मिन-अल-हिन्द । व अरदिकल्लाह यन्नज़िजल ज़िक्रतुन ।।
अर्थात :- अय हिन्द की पुन्य भूमि तूँ स्तुति करने के योग्य है क्योंकि अल्लाह ने अपने अलहाम अर्थात् दैवी ज्ञान को तुझ पर उतारा है ।
(2) वहल बहलयुतुन अैनक सुबही अरब अत ज़िक्रू । हाज़िही युन्नज़िल अर रसूलु मिन-आल-हिन्दतुन ।।
अर्थात् :- वो चार अलहाम वेद जिनका दैवी ज्ञान ऊषा के नूर के समान है हिन्दुस्तान में खुदा ने अपने रसूलों पर नाज़िल किए हैं ।
(3) यकूलून-अल्लाहा या अहल- अल- अर्ज़े आलमीन कुल्लहुम । फत्तबाऊ ज़िक्रतुल वीदा हक्क़न मालम युनज्ज़िलेतुन ।
अर्थात् :- अल्लाह ने तमाम दुनिया के मनुष्यों को आदेश दिया है कि वेद का अनुसरण करो जो कि निस्सन्देह मेरी ओर से नाज़िल हुए हैं ।
(4) य हुवा आलमुस्साम वल युजुर् मिनल्लाहि तन्ज़ीलन् । फ़-ऐनमा या अख़ीयु तबिअन् ययश्शिबरी नजातुन् ।।
अर्थात् :- व ज्ञान का भँडार साम और यजुर हैं जिनको अल्लाह ने नाज़िल किया है । बस भाईयों उसी का अनुसरण करो जो हमें मोक्ष का ज्ञान अर्थात् बशारत देते हैं ।
(5) व इस्नैना हुमा रिक् अथर नाहिसीना उख़्वतुन् । व अस्ताना अला ऊँदव व हुवा मशअरतुन् ।।
अर्थात् :- उसमें से बाकी के दो ऋक् और अथर्व हैं जो हमें भ्रातृत्व का ज्ञान देते हैं । यो कर्म के प्रकाश स्तम्भ हैं, जो हमें आदेश देते हैं कि हम इन पर चलें ।
अब इन पाँच शेयरों से स्पष्ट है कि लबी नामक कवि वेदों के प्रती कितना आस्थावान था । और उन प्रमाणों को पढ़कर कोई मुसलमान भी नहीं मुकर सकता है क्योंकि वेदों न नाम स्पष्ट आया है । और न हि ये कह सकता है कि ये वो वाले वेद नहीं जिसको आर्य लोग मानते हैं । भारत में ही ब्राह्मणों की पतित शाखा थी जिसको शैख बोला जाता था । वही ईरान होते हुए अरब में बसी है । क्योंकि अरब में घोड़े उत्तम नसल के पाए जाते हैं ( आज भी ) । तो जिस देश में उत्तम घोड़े हों उस स्थान को शैख ब्राह्मणों ने अर्व नाम दिया था । अर्वन् संस्कृत नाम है घोड़े का । और अर्व कहते हैं अश्वशाला को । मुहम्मद साहब के कुछ समय पहले तक अरब में शैवमत, बौद्धमत और वाममार्ग का प्रचार रहा है जिस कारण मुहम्मद साहब को बौद्धों के मूर्तीयों से उग्र घृणा हो गई थी । जिसको उन्होंने बुतपरस्त कहा है । इसका प्रमाण हम अगले लेख में डालेंगे कि मुहम्मद साहब के समय में अरब में कौनसा धर्म प्रचलित था ।
इसमें कितनी सच्चाई है यह तो पुरातत्व विभाग ही जानता है। हमने एक बार लिखा था कि दुनिया के सभी देशों की पुरातत्विक रिपोर्ट भारतीयों के पक्ष में है तो फेसबुक पर एक मुसलमान गालीगलौज करने लगा था।हमने उसको इतना ही जबाब दिया था-मनोविज्ञान जानता है कि गालीगलौज कौन करता है?
#अशोकबिन्दु
बसुधैव कुटुम्बकम!
.................#अशोकबिंदु
सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर!
हमारी सभ्यता व संस्कृति मजहबीकरण नहीं सीखाती।
आज से 600वर्ष पूर्व काबा हो या योरुषलम, रोम हो या वोल्गा .....सन्त परम्परा का मजहबीकरण न हुआ था।कोई भी कहीं आ जा सकता था।
हमारे अपने अपने मकान व झरोखे अलग अलग हो सकते है, आसमान को ताकने का मतलब अपने मकान के झरोखे से सिर्फ चिपक जाना नहीं है। #गुरुनानक हम आसमानी यों ही नहीं हो सकते?हममें आसमानी यों ही नहीं उतर सकता? हमारा ये #शरीरपांच तत्वों से बना है। #आकाश/आसमानी तत्व में हम केंद्रित यों ही नहीं हो सकते?
कक्षा आठ में आते आते हम आत्म अभिव्यक्ति लेखन करने लगे। #किशोरावस्था एक तूफानी दशा होती है। अनेक विकृतियों, छापों, विकारों, प्रतिकूलता आदि के जंगल में #आत्मकेन्द्रण की कोशिसों ने हमें एक अज्ञात/शून्य/आकाश की ओर का आभास कराया है। धर्मस्थलों से जुड़ने के साथ ही प्रकृति के बीच हम आँख बंद कर तुरन्त ही एक अज्ञात आनन्दित दशा के आभास के अस्तित्व की उम्मीद में रहने लगे। इस जीवन तनबल, कुलबल, धनबल, जाति बल, पन्थ बल,जन्मजात उच्चवाद, जन्मजात निम्नवाद आदि के प्रभाव से मुक्त रहे हैं।पूर्व जन्मों का संस्कार था हम होश संभालते ही ध्यान के अनेक क्रियाओं व विभिन्न प्रयोगों से गुजरने लगे।अनुभव में आया कि समाज, समाजिकता से परे स्वतंत्र मन से आत्मकेंद्रित होने से हम आसमानी शक्तियों को अपने अंतर में उतरते देख सकते हैं। गांधी ने कहा है-स्वच्छता ही ईश्वर है। गीता का विराट स्वरूप ,श्री अर्द्ध नारीश्वर अवधारणा, सात शरीर व कुंडलिनी जागरण, अनन्त यात्रा को ओर, नए भारत की खोज,क्रांति बीज आदि पुस्तकों ने हमें समाजिकता से परे मानवता, आध्यत्म की ओर की प्रेरणा को विश्वस्त किया। #शांतिकुंज,#आर्यसमाज,#निरंकारीसमाज आदि का प्रभाव बचपन में रहा ही जहां हम जन्मजात उच्चवाद, जन्मजात निम्नवाद, जाति गत #पुरोहितवाद की भावना से मुक्त होने का अवसर मिला।
धर्म स्थलों में हम आश्रम पध्दति, गुरुद्वारा को ही महत्व देते रहे हैं।साहित्य मजहबी करण, कर्मकांड आदि से मुक्ति युक्त।
वसुधैव कुटुम्बकम!
ये भाव कहाँ से आता है?गीता में #समदर्शी का भाव आता है।#बुद्ध व #महावीर के दर्शन से हमें ये भाव प्राप्त होता है।
हम किस कर्मकांड, जिस पन्थ से जुड़े हैं ये महत्वपूर्ण नहीं है।महत्वपूर्ण है कि हमारा हमारे शरीर व जगत के प्रति क्या नजरिया बन रहा है?
हमारी #धारणा अति महत्वपूर्ण है।
हमारी धारणा सार्वभौमिक ज्ञान हो। #सहजमार्ग #राजयोग में हम सर्वोच्च अन्नतजगत की धारणा स्वीकार कर प्रयत्न शील रहते हैं।
#शेष
#अशोकबिंदु
@अशोकबिंदु::दैट इज..?! पार्ट01....n!!
www.ashokbindu.blogspot.com
22-25 मार्च 2020ई0!
किशोरावस्था से अब के हमारे बेहतर स्वर्णिम दिन?! सत्र2002-03,सत्र 2003-04 व सत्र 2004-05ई0 के सिबा अब 22-25 मार्च 2020ई0 से 21 जून 2020ई0 तक।प्रकृति अभियान(यज्ञ) व मालिक की कृपा।
महात्मा गांधी ने कहा है-"स्वच्छता ही ईश्वर है।" भारतीय स्वच्छता अभियान का #लोगो #गांधी का चश्मा एक व्यापक दृष्टि छिपाए हुए है।
जब 'सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर' तो ऐसी स्थिति के लिए सिर्फ स्वच्छता ही काफी है। स्काउट/गाइड का मंत्र #तैयाररहो का मतलब हमारे लिए है-हर वक्त अभ्यास व सतत में रहो। हमारे अंदर व जगत के अंदर जो है, वह सतत है निरन्तर है।विकसित नहीं विकासशील है।
सन्त कबीर, नानक आदि ने भी कहा है कि पवित्रता व सहजता में ही आत्मा, परम् आत्मा, बसुधैव कुटुम्बकम, अनन्त यात्रा आदि के हम गबाह बनते है, साक्षी होते है। सभी पंथों में पवित्रता व स्वच्छता को महत्व दिया गया है लेकिन हम सिर्फ शरीर व स्थूल स्वच्छता तक ही सिमट कर रह गए हैं। सहज मार्ग में कहा गया है कि हम अपने शरीर को कितना भी स्वच्छ कर लें लेकिन वह स्वच्छ नहीं हो सकता।लेकिन तब भी शारीरिक स्वच्छता महत्वपूर्ण है।हाँ, ये बात है कि मानसिक व सूक्ष्म स्वच्छता शारीरिक स्वच्छता से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है।मन व सुक्ष्म प्रबंधन महत्वपूर्ण है।
हमारी साधना के विशेष क्षण में गैरिकता तीब्र हुई है।गैरिकता/भगवत्ता परिवर्तन का प्रतीक है। हमारे लिए यज्ञ का मतलब प्रकृति अभियान/अनन्त यात्रा/ब्रह्मांड की निरन्तरता है। हमारा राम वह अग्नि है जो सभी में है, सर्वत्र व्याप्त है। जो दशरथ पुत्र राम से पहले भी सर्बत्र थी, बाद में भी सर्बत्र है।हम वह अपने दिल में महसूस कर सकते हैं।यदि हम सर्वत्रता/सर्वव्यापकता पर विश्वास करते हैं तो हम विशेष जाति धर्म,मजहब, धर्म स्थल आदि को महत्व न देकर वसुधैव कुटुम्बकम, सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर, आर्यत्व,मानवता, सेवा आदि को महत्व देंगे। हमारे 'वेदों की ओर लौटो' , 'विश्व को आर्य बनाओ' , 'एक विश्व राज्य' ,'एक विश्व नागरिकता' , 'एक विश्व सरकार' आदि मतलब यही है। इस लिए हम कहते रहे हैं सन्त किसी जाति मजहब के नहीं होते।वे समाज को जाति, मजहब, किसी विशेष धर्म स्थल आदि में नहीं बांटना चाहते। हम, जगत व ब्रह्मांड एक मकड़ी के जाला को तरह है।
22-25 मार्च 2020 ई0 से लॉक डाउन में शुरुआती एक दिन सरकार के द्वारा महायज्ञ था। जो प्रकृति अभियान (यज्ञ) में मानवीय प्रयत्न था। हर घर उसका केंद्र बन गया था। हमारे लिए यह अति महत्वपूर्ण समय था। घर वापसी को लेकर अनेक लोग परेशान तो हुए लेकिन ऐसा होता है।इतिहास गबाह है-जब दो व्यवस्थाओं /अभियानों का परस्पर संक्रमण होता है तो परिवर्तन का हिस्सा है - सृजन व विध्वंस। ब्रह्मांड व आकाश गंगाए इस बात का गबाह हैं।एक ओर पूरी पूरी आकाश गंगा ब्लेक होल में समा रही है दूसरी ओर नई आकाश गंगाएं बन रही हैं। अपनी आकाश गंगा व अपने ध्रुव तारा में भी हलचल होने वाली है, जिसका प्रभाव इस धरती पर भी पड़ेगा। मानव इस भ्रम में न रहे कि जैविक विकास क्रम में मानव पराकाष्ठा है।
काश, मानव व सरकारों का ध्यान सदैव के लिए लॉक डाउन की ओर जाए। वह लॉक डाउन जो भीड़ मुक्त सहकारिता, सामूहिकता, आत्मिक प्रेम, मानवता, प्रकृति संरक्षण आदि को जन्म दे। जब प्रकृति मुस्कुरायेगी तभी धरती पर जीवन व मानवता सदा मुस्कुरुएगी। सन्तपरम्परा, आश्रम पद्धति, सहकारिता, मानबता ,ग्रामीण सरकार, कृषि व्यवसाय व कृषि उपज की कीमत निर्धारण हेतु किसानों ,वन बासियों को स्वतन्त्रता, परिवार व स्कूल को समाज व शासन की पहली इकाई मानते हुए उसे सभी सरकारी विभागों से जोड़ना आदि आवश्यक है।अनेक विभाग रखने की आवश्यकता नहीं।बहुद्देशीय नागरिक समितियां बनाने, परिवारों व स्कूलों को तन्त्र व शासन से जोड़ कर विकास, शिक्षा आदि से जोड़ना।हर व्यक्ति का सैनिकीकरण व योगी करण करना। सभी विभाग खत्म कर सिर्फ चार पांच विभाग से कार्य चलाया जा सकता है।यदि जनसंख्या सात गुनी भी हो जाये तो भी प्रबंधन बेहतर हो सकता है। कर्मचारी व नेताशाही पेट पालने के लिए नहीं संवैधानिक व्यवस्था हेतु जान देने के लिए तैयार चाहिए, क्षत्रिय/ साहसी चाहिए। वे तो शूद्र हैं जो सिर्फ अपने व अपने परिवार के पालन पोषण के लिए सब कुछ निम्न से निम्न स्तर पर भी पहुंचने को तैयार हो जाएं।
सवाल: वसु किसे कहते हैं?ध्रुव किसे कहते हैं?विश्व सरकार से उसका क्या सम्बन्ध है?
अभी हम आत्मा को स्वीकार नहीं कर पाए है।
अपने व सबके अंदर दिव्यता की संभावना नही देख पाए हैं। हमने द्वेष, लोभ, लालच, काम,क्रोध में अपने को अंधा कर रखा हैं।सामने वाले के यथार्थ, सत्य के स्तर को न जान उसे अपने समझ से देखने की कोशिश करते हैं। n c/k g/प्रथम क्लास के बच्चे को पांच, आठ क्लास आदि वाला नुक्ताचीनी करता फिरता है, या nc/kg/प्रथम क्लास वाला पांच/आठ क्लास आदि वाले नुक्ताचीनी करता रहता है।कुल, पास पड़ोस, संस्थाओं में कुछ लोग देखे जाते है जिनका काम दूसरे की बुराई करना धर्म है।उन्हें अच्छाई नहीं दिखती।जिसे सिर्फ आधा गिलास खाली दिखाई देता है । गुड़ का अध्ययन गुड़ समझ कर करना ही यथार्थ/सत्य है। खट्टा, नमकीन आदि समझ कर नही। हम देखते हैं अध्यापक/शिक्षित ही ऐसा नहीं कर पाते। दिव्यताओं की व्यापकता/सर्वत्रता को ब्राह्मण, पुरोहित, कथावाचक की अपने जीवन में स्वीकार नहीं कर पाता है।हम तुम अपने को हिन्दू समझो या गैर हिन्दू, नास्तिक समझो या आस्तिक ये कुदरत के सामने नगण्य है। सतत स्मरण आवश्यक है। हमने परम् आत्मा को समझ क्या रखा है? कुदरत को समझ क्या रखा है?कुछ मिनट, की वह हमारी प्रार्थना, पूजा, नमाज आदि की देखता है?और 24 घण्टे हम जो करते हैं,वह नहीं देखता?ताज्जुब है।
#अशोकबिन्दु
देश में लोकतंत्र खोजता हूँ,
कहीं नजर न आता है।
किसी की मेहनत,
किसी का पोषण;
बीच में तीसरा-शोषक।
अब भी सामन्त है,
सम का अंत है,
कोई अपने धर्म स्थल में खुश,
कोई अपनी बिरादरी के -
चमकते उस चेहरे से खुश,
कोई को अपने बिरादरी के अपराधी से नाज।
गांव व शहर का हर गुंडा-
किसी नेता या दल का खास,
1.72प्रतिशत नोटा की खामोशी,
इस खमोशी में छिपे राज,
हर युवा अब भीड़ हिंसा व उन्माद,
शोषण, अन्याय, खाद्य मिलावट पर खामोश,
मेरा देश महान।
#अशोकबिन्दु
जन-चेतना के प्रबल स्वर और जन-जागृति के निर्भीक कवि स्व सुदामा पांडेय 'धूमिल' को उनके जन्मदिवस पर बहुत-बहुत प्रणाम! व्यवस्था में व्याप्त विसंगतियों पर इतनी मारक भाषा में इतना सशक्त प्रहार करने का साहस ही धूमिल को प्रासंगिक बनाता है।
"एक आदमी
रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है
वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूँ--
'यह तीसरा आदमी कौन है ?'
मेरे देश की संसद मौन है।" ( ~ धूमिल)
अंतिम संस्कार व देह दान!
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अंतिम संस्कार की विभिन्न रीतियों के बीच आधुनिक भारत में एक पध्दति ओर आयी है।वह है देह दान।
जिंदा रहते इस हाड़ मास शरीर की कीमत है ही लेकिन इसके मरने के बाद भी इस शरीर का महत्व है।
देश के अंदर अनेक लोग देह दान कर चुके हैं।देहदान क्या है? देह दान में देह दान करने वाले व्यक्ति का शरीर मृत्यु के बाद एक विशेष अस्पताल के रुम में पहुंचा दिया जाता है। जो चिकित्सा के क्षेत्र में प्रयोग किया जाता है।अन्य के जीवन में सहायक होता है।
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जिंदा हैं तो उनके लिए खास हैं ही,
वे न समझें न जाने तो कोई बात नहीं।
मरने के बाद भी वे कुछ खास अंदाज छोड़ जाते है,
किसी को आंख किसी को गुर्दा दे जाते हैं ;
जिंदा थे तो कदर न की थी हमारी,
मर चले तो काम आया हमारा लाश तन भी ।।
#अज्ञात
हम जिस स्तर पर हैं, उस स्तर से शिक्षा, प्रार्थना, सुधार, सीखने का वातावरण आदि होना आवश्यक है। परिवार, समाज, संस्थाओं का वातावरण ऐसा हो कि ब्यक्ति जिस स्तर पर हो उस स्तर से उबरने,आगे के स्तर पर जाने का अवसर हो।अगले स्तर पर जाने के लिए साहस, रुचि, रुझान चाहिए। हम चाहे धन, तन, जाति, देश ,भाषा आदि से कहीं पर हों लेकिन सवाल उठता है कि हमारी समझ व चेतना का स्तर क्या है?हम अपने को शिक्षित, अमीर, उच्च पद, जन्मजात उच्चता आदि में क्यों न स्वयं को माने लेकिन हम एक गरीब, अशिक्षित, जन्म जात निम्न आदि किसी को मानने वाले के स्तर पर ही अपने समझ, विचार, भावना, चेतना आदि का स्तर रखे हुए हैं, उससे निम्न स्तर भी किसी किसी मामले में रखे हुए हैं तो फिर हमारा सब कुछ उचित नहीं है। समाज व प्रकृति की घटनाओं प्रति व इंसान को पहचानने प्रति हमारी समझ क्या है?हमने अनेक लोग ऐसे देखे हैं जो कि जिंदगी भर सांसारिक चमक दमक, लोभ लालच, शारीरक सुंदरता, जन्मजात उच्चता व जन्मजात निम्नता आदि को महत्व देते रहे, चापलूसी, हाँहजूरी,चाटुकारिता आदि को महत्व देते रहे तो ऐसे में उन्होंने इंसान को पहचानने व जगत की घटनाओं को समझने में धोखा खाया। और दूसरों को अपने नसीब को गलत जताने के सिबा उनके हाथ में कुछ न रहा। लेकिन इसके लिए हमारा नजरिया, समझ, चेतना का स्तर महत्वपूर्ण था।
हम कहते रहते हैं-खुदा!?खुद में आ, अंतर्मुखी बन।अपनी चेतना, समझ, अनुभव, अहसास करने के स्तर को पकड़। विद्यार्थी जीवन को ब्रह्मचर्य जीवन कहा गया,25वर्ष तक मनुष्य सहज होता है, बनावट, कृत्रिमताओं से ज्यादा जुड़ा होता है।उम्र बढ़ने के साथ साथ दुनिया दारी के झूठ फरेब, अपने व परिवार के हाड़ मास शरीर को पालने में तिगड़म, षड्यंत्र आदि भी आ जाता है।बुजुर्ग होते होते समाज की नजर में कुछ और अंदर कुछ और हो जाता है।मन चिड़चिड़ा, खिन्नत आदि में रहने लगता है।सांसारिक कुछ इच्छाएं अंदर बैठ खलबली मचाने लगती हैं लेकिन हाड़ मास शरीर, इंद्रियां काम न करतीं।हाथ मसल कर रह जाते हैं या फिर कृत्रिम संसाधनों के सहारे जीवन जीते हैं।देखा जाए तो हाड़ मास शरीर व इन्द्रियों, सांसारिक लालसाओं से ऊपर उठ कर अंतर के आनन्द, चेतना, शांति,आत्मा आदि से नहीं जुड़ पाते।यदि अल्लाह हूं.... राम राम .....आदि बुदबुदा भी रहे होते है तो भी अंतर मन को तलहटी में, अंतर मन,अचेतन मन में सांसारिक इच्छाएं,हाड़ मास शरीर आदि ही हिलोरें मार रहे होते हैं।किशोरावस्था की कुछ आदतें अंदर ही अंदर कचोट रही होती हैं। ऐसे में क्या आत्मा क्या परम् आत्मा?! हम स्व को अपने हाड़ मास शरीर, इन्द्रियों आदि से ऊपर नहीं उठा पाते।समाज में हम क्यों न जन्म जात उच्चता,अमीर, उच्च पद आदि में जिए हों लेकिन चेतना ले स्तर पर किस स्तर पर?अचेतन मन से किस स्तर पर?सिर्फ भूत योनि, नरक योनि को सम्भावनाओं में।पितर योनि में भी नहीं।इसलिए सेवा,मानवता व आध्यत्म को पकड़ना ही नही वरन उसकी नियमितता में जीना आवश्यक है, पाखण्ड ही ठीक। अन्यथा विकास कैसा?विकास है-आगे के स्तरों पर पहुंचना, वर्तमान स्तर से निकल कर आगे के स्तर पर पहुंचना।ऐसे में विकास नहीं विकास शीलता होता है, निरन्तरता होता है, स्वतःमें परिणित होता है, अचेतनमन में अर्थात आदत में परिणित होता है । हाड़ मास शरीर त्यागने का वक्त आ गया, लेकिन उलझ उसी में, इन्द्रियो में, सांसारिक इच्छाओं में।चेतना किसी इन्द्रिय पर ही टिकी है।अंतिम संस्कार कैसा?क्या है अंतिम संस्कार?मानसिक रूप से न पिंड दान में, न कपाल क्रिया..... सिर्फ स्थूल क्रिया?!विकास कैसा?!टिके कहाँ हो?!गीता में श्रीकृष्ण -कहते हैं,मरने के वक्त चेतना,नजरिया व समझ कहाँ पर टिकी है?रुझान कहाँ पर टिका है?इसी पर तय होता है अगला पड़ाव। कमलेश डी पटेल दाजी कहते हैं, अंदर से क्या हो रहे हो ये महत्वपूर्ण है।समाज की नजर में आपका क्या चरित्र है?ये किसी के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है लेकिन आपके लिए नहीं।आपकी असलियत आपका अचेतन मन है। आपका अंतिम संस्कार क्या है समझो।समाज आपके हाड़मांस शरीर का अंतिम संस्कार कैसे करता है ?इससे ज्यादा महत्वपूर्ण है, आपने स्वयं व अपने मन, चेतना,समझ की क्या तैयारी है?
समाज में अंतिम संस्कार अर्थात समाज सिर्फ आपके हाड़ मास शरीर का ही अंतिम संस्कार कर सकता है लेकिन अब आपके सूक्ष्म शरीर का संस्कार स्वयं आपको ही करना होगा।शरीर को जला देने से इतना फायदा होता है कि हमारा आत्मा सहित सूक्ष्म शरीर हाड़ मास शरीर जलने के बाद हाड़ मास शरीर की असलियत जान जाता है और उससे मोह त्याग आगे को यात्रा पर बढ़ जाता है। हो सके तो स्वयं ही इस हाड़ मास शरीर के मरने से पहले ही मन ही मन इस हाड़ मास शरीर को मार दो।...योग के आखिरी अंग- प्रत्याहार, धारणा, ध्यान व समाधि।समाधि को दशा यही है कि किसी खो जाना।सब होता रहे, कोई अन्य सारथी हो जाए, लेकिन हमें स्थूल शरीर व जगत की परवाह न रहे।
अब इस हाड़ मास शरीर की मृत्यु से पूर्व हाड़ मास शरीर के दान की घोषणा क्या है?सुनने मिलता है देश व विदेश में कुछ लोग मरने से पहले शरीर दान करने की घोषणा कर जाते हैं।इसके पीछे का दर्शन जानते हैं आप?! जानो। बाबू जी महाराज ने कहा है, शिक्षित के अधिकार खत्म हो जाते हैं।उसके सिर्फ कर्तव्य ही रह जाते हैं। ये शरीर परोपकार के लिए है।बस, इतना करते जाएं कि हाड़ मास शरीर के मरते वक्त हम भी अचेतन मन से इससे दूर हो जाएं। अब तो देह दान को भी प्रक्रिया शुरू हो गयी है।मरने के बाद भी इस शरीर से हम परोपकार घटित कर सकते हैं।अब तो ऐसा भी है कि इस शरीर को जला कर कृत्रिम हीरे बन जाते हैं।साइंस के विद्यार्थी जानते होंगे कि हीरा कार्बन का ही उच्चतम रूप है।
#अशोक। कुमार वर्मा "बिन्दु"
एक दिन ऐसा आएगा कि कुदरत सब हिसाब किताब बराबर कर देगी। कबीरा खड़ा खड़ा मुस्कुराएगा।
वर्तमान तुम्हारे आका तब खलनायक होंगे। आप के नजर में जिनकी कोई औकात नहीं है, वे भविष्य के हीरो हो सकते हैं। भविष्य का हीरो अपनी जाति, मजहब, शारीरिक सुंदरता, मजबूती, धन शक्ति आदि के कारण नहीं होता है।सुकरात की क्या औकात थी?ईसा की क्या औकात थी?आदि आदि।तुम अपने को नहीं पहचानते, दूसरे को क्या पहचानोगे?औकात व्यक्ति की सिर्फ शरीर, धन, जाति, मजहब आदि से ही नहीं होती।व्यक्ति कोई सिर्फ हाड़ मास शरीर नहीं होता।
तुम जिस पर आज फूलते हो उसकी कुदरत की नजर में कोई औकात नहीं।
भविष्य का क्या देखा?तुम व तुम्हारे आका कहते फिरते है।इससे पता है कि तुम्हारी व तुम्हारे आकाओं की औकात कहा तक है?इस शरीर, इन्द्रियों, दिमाग, मन की औकात कब तक?
ये जो तुम्हारे आका, तन्त्र को जकड़े बैठे व्यक्ति.... शायद अब भी कोरोना संक्रमण से सीख नहीं पाए हैं।सांमत वाद, पूंजीवाद,, सत्तावाद, पुरोहितवाद आदि की बू अब भी आ रही है।
कब तक तुम्हारी चित पट्ट?! तुम व तुम्हारे आकाओं, तुम्हारे सिस्टम से ऊपर भी कोई सिस्टम है।इस भ्रम में न रहो कि हम भक्त है, आस्तिक हैं, जन्मजात उच्च है, खुदा के बन्दे है। हम तो मीरा व तुममे से एक को ही भक्त मान सकते हैं।कबीर व तुम में से एक को ही भक्त मान सकते हैं। कबीर, मीरा की भक्ति में परिवार मर्यादा,जगत मर्यादा की कोई औकात न थी।
हमें तुम्हारी भक्ति, आस्तिकता, धर्म स्थलों आदि से कोई मतलब नहीं।हमें तो अपने व अन्य हाड़ मास शरीरों, अपनी आत्मा व अन्य आत्माओं व उसकी आवश्यक ताओं से मतलब है।
हमारा चरित्र तुम्हारी नजर में बेहतर बनना नहीं है।
वो कायरता न थी!
सन्त कहता है कि तुम धोखा न दो।तुम धोखा को बर्दाश्त कर । गुरुनानक यों ही नहीं आ गए, एक योजना थे कुदरत की।जिसने अपनी धाक काबा तक पहुंचाई। सदियों से पंजाब ने जो झेला वह का परिणाम है-गुरुनानक।वही भविष्य है।"सब चुंग जा सब राम का?"-हम क्या समझें?
हम अभी काफी दूर हैं भक्ति से।heartfuness से।अपनी रुचि, रुझान से। सच्चा सौदा से।
एक कायरता ऐसे भी है, जिसे तुम कायरता कह सकते हो परन्तु हम नहीं।एक अपराध को तुम अपराध कह सकते हो परन्तु हम नहीं।
गुरुनानक उस अतीत का परिणाम हैं जो कभी वर्तमान था।जिसमें पंजाब व अफगान ने झेला था, काफी झेला था।जो भविष्य बन गया।अब भी भविष्य है।यात्रा जारी है।
आत्मा, आत्माएं सब जानती हैं।वे भी एक सिस्टम से जुड़ाव हैं। हम तब ही महसूस कर सकते हैं भविष्य जब हम अपने अंतर प्रकाश अंतर ज्योति को पकड़ें।समझो-ज्योतिष=ज्योति+ईष अर्थ ज्योति संकेत।
#अशोकबिन्दु
कबीरा पुण्य सदन
कबीरा पुण्य सदन kabira puny sadan
#अशोकबिन्दु
मन चंगा तो कठौती में गंगा ☺
संसार में जो भी है वह निरर्थक नहीं है ।
किसी न किसी स्तर पर उसकी आवश्यकता है।
यहां पर हम नकल करने की प्रवृत्ति पर जिक्र कर रहे हैं।
नकल करने ,कल्पना करने ,चिंतन, मनन ,स्वप्न आदि का भी जीवन में कब बड़ा महत्व है ।जब हम जो बनना चाहते हैं उसके लिए मन से भी चिंतन मनन कल्पना सपना विचार भावना आदि मन में कर लेते हैं और उस आधार पर मेहनत मरते हैं, नियमितता जीवन में लाते हैं तभी कल्याण होता है
हमें अनेक लोग मिल जाते हैं जो अपने को सनातनी कहते हैं। लेकिन उनका कोई भी आचरण , कोई भी विचार , कोई भी भाव हमें सनातनी नहीं दिखता। हम तो यही कहेंगे कि अभी हम सोच ,भावना ,विचार ,नजरिया, समझ आदि से बिल्कुल सनातनी नहीं है । अपने को जो हिंदू कहता है, मुसलमान कहता है या अपने को जो जाति मजहब से जोड़ता है उसे हम सनातनी नहीं कह सकते। गीता में.... चलो गीता को छोड़ो, वेद में सनातनी किसे कहा गया है ?सनातन किसे कहा गया है?
काहे को शिक्षित? काहे को शिक्षक?काहे को प्रेरणादायक?काहे को ज्ञानी?काहे को प्रेमी? जो अपने को नहीं जानता वह अपने हित करेगा भी क्या? फिर काहे का शिक्षित?शिक्षक?प्रेरणादायक?
किसी सीरियल में देखा है, आश्रम में गुरुकुल में कुछ बच्चे पढ़ने जाते हैं तो उन्हें पहले शुरुआत में ही बताया जाता है तुम कौन हो
आर्य समाज और हम::अशोकबिन्दु
पुरानी कहावत है कि मुसीबत में जो अपने काम आए वहीं अपना है।
मार्च2020 से देश में कोरोना संक्रमण के कारण विभिन्न समीकरण गड़बड़ाए हैं।
प्राइवेट सेक्टर के कर्मचारियों व अध्यापकों की स्थिति अत्यंत चिंतनीय है। आत्महत्या करने के प्रतिशत में 11प्रतिशत वृद्धि हुई है। इसके लिए हम कोई समस्या नहीं मानते हैं।समस्या सिर्फ नजरिया,मानवीय स्तर की है, समझ की है।
विपत्ति में जो लात मार के बाहर कर दे, इससे ये सिद्ध होता है कि मानव समाज व व्यवस्था में अनेक दोष हैं।ऐसे में वर्तमान मानव समाज व व्यवस्था ढह ही जानी चाहिए जो मुसीबत में फंसे मानवों के दुख पर मरहम न लगा नमक छिड़कने का कार्य करे।
जब हम खुले मन से दुनिया पर नजर डालते हैं तो हमे सबसे ज्यादा मानव व उसका समाज, तन्त्र ऐसा लगता है कि इसे कुचल दिया जाना चाहिए।जो मानवता का भला न कर सके।
महाव्रत::हमारे पंच यमदूत!
हमारे पांच यम दूत हैं- सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य।
जगत व अपने जीवन की घटनाओं को पूर्ण/योग/all/अल/सम्पूर्णता आदि की नजर से देखना जरूरी है।
हम ऐतिहासिक संगठनात्मक प्रथम पन्थ जैन पन्थ को मानते हैं।हालांकि प्रथम ब्राह्मण आदि ब्राह्मण हम शैव /जोशी/नाथ आदि को मानते हैं। यहां बात जैन पन्थ की करनी है, जिसके प्रथम महापुरुष हैं- ऋषभ देव। जिन्हें आर्य जातियां भी मानती थी।
जैन शब्द की उत्तपत्ति जिन शब्द से हुई है जिसका अर्थ है-विजेता। जैन पन्थ व योगियों के लिए अब भी महाव्रत हैं-योग के प्रथम अंग -'यम' के पांच स्तम्भ। यम का अर्थ है संयम जो पांच प्रकार का माना जाता है : (क) अहिंसा, (ख) सत्य, (ग) अस्तेय (चोरी न करना अर्थात् दूसरे के द्रव्य के लिए स्पृहा न रखना) (घ) अपरिग्रह (च) ब्रह्मचर्य । इसी भांति नियम के भी पांच प्रकार होते हैं : शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय (मोक्षशास्त्र का अनुशलीन या प्रणव का जप) तथा ईश्वर प्रणिधान (ईश्वर में भक्तिपूर्वक सब कर्मों का समर्पण करना)।
वर्तमान कोरोना संक्रमण का समय किसी ने समुद्र मंथन की भांति माना है, जिसमें जहर ही जहर निकल रहा है। हम कोरोना संक्रमण की शुरुआत से पहले ही -शंकर, महाशंकर का जिक्र कर चुके हैं।इस पर यूट्यूब पर एक वीडियो भी डाला था।
सन2011से2025-30 का समय क्रांतिकारी समय है।
हमारे जीवन,जगत व ब्रह्मांड में स्थूल, सूक्ष्म व कारण तीनों स्तरों पर घटनाएं सक्रिय हैं। हम अभी स्थूल स्तर पर ही सहज नहीं हैं।
विपत्ति में हमारे साथ कौन खड़ा है? जो खड़ा है विपत्ति में हमारे साथ , वही मानवीय है हमारे लिए।उसी प्रकार जो विपत्ति में खड़ा है,हम उसके मददगार हैं तो हम उसके लिए मानवीय हैं।
घर पर जब विपत्ति आती है तो घर के सभी सदस्यों को धैर्य, सहनशीलता,यथार्थ स्वीकार्य आदि की आवश्यकता होती है।
दुनिया में जो भी विकसित देश हैं, वहां राजकीय कार्य एक ही भाषा में होते हैं। अतिरिक्त भाषाएं ज्ञान हेतु अध्ययन कराई जाती हैं। विश्व मे हिंदी का प्रचार तेजी से बड़ा है लेकिन भारत के अंदर एक मातृ भाषा के रूप में हिंदी की क्या दशा है?
हम हिंदी अंकों का प्रयोग गाङियों के नम्बर प्लेट में नहीं कर सकते। अन्यत्र भी हिंदी अभी भी दो नम्बर तक सीमित है।
हम महसूस करते हैं-जीवन जीने के लिए साहस चाहिए।
वीर भोग्या बसुंधरा?!
सामाजिक संगठनात्मक क्षेत्र में पहला पन्थ जैन माना जाता है।वैसे तो प्राचीन मत शिव पन्थ है।
जैन शब्द जिन शब्द का रूपान्तरण है, जिसका अर्थ है विजेता।
विजेता या साहसी भी दो तरह के होते हैं-भौतिक व आध्यत्मिक, असुर व सुर।
कालेज जीवन से निकलने के बाद जब हमारा टकराव समाज की विभिन्न परिस्थितियों से होना शुरू हुआ तो महसूस किया जीवन जीने के लिए साहस अति आवश्यक है। विद्यार्थी जीवन में प्रशिक्षण, शिक्षा में दुर्गमताएं, कठिनाइयां आदि का बाताबरण देना आवश्यक है।बालक की अंतर प्रतिभा को जगाना आवश्यक है।उसको अवसर आवश्यक है। महापुरुष कौन बने हैं?
सत्तावाद, पूंजीवाद, पुरोहितवाद ने आम आदमी को महामानव, महापुरुष बनाने की परंपरा नही खड़ा की।
विजेता!? स्त्री विजेता!?इसके अनेक मतलव हो सकते हैं।जिस स्तर का व्यक्ति उस स्तर के विचार व समझ। आध्यत्म में ' स्त्री विजेता '- का मतलब है- स्त्री के हर एक्शन, हर स्थिति में स्त्री के सामने प्रतिक्रिया हीन हो अपने पुरुष(आत्मा) में लीन रहना। किसी ने कहा है कि आकर्षण स्वयं में पवित्र है।हमारा जैसा नजरिया व समझ, वैसा उस पर रंग। एक स्त्री सामने है, वह हमें आकर्षित कर रही है और हम मन में विचार ला रहे है-ये प्रकृति है। तब कुछ और ही आनन्द, अनन्त आनंद।सम्भोग की लालसा नहीं, भोग की लालसा नहीं। विजेता के भी अनेक रूप हैं। असुर स्त्री को जीतता है- भोग के लिए।सुर स्त्री को जो जीतता है, वहां भाव ही नहीं होता जीत का।
जगत में जो भी है, उससे हमारा अनन्त काल का सम्बंध है। लेकिन इसका अहसास कौन कर सकता है? जमाने के पैमाने अनन्त को क्या नापेंगे? हमें किसी सम्बन्ध पर अंगुली उठाने का हक कब है? हमने कुछ स्त्री पुरूष सम्बन्ध देखे हैं,जो स्वयं में निष्कलंक होते हैं लेकिन जमाने में कलंकित होते हैं। किसी के किसी से सम्बंध क्या भाव रखते हैं?आप कैसे जान सकते हैं? आप एक ओर कहते हैं-किसी के माथे पर क्या लिखा है कि कौन चोर है कौन साहूकार? कभी कहते हो हम लिफाफा देख ही जान जाते है लिफाफे में क्या है? बगैरा बगैरा।
दक्षिण ेेशया में जातिवाद, मजहब वाद से भी ज्यादा खतरनाक है ,स्त्री पुरुष के बीच सम्बन्धों के लेकर समाज का दृष्टिकोण। यहां अब भी अनेक भ्रम हैं। दूसरी ओर तन्त्र विद्या में तांत्रिक हवन करते हुए नग्न युवती की विभिन्न मुद्राओं व नृत्य में । दूसरी ओर अंडरवर्ड/माफिया बीच आइटम सॉन्ग के साथ स्त्रियों के द्वारा अश्लील मुद्राएं व नृत्य। ये सब क्या है? राज तन्त्र में कुछ राजा अपने अन्तरमहल, राज दरबार में?! ये सब क्या है?इसके लिए हम समाज, धर्म व सत्ता के ठेकेदारों को ही दोषी मानते हैं। स्त्री पुरुष सम्बन्धों को लेकर परिवार भी दोषी हैं।
तुम अमीर होंगे अपने लिए। जन्मजात उच्च होंगे अपने लिए।
विधायक,मेयर, सांसद आदि होंगे अपने लिए। 100 बीघा जमीन के जोता होंगे, तो अपने लिए।संस्था के प्रमुख होंगे तो अपने लिए।
हमारे लिए क्या हो? हमारी नजर में तुम्हारी क्या औकात है?
तुम हमारे विचारों ,भावनाओं को पोषित करते हो कि नहीं।हमारे लिए ये महत्वपूर्ण है।
सुदामा गरीब था।मुश्किल से परिवार का जीवन यापन होता था। राजा होगा तो अपने लिए होगा।हम उसके बड़प्पन में गान कैसे कर सकते हैं?सुदामा बोलता है। सुदामा राजा के दरबार जो गाता है,वह सत्य गाता है।सत्य से वह कैसे मुकुर सकता है?भक्ति का मतलब क्या है? ये वक्त है ,गुजर ही जायेगा।
दुनिया में सब अपने अपने रोल कर रहे हैं। लेकिन इसके पीछे असलियत क्या है?
इस हाड़ मास शरीर की असलियत क्या है?हिन्दू .......मूसलमान........ब्राह्मण..............शूद्र.............आदि?अंदर आत्मा है।उसकी असलियत क्या है?
इस धरती पर पहला अधिकार किसका है?जो भी दिख रहा है सब प्रकृति है।प्रकृति व ब्रह्मांड के अभियान में तुम्हारी व्यवस्था व कृत्रिमता का रोल क्या है?भूमिका क्या है?
मीरानपुर कटरा आना,रहना।मकान बनवाना।सब हालात हैं।हालात थे।
जैसे तैसे पेट काट कर,दिल काट कर,दिमाग काट कर जीवन यापन व मकान बनवाना।
मालिक की मर्जी!पूर्व सस्कार!! भाग्य अर्थात हमारे पूर्व कर्मो
का फल। दाजी जी कहते हैं-हम स्वयं अपने नियति का निर्माण करते हैं।
तुम्हारे ग्रंथ ही हमारे हथियार हैं, तुम्हारे आराध्य की वाणियां ही हमारा हथियार हैं, तुम्हारे महापुरुष ही हमारा चरित्र है!...............अशोकबिन्दु
दुनिया में कहीं कोई समस्या नहीं है।समस्या है-मानव समाज में।मानव समाज मानव समाज होने के लिए कभी आतुर नहीं हुआ।वह जाति, पन्थ, मजहब, देश, विदेश, भाषा, अमीर गरीब आदि में बंटा रहा और इंसानियत, विश्व बंधुत्व, अध्यात्म के लिए अबसर नहीं दिया। प्रकृति संरक्षण को अवसर न दिया।
मानव समाज की विकृतियों, अंधविश्वास, कुरीतियों आदि के खिलाफ संघर्ष में तुम्हारे ग्रन्थ ही सहायक है।जिन्हें ताख में सजा कर रखा गया है लेकिन उन पर चिंतन मनन नहीं किया गया।महापुरुष की वाणियां ही काफी है,जिन पर चिंतन मनन न कर नजरिया को नहीं तौला गया।
मानव समाज का सबसे बड़ा अफसोस यही है कि समाज मेँ ज्ञान या ग्रंथों के आधार पर जातीय, मजहबी रंग से निकल कर आचरण में नहीं लाया गया।विचार, भावनाएं, आस्था कोई जाति मजहब का मोहताज नहीं है। उसके अनेक स्तर हो सकते है लेकिन वे जातीय व मजहबी नहीं।
समाज में सबसे बड़ा कलंक शिक्षित व्यक्ति है, समाज को जकड़ा बैठा तन्त्र है। जिसे आचरण में ज्ञान से मतलब नहीं।