बस, कलेण्डर/पंचांग बदल रहा है।
आत्मा वही, मन वही... धारणाएं वही.....
परिवर्तन की स्वीकार्यता किस स्तर पर है?
बस, कलेण्डर/पंचांग बदल रहा है।
आत्मा वही, मन वही... धारणाएं वही.....
परिवर्तन की स्वीकार्यता किस स्तर पर है?
नजर भी तीन तरह की होती है-स्थूल, सूक्ष्म व कारण।
इन तीनों में भी प्रथक प्रथक अनेक स्तर हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी एक बार कहा था- पूर्णता की नजर से देखिए।
जगत में जो भी दिख रहा है प्रकृति है। हमारा जीवन भी प्रकृति है। जिसके तीन स्तर हैं-स्थूल, सूक्ष्म व कारण। इसके अलावा दुनिया में जो भी दिख रहा है, वह बनाबटी, कृत्रिम, मानव निर्मित, पूर्वाग्रह, संस्कार, छाप, अशुद्धियां आदि हैं। इसलिए हम कहते रहे हैं-पूंजीवाद, सामन्तवाद, सत्तावाद, पुरोहितवाद, जन्मजात उच्चवाद, जन्मजात निम्नवाद, जातिवाद, मजहब वाद, धर्मस्थलवाद आदि से मुक्त को देखना, सुनना व करना शुरू कीजिए। इसके अभ्यास में रहिए।
अपने को किसी जाति या मजहब या किसी धर्म स्थल से बांध कर यदि जीवन जीते हो तो इसका मतलब है कि आप प्रकृति अभियान के खिलाफ हो,हममें व प्रकृति में जो स्वतः निरन्तर है हम उसके खिलाफ हैं।
अब जो ईसाइयत का विरोध करते है, वे उसमें सनातन को नहीं खोज पाते। अब जब कोई ईसाइयत में सीने पर दोनों ओर छुह कर ,माथे को छुह अपने हाथ को चूमता है तो क्या ये सनातन के खिलाफ है ?अनेक लोगों ने सनातन व धर्म को कर्मकांडों से दूर रखने को कहा है।सनातन व आध्यत्म सुप्रीम साइंस है। जो शरीर के चक्रों व ऊर्जा के बिंदुओं के बारे में परिचित हैं, उन्हें जानकारी होगी उन्हें पता होगा कि हृदय चक्र /अनाहत चक्र के ऊपर भी अनेक बिंदु होते है और दोनों भौहों के बीच भी एक चक्र होता है, जिसे तीसरी आंख भी कहा जाता है।
विद्वानों के हिसाब से भक्ति के दो कारण हैं-भय व अनुशीलन। किसी ने कहा है कि भीड़ का धर्म नहीं सम्प्रदाय व उन्माद होता है।धर्म सिर्फ व्यक्ति का होता है। इससे फर्क नहीं पड़ता कि कोई खुद को नास्तिक मानता है या आस्तिक?अपने को हिन्दू मानता है कि ग़ैरहिन्दू?मुस्लिम मानता है कि गैर मुस्लिम?कबीर पंथी मानता है या गैर कबीर पंथी?आदि आदि।महत्वपूर्ण है कि उसकी दिनचर्या, आदतें, अभ्यास उसे किधर ले जा रहा है? वह क्या अनुभव कर रहा है?क्या महसूस कर रहा है?क्या आचरण कर रहा है?
क्रांतिकारी भगतसिंह के पत्र पढ़िए।वे कहते हैं कि हमारी नास्तिकता को सहज ज्ञान ने ओर मजबूत कर दिया है। हम यथार्थवाद पर विश्वास करते है। योग के आठ अंगो मेँ से पहला यम का पहला चरण-सत्य है।हम कहेंगे कि योग की शुरुआत सत्य से होती है।
हमें ऋषि परम्परा /नबी परम्परा ही सनातन लगती है।जो हमें प्रकृति अभियान से जोड़ती है। हम सब का वर्तमान सत्य सत्य नहीं भ्रम है।भूख, प्यास, झूठ, लोभ लालच, काम, हिंसा, खिन्नता, भेद, ईर्ष्या, जाति, मजहब ,चापलूसी, हाँहजूरी आदि है। हम ने जो शब्द प्रयोग करते हैं उसके पीछे की स्थिति से हम अनजान हैं।उसके सूक्ष्म व कारण से अनजान है। समाज में अनेक शब्द प्रयोग किए जाते हैं। जिनका भाव ही इंसान ने खो दिया है। धर्म वीर भारती ने तो क्राइस्ट, कायस्थ, क्रष्ट, कृष आदि शब्दों की उत्पत्ति प्राचीन मूल आर्य भाषा से ही मानी है।जिसका संकेत आत्मा या आत्मा से जुड़ने से माना गया है।
एक मनोवैज्ञानिक ने तो क्रिसमिस ट्री, कल्प वृक्ष, काम धेनु को हमारे अचेतन मन/अवचेतन मन/हमारी धारणा शक्ति से माना है। मनोवैज्ञानिक बुल्फ़स मैसिंग ने तो पूरा जीवन धारणा शक्ति के प्रयोगों व अनुशीलन पर लगा दिया था। जो अपनी धारणा से दूसरे की भी धारणा बदल देता था।
#अशोकबिन्दु
खुदा व सुप्रबन्धन!!कुछ तो है जिस पर पूरा ब्रह्मांड हावी है?!::अशोकबिन्दु
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राजीव दीक्षित के प्रशंसक कुछ और कहते हैं, व मीडिया कुछ और कहती है!इन सात आठ महीनों में आयुर्वेद,हैम्योपैथी, यूनानी,योग पध्दति में लगे लोगों की सफलता पर मीडिया को कोई मतलब नहीं।
खुद या खुदा... कुदरत व आयुर्वेद आदि!! ऐसे में कुछ लोगों को कोरोना कोरोना एक षड्यंत्र नजर आता है।
हममें भी बार बार विचार कौंधता है चलो ठीक, लेकिन 2019 तक मरने वालों, बीमार होने वालों के आंकड़े उजागर किए जाएं और उसकी वर्तमान कोरोना संक्रमण काल से तुलना की जाए।
हम कहना चाहेंगे कि गीता में महाकाल के विराट रूप के दर्शन पर भी चिंतन कीजिए। अनन्त यात्रा सम्बन्धी पुस्तकों की सामिग्री पर भी चिंतन कर देखिए। अंतरिक्ष की घटनाओं पर विचार कीजिए.....कुछ है जिसमें सब बन्धा है। उसके सामने कोरोना - महाकोरोना की क्या औकात?!
अपनी आत्मा से जुड़िए।
परम्+आत्मा=परम् आत्मा / परमात्मा !!
स्वच्छता, दिनचर्या, फिजिकल डिस्टेंसिंग, योग,आस्था,आयुर्वेद आदि का सनातन महत्व है।
#कोविड20
#राजीवदीक्षित
कोरोना
बस!पूंजीवाद, सत्तावाद, आधुनिक भौतिक भोगवाद,जातिवाद ,किसान विरोधियों, वन्य समाज विरोधियों, दबंग व्यक्तियों, मजहबी व्यक्तियों,एलोपैथी की अति..... आदि का विरोध कीजिए।
हर हालत में मजबूर, शालीन, सच्चे, ईमानदार, गरीब, प्रकृति, जीव जंतुओं, बुजुर्ग व्यक्तियों,महिलाओं, बच्चों, पुस्तकों, महापुरुषों, हर समाज सेवी की कोशिशों, हर अच्छी बातों ,समाज व देश की समस्याएं उठाने वाले हर व्यक्तियों आदि का सम्मान कीजिए।उनका अपमान बर्दाश्त मत कीजिए। जानबूझ कर किसी को कष्ट मत दीजिए। बस, हो गया भजन!हो गयी पूजा।।हो गया धर्म!!
06.06pm-लगभग 11.55pm!!
20दिसम्बर2010ई0
#श्रीअर्द्धनारीश्वरशक्तिपीठबरेली!
चिरस्मरणीय वार्ता व अहसास !!
सत सत नमन!! सत श्री काल! ॐ तत् सत!!
....................................................#अशोकबिंदु
हमारे जीवन के दो रूप सामने आये हैं-स्थूल व सूक्ष्म। कम्प्यूटर के बच्चों के सामने हम इसे हार्डवेयर व साफ्टवेयर कह कर समझते हैं। आचार्य वह है जो समाज में सम रहे और अपनी आंतरिक दशा को बनाए रख सके। जैसे कि हमने गौतम बुद्ध सम्बंधित वीडियो देखी होंगी जहां बुद्ध का व्यक्तित्व हम देखते हैं।कैसे वे शालीन व सौम्य बने रहते हैं हर हालत में।हमारे अभी दो ही रूप अलग अलग मिलते हैं,एक तब जब हम ध्यान में होते है।दूसरा जब हम समाज व समाज के ऊंचनीच,आडम्बर,कर्मकांड में होते हैं। हम अपने इस दूसरे रूप में अस्वस्थ रहे हैं। हमारा स्वास्थ्य है-स्व में स्थित होना।
हम होश संभालते ही अर्थात किशोरावस्था से ही अपने सम कक्ष व्यक्तियों,सहपाठियों,परिवार,आसपड़ोस, रिश्तेदारों,समाज के बीच दोनों रूपों में अलग से रहे हैं।हम उस समय से ही समाज में व्याप्त कर्मकांडों में अरुचिवान रहे हैं। आंख बंद कर या आंख खुले भी स्थूल नजर से दूर हम हम हुए है तो मालिक की कृपा हम किसी अज्ञात,अदृश्य व सूक्ष्म अस्तित्व के अहसास में आये हैं।#कुंडलिनीजागरण सम्बन्धी चिन्तनमनन, अनन्त यात्रा सम्बन्धी चिंतन मनन , गीता के #महाकालविराटरूप का चिन्तनमनन आदि ने हमारी आंतरिक हालात बदली है। युवा अवस्था मे हमारा ध्यान श्रीअर्द्धनारीश्वर स्वरूप की ओर भी गया। जब एक अभ्यासी #कल्पनापाल के माध्यम से हमें सूचित किया गया गया कि हम श्रीअर्द्धनारीश्वर पर कुछ लिखें तो हमारे हालात श्रीअर्द्ध नारीश्वर प्रति चिंतन मनन से और सुधरे। इसके बाद फिर कल्पना पाल के माध्यम से #20दिसम्बर2010 को सायंकाल 06.06pm पर हमारी मुलाकात श्री अर्द्ध नारीश्वर शक्ति पीठ ,बरेली के प्रमुख #श्रीराजेन्द्रप्रतापसिंहभैयाजी ,गली नम 04,सैनिक कालोनी, बरेली में हुई। लगभग पांच घण्टा उनसे वार्ता ही नहीं हुई,उस रात्रि हमने कुछ नए अहसास भी किए।इसके बाद लगभग एक माह श्रीअर्द्ध नारीश्वर पर चिंतन मनन व लेखन से अपने अंतरिक दशा में पहले ज्यादा बेहतरी देखी।
किसी ने कहा कि हमारी कोई मंजिल नहीं है।हमारा तो सिर्फ रास्ता है।जहां निरन्तरता है,विकास शीलता है । अपने पहले रूप स्थूल से क्यों न हम अस्वस्थ रहे हों लेकिन दूसरे रूप से हमने एक यात्रा निरन्तर जारी रखी है।
हम 1998ई0 से #श्रीरामचन्द्रमिशन के साहित्य से भी जुड़े रहे हैं। 25दिसम्बर 2014 को हमने श्रीरामचन्द्र मिशन में पहली सिटिंग (प्राणाहुति/प्राण प्रतिष्ठा) प्राप्त की।
किसी सूफी संत ने कहा है-हमारा धर्म है -#अन्तस्थयात्रा । हम आत्मा या आत्मा के स्थान पर जो भी हो ,को ही सनातन मानते हैं। हमारे अंदर कुछ है जो स्वतः है,निरन्तर है। वह के बिना ये शरीर लाश है। किसी ने कहा है -आचार्य है मृत्यु।कोई कहता है-योग है मृत्यु।कोई कहता है-मैं महा मृत्यु सिखाता हूँ।कोई कहता है- अरे तुम आत्म हत्या करना चाहते थे?आओ हमारे साथ मौन में रहो,हमारे साथ आत्महत्या को सीखो। #बाबूजीमहाराज कहते हैं-अनन्त से पहले प्रलय है।मरने से पहले इस शरीर को लाश बना लो। कोई कहता है-योग का पहला अंग-#यम (सत्य, अहिंसा, अस्तेय,अपरिग्रह,ब्रह्मचर्य) है-मृत्यु।
वास्तव में हम सब कहते तो हैं कि परिवर्तन शाश्वत नियम है लेकिन हमें पता होना चाहिए कि सृजन व विध्वंस भी निरन्तर परिवर्तन का हिस्सा है।हर पल त्याग व स्वीकार्य है।
अन्तरनमन!
#20दिसम्बर2014ई0
पार्थ सारथी राजगोपालाचारी जी की समाधि!
20-27दिसम्बर : गुरु गोविंद सिंह अभियान!
Rajendra Singh
हमारे हमारे भक्त के साथ अन्य कोई शब्द नहीं जुड़ा है। महाभारत कब घटित होता है?! जब दोनों पक्ष-सुरत्व व असुरत्व का घड़ा भरता है। सुरत्व के साथ सिर्फ पांच पांडव- पांच तत्व, आत्मा- कृष्ण ही प्रमुख होता है। दुर्योधन कृष्ण को चाह कर भी नहीं भोग पाता।
जब से हमने होश संभाला, हमारे पढ़ने का उद्देश्य ज्ञान को उपलब्ध होना रहा है।हमारे लिए टेट, सुपर टेट, टॉपर, आई ए एस आदि परीक्षा पास भी महत्वपूर्ण नहीं हो सकते। उसकी तुलना में कोई भिखारी जो मानसिक रूप से सारी कायनात से जुड़ा है।जातिपात, मजहब वाद, जन्मजात उच्चवाद, जन्मजातनिम्नवाद, धर्मस्थलवाद आदि से मुक्त हो अपने चारों ओर व कुदरत में चेतना का अहसास करता है, जगदीश चन्द्र बसु सिद्ध सम्वेदना को सर्वत्र प्रकृति में महसूस करता है, सूक्ष्म शरीरों को महसूस करता है,उसे इधर उधर से प्रकाश कणों, तरंगों आदि का जगत के रूप में प्रकाश का सागर महसूस होता है.....आधुनिक विकास प्रकृति विनाश दिखता है..... वह हमारे लिए महान है।
आधुनिक विकास व तन्त्र मूर्खता पूर्ण है।
"तीन साल में देश के सभी गांव हाई डाटा स्पीड, नेटवर्क से जुड़ जाएंगे।"
धन्य,आपका विकास!?
पूंजीवाद से प्रभावित......
5 जी का असर कुदरत पर क्या पड़ रहा है?
आज से पचास वर्ष पहले जैविक खाद यूज होती थी,स्थानीय खाद यूज होती थी?!पूंजीवाद ने जबदस्ती ,प्रलोभन से किसानों को रासायनिक दवाइयां यूज करने को कहा।अब...
.शोध क्या कह रहे हैं? जंगल कटे.... आदिवासियों, वन्य समाज को प्रभावित किया..कारण पूंजीवाद व सत्तावाद!!?दोषी अब नस्लवाद!?
रूस की क्रांति को पढ़ो!
मिश्र की क्रांति को पढ़ो!!
क्रांति कौन करता है?!उसका कारण कौन है?!
"ईश्वर दूत ही वास्तव में राजा है।"-इसका मतलब क्या है? हमारा विश्वास।हमारा जहां पर विश्वास है वहीं से ही हम आगे बढ़ कर समाज व अपना विकास कर सकते है ।
सन2011-25ई0 का समय महत्वपूर्ण है
जागो, तभी सबेरा।
वे पूंजीपतियों, पुरोहित्वादियों, सामन्तवादियों, सत्तावादियों आदि को नजरअंदाज कर #संविधानप्रस्तावना के आधार पर देश के सभी नागरिकों का भला करने का उम्दा रखते हैं? वही क्या भविष्य में महत्वपूर्ण नहीं होंगे?
असम्भव भी सम्भव कब हुआ है?
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सरदार पटेल, गांधी, दीनदयाल उपाध्याय ,राजीव दीक्षित,अम्बेडकर, कबीर ,लोहिया आदि की मूर्तियां खड़ी नहीं करनी हैं हमें। हमें अपने जज्बात व आचरण में उनकी वाणियां भरनी हैं।
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हमारे वर्तमान उपन्यास-सन2047:47 से पहले47 के बाद! कि कुछ पंक्तियां ।
अरबियों का प्रचीन धर्म कौन सा था ?
येरुश्लम ( ईज़राईल ) जिसको अरबी में "बैत् अल मुकद्दस" यानी कि पवित्र स्थान बोला जाता है । ईसाई, यहूदी और मुसलमान इसे पवित्र स्थान मानते हैं । जिसमें एक ८ लाख दिनार का एक पुस्तकालय है जो कि तुर्की के गवर्नर ने सुल्तान अब्दुल हमीद के नाम पर बनवाया था ।
# इस पुस्तकालय में हज़ारों की संख्या में प्राचीन पाण्डुलिप्पियाँ संगर्हित हैं जो कि ऊँट की झिल्लियों, खजूर के पत्तों , जानवर के चमड़ों पर लिखी हुईं हैं । इनमें अरबी, इब्रानी, सिरियानी, मिश्री भाषाओं में लिखे भिन्न काल के सैंकड़ों नमूने हैं ।
# इनमें ऊँट कि झिल्ली पर लिखी एक पुस्तक है जिसका नाम है "सैरुलकूल" जो कि अरब के प्रचीन कवियों का इतिहास है । जिसका लेखक है "अस्मई" ।
# इस्लाम के इतिहास में जगद्विख्यात बादशाह हुए हैं जो कि अलिफ लैला की कहानियों के कारण प्रसिद्ध हुए हैं । इनका नाम था "खलीफा हारूँ रशीद" आज से करीब 1336 वर्ष पहले ।
# और यही "अस्मई" नामक लेखक खलीफा के दरबार में शोभायमान था जिसने प्राचीन अरबीयों का इतिहास बड़ी मेहनत से अपनी पुस्तक "सैरुलकूल" में लिखा था ।
तो अस्मई ने बादशाह को दरबार में जो लिखा हुआ इतिहास था वह कुछ ऐसे सुनाया :--
(१) मक्का नगर में एक मंदिर था । जिसको सभी अरबवासी पवित्रस्थान मानते थे । वहाँ दर्शन करने को जाने वाले यत्रीयों के साथ बहुत लूटपाट होती रहती थी और कई बार हत्याएँ होती रहती थीं । जिससे कि यात्रीयों की संख्या में कमी ही देखने को मिलती थी तो ऐसे में अरब की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ना ही था । जिसे रोकने के लिए अरब वासियों ने चार ऐसे महीने निश्चित किया जिसे कि "अशहरुलहराम" ( पवित्र मास ) कहा जाता है । इन महीनों में मेला लगता था जिसे कि "अकाज़ " कहा जाता था ।
(२) अकाज़ में कवि सम्मेलन रखा जाता था । दूर दूर से अरबी कवि अपनी कविताएँ ( कसीदे ) पढ़ने के लिए आया करते थे । जिन १० कवियों की कविताएँ सबसे श्रेष्ठ और उत्तम होती थीं । उनको सोने की पट्टियों पर खुदवा कर या फिर ऊँट की झिल्लियों पर या खजूर के पत्तों पर लिखवाकर मक्का मंदिर में सुरक्षित रखा जाता था । और कवि शिरोमणियों को बहुत भारी ईनाम दिए जाते थे ।
(३) ऐसे ही हर वर्ष कवि सम्मेलन होते रहते थे और अरबी कसीदे मक्का के अंदर सुरक्षित रखे जाते थे ।
(४) जब मुहम्मद साहब ने ईस्लाम का झंडा बुलंद करके यहूदियों की खैबर की बस्ती उजाड़ कर मक्का पर आक्रमण किया तो तब वहाँ पर पड़ी 360 मूर्तीयाँ और अरबी कसीदे तहस नहस करवाने शुरू कर दिए । लेकिन मुहम्मद साहब के लशकर में एक "हसन बिन साबित" नाम का अरबी कवि भी था । जो कि साहित्य प्रेमी होने के कारण मुहम्मद साहब के द्वारा हो रहे कसीदों के नाश को सहन न कर सका । और बहुत से बहुमूल्य कसीदे अपने साथ लेकर सुरक्षित मक्का से निकल गया । और उन कसीदों को अपने पास सुरक्षित रखा ।
(५) ये कसीदे "हसन बिन साबित" के देहान्त के बाद उसकी तीसरी पीढ़ी में "मस्लम बिन अस्लम बिन हसान" के पास परम्परा से आए । और उसी समय में बगदाद में एक "खलीफा हारूँ रशीद" नाम का विख्यात साहित्य प्रेमी था । जिसकी चर्चा दूर दूर तक थी । उससे प्रभावित होकर मस्लम ये कसीदे लेकर मदीना से बगदाद रवाना हुआ ।
(६) मसल्म ने वे कसीदे मुझे ( अस्मई को ) दिखाए । जिनकी संख्या 11 हैं । तीन कसीदे तो एक ही कवि जिसका नाम "लबी बिन अख़्तब बिन तुर्फा" के हैं जो सोने के पत्रों पर अंकित हैं । बाकी 8 कसीदे ऊँट की झिल्लियों पर अन्य कवियों के हैं । ये लबी नामक कवि मुहम्मद साहब से 2300 साल पुराना है । { यानि कि आज से 1336 + 2300 = 3636 वर्ष पुराना हुआ }
(७) मस्लम को 'हजरत अमीरुलमोमीन' ने इसके लिए बहुत बड़ा ईनाम दिया है ।
लबि बिन अख़्तब बिन तुर्फा ने जो अरबी शेयर लिखे हैं उनमें से पाँच शेर इस पुस्तक "सैरुलकूल" में लिखे हैं जिनको अस्मई ने बादशाह के दरबार में पेश किया था :-
(1) अया मुबारक -अल- अर्जे युशन्निहा मिन-अल-हिन्द । व अरदिकल्लाह यन्नज़िजल ज़िक्रतुन ।।
अर्थात :- अय हिन्द की पुन्य भूमि तूँ स्तुति करने के योग्य है क्योंकि अल्लाह ने अपने अलहाम अर्थात् दैवी ज्ञान को तुझ पर उतारा है ।
(2) वहल बहलयुतुन अैनक सुबही अरब अत ज़िक्रू । हाज़िही युन्नज़िल अर रसूलु मिन-आल-हिन्दतुन ।।
अर्थात् :- वो चार अलहाम वेद जिनका दैवी ज्ञान ऊषा के नूर के समान है हिन्दुस्तान में खुदा ने अपने रसूलों पर नाज़िल किए हैं ।
(3) यकूलून-अल्लाहा या अहल- अल- अर्ज़े आलमीन कुल्लहुम । फत्तबाऊ ज़िक्रतुल वीदा हक्क़न मालम युनज्ज़िलेतुन ।
अर्थात् :- अल्लाह ने तमाम दुनिया के मनुष्यों को आदेश दिया है कि वेद का अनुसरण करो जो कि निस्सन्देह मेरी ओर से नाज़िल हुए हैं ।
(4) य हुवा आलमुस्साम वल युजुर् मिनल्लाहि तन्ज़ीलन् । फ़-ऐनमा या अख़ीयु तबिअन् ययश्शिबरी नजातुन् ।।
अर्थात् :- व ज्ञान का भँडार साम और यजुर हैं जिनको अल्लाह ने नाज़िल किया है । बस भाईयों उसी का अनुसरण करो जो हमें मोक्ष का ज्ञान अर्थात् बशारत देते हैं ।
(5) व इस्नैना हुमा रिक् अथर नाहिसीना उख़्वतुन् । व अस्ताना अला ऊँदव व हुवा मशअरतुन् ।।
अर्थात् :- उसमें से बाकी के दो ऋक् और अथर्व हैं जो हमें भ्रातृत्व का ज्ञान देते हैं । यो कर्म के प्रकाश स्तम्भ हैं, जो हमें आदेश देते हैं कि हम इन पर चलें ।
अब इन पाँच शेयरों से स्पष्ट है कि लबी नामक कवि वेदों के प्रती कितना आस्थावान था । और उन प्रमाणों को पढ़कर कोई मुसलमान भी नहीं मुकर सकता है क्योंकि वेदों न नाम स्पष्ट आया है । और न हि ये कह सकता है कि ये वो वाले वेद नहीं जिसको आर्य लोग मानते हैं । भारत में ही ब्राह्मणों की पतित शाखा थी जिसको शैख बोला जाता था । वही ईरान होते हुए अरब में बसी है । क्योंकि अरब में घोड़े उत्तम नसल के पाए जाते हैं ( आज भी ) । तो जिस देश में उत्तम घोड़े हों उस स्थान को शैख ब्राह्मणों ने अर्व नाम दिया था । अर्वन् संस्कृत नाम है घोड़े का । और अर्व कहते हैं अश्वशाला को । मुहम्मद साहब के कुछ समय पहले तक अरब में शैवमत, बौद्धमत और वाममार्ग का प्रचार रहा है जिस कारण मुहम्मद साहब को बौद्धों के मूर्तीयों से उग्र घृणा हो गई थी । जिसको उन्होंने बुतपरस्त कहा है । इसका प्रमाण हम अगले लेख में डालेंगे कि मुहम्मद साहब के समय में अरब में कौनसा धर्म प्रचलित था ।
इसमें कितनी सच्चाई है यह तो पुरातत्व विभाग ही जानता है। हमने एक बार लिखा था कि दुनिया के सभी देशों की पुरातत्विक रिपोर्ट भारतीयों के पक्ष में है तो फेसबुक पर एक मुसलमान गालीगलौज करने लगा था।हमने उसको इतना ही जबाब दिया था-मनोविज्ञान जानता है कि गालीगलौज कौन करता है?
#अशोकबिन्दु
बसुधैव कुटुम्बकम!
.................#अशोकबिंदु
सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर!
हमारी सभ्यता व संस्कृति मजहबीकरण नहीं सीखाती।
आज से 600वर्ष पूर्व काबा हो या योरुषलम, रोम हो या वोल्गा .....सन्त परम्परा का मजहबीकरण न हुआ था।कोई भी कहीं आ जा सकता था।
हमारे अपने अपने मकान व झरोखे अलग अलग हो सकते है, आसमान को ताकने का मतलब अपने मकान के झरोखे से सिर्फ चिपक जाना नहीं है। #गुरुनानक हम आसमानी यों ही नहीं हो सकते?हममें आसमानी यों ही नहीं उतर सकता? हमारा ये #शरीरपांच तत्वों से बना है। #आकाश/आसमानी तत्व में हम केंद्रित यों ही नहीं हो सकते?
कक्षा आठ में आते आते हम आत्म अभिव्यक्ति लेखन करने लगे। #किशोरावस्था एक तूफानी दशा होती है। अनेक विकृतियों, छापों, विकारों, प्रतिकूलता आदि के जंगल में #आत्मकेन्द्रण की कोशिसों ने हमें एक अज्ञात/शून्य/आकाश की ओर का आभास कराया है। धर्मस्थलों से जुड़ने के साथ ही प्रकृति के बीच हम आँख बंद कर तुरन्त ही एक अज्ञात आनन्दित दशा के आभास के अस्तित्व की उम्मीद में रहने लगे। इस जीवन तनबल, कुलबल, धनबल, जाति बल, पन्थ बल,जन्मजात उच्चवाद, जन्मजात निम्नवाद आदि के प्रभाव से मुक्त रहे हैं।पूर्व जन्मों का संस्कार था हम होश संभालते ही ध्यान के अनेक क्रियाओं व विभिन्न प्रयोगों से गुजरने लगे।अनुभव में आया कि समाज, समाजिकता से परे स्वतंत्र मन से आत्मकेंद्रित होने से हम आसमानी शक्तियों को अपने अंतर में उतरते देख सकते हैं। गांधी ने कहा है-स्वच्छता ही ईश्वर है। गीता का विराट स्वरूप ,श्री अर्द्ध नारीश्वर अवधारणा, सात शरीर व कुंडलिनी जागरण, अनन्त यात्रा को ओर, नए भारत की खोज,क्रांति बीज आदि पुस्तकों ने हमें समाजिकता से परे मानवता, आध्यत्म की ओर की प्रेरणा को विश्वस्त किया। #शांतिकुंज,#आर्यसमाज,#निरंकारीसमाज आदि का प्रभाव बचपन में रहा ही जहां हम जन्मजात उच्चवाद, जन्मजात निम्नवाद, जाति गत #पुरोहितवाद की भावना से मुक्त होने का अवसर मिला।
धर्म स्थलों में हम आश्रम पध्दति, गुरुद्वारा को ही महत्व देते रहे हैं।साहित्य मजहबी करण, कर्मकांड आदि से मुक्ति युक्त।
वसुधैव कुटुम्बकम!
ये भाव कहाँ से आता है?गीता में #समदर्शी का भाव आता है।#बुद्ध व #महावीर के दर्शन से हमें ये भाव प्राप्त होता है।
हम किस कर्मकांड, जिस पन्थ से जुड़े हैं ये महत्वपूर्ण नहीं है।महत्वपूर्ण है कि हमारा हमारे शरीर व जगत के प्रति क्या नजरिया बन रहा है?
हमारी #धारणा अति महत्वपूर्ण है।
हमारी धारणा सार्वभौमिक ज्ञान हो। #सहजमार्ग #राजयोग में हम सर्वोच्च अन्नतजगत की धारणा स्वीकार कर प्रयत्न शील रहते हैं।
#शेष
#अशोकबिंदु
@अशोकबिंदु::दैट इज..?! पार्ट01....n!!
www.ashokbindu.blogspot.com