*बेटियों की संख्या में यह गिरावट*
उफ् !नारी शक्ति मातू शक्ति, कन्याओं का पूजन! भारतीय संस्कृति स्त्री को बराबर का दर्जा नहीं ,पुरुष से भी बड़ा दर्जा देता है.नारी को मातृ शक्ति व कन्याओं को देवि शक्ति का दर्जा दिया जाता है.यह सब शास्त्रो व प्रवचन तक ही ठीक है.
अरे,काम बने अपना भाड़ में जाए जनता!औरत जाति काहे के लिए है?घर में रह कर खामोशी से पुरुष की जूती तले रह.हमें उसके हड्डी मास के शरीर से मतलब है,उसके भाव मनस आत्म शरीर से नहीं.सन्तान के नाम पर तो लड़के ही ठीक! देख रहे हो जमाना,लार टपकाते कुत्ते की तरह सूंघता फिरता है कि कहां हैं लड़कियां ? सामंती स्टाइल ही ठीक है.लड़कियां पैदा करने से कितनी समस्यायें आ खड़ी होती हैं?रुपया हो सम्पत्ति हो,औलादों के शादी के लिए लड़कियां मिल जाएंगी ही.नीचे तबके वाले जाने?और फिर नीचे तबके वालों के लड़कों के सामने का समस्या ?महानगरीय स्टैण्डर्ड कल्चर में आत्मनिर्भर व रुपया फेँकू बापों की लड़कियां अब स्वयं लम्बे तगड़े चिकने लड़कों को रखती हैं और न जाने क्या क्या करवाती हैं ? ऊपर से अपना रुपया भी खर्च करती हैं.बात है शादी की,जाति बिरादरी राज्य देश की शरहदों की न माने तो का कमी लड़कियों की?इतनी बड़ी आबादी ,लेकिन नब्वे प्रतिशत आबादी का स्तर व नजरिया क्या है?ऊर्ध्वार्धर में नहीं क्षैतिज दिशा है,सभी के ऊर्जा की. ऊपर से अतृप्त मन ,अशान्ति ,असन्तुष्ट व अविश्वास.उसको बहला फुसला कर जाति - समाज के ठेकेदार सिर्फ अपना उल्लू सीधा किया जा सकता है लेकिन कानून ,मानवता, सुप्रबन्धन,आदि के लिए दशा दिशा नहीं दी जा सकती?आबादी का स्तर सुधारने के लिए परिवार व उत्तराधिकार कानूनों पर पुनर्विचार कर परिवर्तन आवश्यक है.उत्तराधिकार व वंशवाद के कारण लिंगानुपात प्रभावित है .परिवार बसाने की अनिवार्य सोच के कारण आबादी का स्तर उच्च नहीं हो पाता.जो अपने शरीर व स्वास्थ्य के भले की नहीं सोंच पाते व अपना स्तर नहीं सुधार पाते,वे अपने बच्चों का स्तर क्या सुदारेंगे?आज सत्तर प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं तो क्या इसके लिए माता पिता दोषी नहीं हैं?आज भी काफी तादाद में बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहें तो इसके लिए माता पिता दोषी नहीं हैं?ऐसे में क्या सभी दम्पत्तियों को सन्तान उत्पन्न करने का अधिकार मिलना चाहिए ?मेरा विचार है -नहीं.
ASHOK KUMAR VERMA'BINDU'