हिन्दू हो या मुसलमान या अन्य,हर कोई का धर्म है-सनातन.इस बात को कितने
मानने वाले हैँ?हमे हर कोई रुका हुआ दिखता है.कोई भी सनातन पथ का पथिक
नहीँ दिखता है.....
सेक्स सिर्फ सन्तानोत्पत्ति के लिए है..नारी शक्ति मातृशक्ति है,यहाँ तक
की अपनी पत्नी भी माँ स्वरुपा है....
मानव का उद्देश्य है-पुरुषार्थ.पुरुषार्थ यानी कि धर्म अर्थ काम व मोक्ष
मेँ संतुलन . शादी का उद्देश्य है-धर्म.. धर्म क्या है?धर्म है-प्रकृति व
नारी का सम्मान,दया व सेवा....भोग की भावना का नियमन करना...पच्चीस साल
तक ब्रह्मचर्य जीवन जीना.आयुर्वेदिक व योग मय जीवन जीना..आज पाँच साल का
बच्चा भी ब्रह्मचर्य जीवन नहीं जी रहा है."तम्मंचे पे डिस्को,शीला की
जवानी"-मेँ व्यस्यत है...शिक्षा का प्रारम्भ अब योग व अध्यात्म से नहीं
अक्षर व अंक की रटन पद्धति से हो रहा है.शादियाँ मी अब भॉतिक चमक धमक मेँ
मूल दर्शन खो गयीं हैँ.ब्रह्मचर्य जीवन,वानप्रस्थजीवन व सन्यास जीवन
जीवन से विदा हो चुका है.. बुजुर्ग माया मोह मेँ मरते दम तक चिपके रहते
हैँ....सनातनी होने का मतलब सिर्फ हवन या मृर्ति पूजा मेँ रहना नहीँ
है...जाति या मजहब की भावना मेँ जीना नहीँ है.
हम व जगत के दो अंश हैँ-ब्रह्मांश व प्रकूतीअंश इसी संज्ञान की नींव पर
हम तो हर सोँच रखते हैँ... ,
--
संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>
शनिवार, 31 मई 2014
मंगलवार, 27 मई 2014
हर वक्त ध्यान रखेँ कि हम व जगत के दो ही अंश-प्रकृति व ब्रह्म...
सन 1947व2014का कलैण्डर एक ही है.सन1947से कांग्रेस का शासन शुरु हुआ अब
सन2014 से मोदी का शासन.उस वक्त भी एक नये यूग का प्रारम्भ हूआ था अब भी
एक नये युग का प्रारम्भ हूआ है.
इस नये हालात मेँ पहला विरोध व मतभेद तमिलनाडु व दुसरा विरोध व मतभेद
कश्मीर से उभरा है..अब भी लोग जनतंत्र के खिलाफ खड़े हैँ वे बातचीत व बहस
का सिलसिला शुरु नहीँ करना चाहते .दमन व हिंसा चाहते हैँ.
बातचीत व बहस या फिर दमन व हिंसा को चाहने से पहले परम ज्ञान को अवश्य
जाने.सार्वभौमिक ज्ञान को को अबश्य जानेँ.परम सत को अवश्य समझेँ.
हर वक्त ये अवश्य ध्यान रखेँ कि हम व जगत के दो ही अंश हैँ-प्रकृति अंश व
ब्रह्म अंश.
--
संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>
सन2014 से मोदी का शासन.उस वक्त भी एक नये यूग का प्रारम्भ हूआ था अब भी
एक नये युग का प्रारम्भ हूआ है.
इस नये हालात मेँ पहला विरोध व मतभेद तमिलनाडु व दुसरा विरोध व मतभेद
कश्मीर से उभरा है..अब भी लोग जनतंत्र के खिलाफ खड़े हैँ वे बातचीत व बहस
का सिलसिला शुरु नहीँ करना चाहते .दमन व हिंसा चाहते हैँ.
बातचीत व बहस या फिर दमन व हिंसा को चाहने से पहले परम ज्ञान को अवश्य
जाने.सार्वभौमिक ज्ञान को को अबश्य जानेँ.परम सत को अवश्य समझेँ.
हर वक्त ये अवश्य ध्यान रखेँ कि हम व जगत के दो ही अंश हैँ-प्रकृति अंश व
ब्रह्म अंश.
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