ईसा मसीह यात्रा पर थे।कहीं पर एक औरत को गांव के लोग उस पर पत्थर आदि मार रहे थे।
ईसा मसीह बोले -सावधान! थोड़ी देर रुको मेरी भी सुन लो।हम भी इस पर पत्थर मरेंगे।पहले सोचों हम स्वयं क्या हैं?क्या हम कोई पाप नहीं करते?हम स्वयं क्या कोई पाप नहीं करते?क्या हम भविष्य में कोई पाप नहीं करेंगे?
हमने कहीं प्रसंग पढ़ा है-अम्बेडकर के जीवन में एक लम्हा ऐसा भी था कि वे आत्म हत्या का विचार भी ले आये थे। लेकिन अंतर्द्वंद्व में वे इस निष्कर्ष में पहुंचे कि हमें जिंदा रहना है।हम जैसे अनेक भाई बन्धु हैं जो अभी संघर्ष करने की हिम्मत नहीं रखते। उनका साहस हमें बनना है। मानव समाज में अब भी अनेक मानव हैं जिन्हें मानव नहीं समझा जाता।
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