सिर्फ सरकारें ही दोषी हैं,
ऑक्सीजन नहीं मिलती है।
जनतंत्र में जनता ही दोषी है,
वह किस आधार पर अपना प्रतिनिधि चुनती है?
जनता जिसे स्वयं चुने,
उसे ही स्वयं दोषी बनाए?
धन्य,
जनता की मूर्खता!
विधायक, सांसद वह आखिर क्यों चुनती है?
जनतंत्र में जन ही दोषी है,
हर हालत में जन ही दोषी है।
जन को स्वयं तय करना होगा-तन्त्र,
तब होगा तन्त्र जनतंत्र,
जाति के अपराधियों को-
दरबज्जे पे आके खड़े हुए हाथ फैलाए को,
वोट देना करो बंद,
हे जन स्वयं आगे बढ़ो-
स्वयं किसी के दरबाजे पे जा कर किसी को चुनों,
छोड़ों दल द्वारा तय प्रत्याशी,
स्वयं ही प्रत्याशी चुनो,
चंदा दे उसका नामांकन कराओ।
जन को स्वयं तय करना होगा-
तन्त्र हो कैसा?
अपने मन का तन्त्र पाने को ,
स्वयं जन को सड़कों पर आना होगा-
तब होगा तन्त्र जनतंत्र।
क्षेत्र के कुछ परिवार से स्वयं की इच्छा से खड़े होने वाले-
कैसे हो गए जन प्रतिनिधि?
किसी जाति का व्यक्ति खड़ा हो ,
जाति का समर्थन पाने वाला -
कैसे हो गया जनप्रतिनिधि?
इस लिए कहता हूँ-
जनतंत्र में है जन दोषी,
जन को स्वयं अपना प्रत्याशी खड़ा करना होगा,
स्वयं उस पर अपने कर्तव्यों को थोपना होगा।
जन तन्त्र में जनता का तन्त्र को दोष देना,
जनता की मूर्खता है।
#अशोकबिन्दु
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