5 अप्रैल ::जगजीवनराम जन्मदिन!!
आदि काल से ही कुछ समान होता आया है।
धरती के पहले अधिकारी
वन्यसमाज,जीवजन्तु,जंगल,कृषक,पशुपालक,लघु व कुटीर उद्योग,समूह व सहकारी संस्कृति के खिलाफ बड़ी मिठास से भी षड्यंत्र रचे जाते रहे।
बसुधैब कुटुम्बकम,जगत का कल्याण हो,सागर में कुम्भकुम्भ में सागर,महाकाल का विराट रूप आदि का प्रवचन देने वाले अब अपने ही परिजनों व रिश्तेदारों से जंग करते नजर आ रहे हैं। दूसरी तरफ सत्तावाद,पूंजीवाद, जन्मजात पुरोहितवाद, जनमजात उच्चवाद, जन्मजात निम्नवाद आदि आदि काल से मानव समाज व वन्य समाज को कुचलते मसलते रहे हैं।
विश्व का आर्थिक व सामाजिक लोकतंत्र पूंजीवाद, सत्तावाद आदि की बलि चढ़ता रहा है।
हमारे संविधान सभा ने सम्विधान की प्रस्तावना में समाजवाद आदि शब्दों को डाल तो दिया लेकिन अभी तन्त्र से पूंजीवाद, सत्तावाद, सामन्तवाद, जातिवाद आदि दूर नहीं हुआ है।
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