सेवा कार्य पर निबन्ध की भूमिका.....#अशोकबिन्दु
जगत में जिधर भी निगाह जाती है उधर गतिशीलता नजर आती है जो पेड़ पौधे हैं वह भी परिवर्तनशील है उनमें स्थितियां परिवर्तित होती हैं हम मानव जाति से आते हैं मानव जाति के भी कर्म हैं कर्तव्य हैं जिनका जीवन में काफी महत्व है बिना कर्म किए व्यक्ति एक लाश के समान है कर्म जीवन का आधार है गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं हे अर्जुन संसार की वस्तुओं को पाने के लिए तुझे कर्म करने ही होंगे हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने से कुछ भी हाथ नहीं लगने वाला हमे कोशिश करते ही रहना चाहिए।
हमारी वर्तमान स्थिति पिछले कर्मों का परिणाम है अब हम वर्तमान में बेहतर कर्म करके अपना भविष्य सुधार सकते हैं बड़े भाग्य मानुष तन पावा..... कर्म आखिर कर्म है क्या हमें इस पर भी विचार करने की आवश्यकता है।
कर्म तो जगत में हर प्राणी कर रहे हैं।लेकिन उन कर्मों का स्तर क्या है?यह महत्वपूर्ण है।आज भी लोग कहते मिल जाते है-अपना काम बनता भाड़ में जाये जनता। गीता में अर्जुन श्री कृष्ण से पूछते हैं-कर्म क्या है?श्रीकृष्ण कहते हैं-यज्ञ।अर्थात यज्ञ ही कर्म है।यज्ञ ?क्या अग्नि कुंड में मन्त्र उच्चारण के साथ आहुतियां डालना?नहीं, यज्ञ है-अभियान, प्रकृति अभियान। जहां कर्म है कर्तव्य, सिर्फ कर्तव्य।कोई अधिकार नहीं।प्रकृति अभियान रूपी अग्नि कुंड में अपने को आहुत कर देना।
सेवा कार्य ही सच्चा कर्म है, जो कर्तव्य है।जो निष्काम है।परिवार भावना में एक परिवार के अंदर परस्पर सदस्य कैसे आचरण में बंधे होने चाहिए?धार्मिक अनुष्ठानों में सिर्फ चीखने से काम नहीं चलता कि -"जगत का कल्याण हो-जगत का कल्याण हो,अधर्म का नाश हो,सर्वेभवन्तु सुखिनः.... बसुधैव कुटुम्बकम..... आदि आदि"। नफरत, हिंसा तब विदा हो जानी चाहिए।सेवा,मानवता तब महत्वपूर्ण हो जाना चाहिए।
#अशोकबिन्दु
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