हमारे अंदर जो है,हमने वह लिख दिया, यही हमारे लिए अभिव्यक्ति है।
हम वर्तमान में जिस स्तर पर है आज उस पर रह अभिव्यक्ति की है वह वर्तमान की है।कल हम अन्य किसी स्तर पर हो सकते हैं, तब अभिव्यक्ति उस स्तर पर हो होगी।
इसमें तर्क की, चर्चा की कोई गुंजाइश नहीं। अभिव्यक्ति अभिव्यक्ति है।बस, वह मर्यादा में होनी चाहिए।
जब हम कक्षा 8 के विद्यार्थी थे तभी से लेखन चिंतन मनन मेंेडड टेशन आद में लगे हुए हैं । हमने महसूस किया मानव और मानव समाज में जो भी हो रहा है वह 75% से अधिक असल के सम्मान से दूर है प्रकृति अभियान के सम्मान से दूर है। हम अपने अंदर ही अंदर काफी कुछ महसूस करते रहे हैं कि क्या होना चाहिए क्या नहीं होना चाहिए ?हमारे अंदर वह है जो स्वत:, निरंतर है लेकिन हम उसके संदेशों को नजरअंदाज कर देते हैं । पांच तत्वों से हमारा शरीर बना है ।पांच तत्वों की मर्यादाए हैं । आत्मा की मर्यादाएं हैं । जिनकी ओर से हम समझ ही नहीं रखते ।हमारे अंदर ...... हम अंतर्मुखी होकर भी जगत की चकाचौंध से प्रभावित रहते हैं । ऐसे में हम अपने अंदर की अभिव्यक्ति को लेखन के माध्यम से व्यक्त करते रहे हैं । हमें इस से मतलब नहीं है कि सामने वाला उसके विरोध में है या समर्थन में ,अभिव्यक्ति अभिव्यक्ति है । उसे तर्क नहीं चाहिए ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें