कोरोना संक्रमण के दौरान प्राइवेट कर्मचारियों, संस्थाओं, शिक्षकों आदि की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गयी है।आत्महत्या करने की दर में 11प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
कोरोना के दौरान हमारी पुरानी सोंच, नजरिया, आदतों, ध्यान पध्दतियों, आयुर्वेद रुझान आदि ने हमें जीवन जीवन जीने का सम्भल दिया है। हमने भौतिकता से दूरी रख ,फिजिकल डिस्टनसिंग से मजबूती पाई है।मानव समाज व उसके प्रबन्धन ने हमें रुलाया ही है।
निजीकरण ,पूंजीवाद, जातिवाद, सामन्तवाद, सत्तावाद ने आम आदमी के आंसू पोछने में सफलता नहीं पाई है।
कोरोना संक्रमण के दौरान घर के अंदर ध्यान, साधना का स्तर सघनता पाया है।भगवा की चमक भी बड़ी है।
लेकिन आत्महत्या करने की दर में 11 प्रतिशत की वृद्धि क्या दर्शाती है? मानव प्रबन्धन, मानव समाज, विभिन्न सस्थाओं का हैतु परोपकार नहीं रह गया है।जनतंत्र का हेतु जनता की सेवा व आम आदमी को बचाना नहीं है।
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