गुरुवार, 10 जून 2010
अखण्ड ज्योति:हिम्मते���रद मददेखुदा
जीवन मेँ सीखने की प्रक्रिया का बड़ा महत्व है.सीखने के स्रोत एवं ढंग अनेक हैँ.जिसका एक अंग है- स्वाध्याय.मेरे जीवन मेँ गीता, अखण्ड ज्योति पत्रिका,आर्ष पुस्तकोँ,ओशो साहित्य ,आदि महत्व पूर्ण रहे हैँ.वैज्ञानिक अध्यात्म के परिपेक्ष्य मेँ अखण्ड ज्योति पत्रिका मेरे लिए काफी सहयोगी रही है.बाल्यावस्था से मैँ इसका अध्ययन करता रहा हूँ.हालाँकि इस वक्त मेँ जनगणना के कार्य मेँ लगा हूँ फिर भी कुछ समय स्वाध्याय के लिए निकाल लेता हूँ.अभी मेँ मई ,2010 अंक मेँ पृष्ठ संख्या 40 पर' हिम्मतेमरद मददेखुदा'लेख पढ़ ही पाया था कि मेरे मन मेँ अनेक विचार उमड़ने लगे.उत्तरी ध्रुव की खोज करने वाले अमेरिका के राबर्ट ई0 पेरी की तरह अनेक ऐसे महापुरुष धरती पर हुए है जिन्होने कठिन से कठिन दुर्गम परिस्थितियोँ ,परिवार व समाज के प्रतिकूल व्यवहारोँ तक को सहा लेकिन अपने लक्ष्य से नहीँ हटे.महापुरूषोँ के जीवन से हमेँ सीख मिलती है कि हरहालत मेँ हमेँ अपने लक्ष्य से विचलित नहीँ होना चाहिए.किसी ने कहा है कि शिक्षा के चार रूप हैँ -शिक्षा ,स्वाध्याय,अध्यात्म,तत्व ज्ञान.शिक्षा का पहला रूप सिर्फ भौतिक जीवन को बेहतर बनाने तक सीमित है,जिसे भी हम काम व अर्थ के कारण बेहतर नहीँ बना पाते.जीवन को सुन्दर बनाने के लिए धर्म अर्थ काम मोक्ष मेँ सन्तुलन आवश्यक है. जो शिक्षा के अन्य तीन रूपोँ के बिना असम्भव है.मन पर हमेशा समृद्ध विचारोँ को हावी रखना आवश्यक है जो कि निरन्तर स्वाध्याय सत्संग ध्यान योग आदि से सम्भव है.मन पर हमेशा समृद्ध विचारोँ......?!भाई!सिर्फ कोरे विचारोँ से क्या होता है?क्योँ नहीँ,कोरे विचारोँ का भी अपना अस्तित्व होता है?उनमेँ भी ऊर्जा होती है.हमारे विचार हमारा नजरिया होते हैँ जिससे जीवन प्रभावित होता है.सभी समस्याओँ की जड़ मनस है जिसको निरन्तर प्रशिक्षण मेँ रखना आवश्यक है.
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1 टिप्पणी:
सभी समस्याओँ की जड़ मनस है जिसको निरन्तर प्रशिक्षण मेँ रखना आवश्यक है-सत्य वचन!
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