आज नारी को आसरा नहीँ,साथ चाहिए
खमोशी नहीँ,सुलझी सी बात चाहिए
अब वो परदे के पीछे की आन नहीँ
घर की चारदीवारी की शान है
निकली है वो सपनोँ को पाने के लिए
लक्ष्य तक ले जाने वाला एक बाट चाहिए
अपनी व्यथा न कहकर
छुप छुपकर रोने के दिन बीत गए
सबके दिलोँ को चीरकर
रखनेवाली बुलन्द आवाज चाहिए
हमेशा से करती आई है
सबके लिए जीवन न्यौछावर
अब बिना पंखोँ के ही
न रुकने वाली उड़ान चाहिए
देवी नहीँ बनना चाहती है वो
बस उसे अब अपनी पहचान चाहिए .
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