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रविवार, 27 जून 2010

गुरु हरगोविन्द सिँह ��यन्ती:27जून

आषाढ़ कृष्ण प्रथमा,2067विक्रम सम्वत,रविवार!

11.00AMको यज्ञ!रामेश्वर दयाल गंगवार'आर्य'पुरोहित!हेतु श्रुति कीर्ति का नामाकरण संस्कार!



क्योँ ये खिन्नता?

06.43PM !मैँ इस लेख को टाईप कर रहा था कि पत्नी के मोबाइल प्रियांशी की काल आगयी.चालीस मिनट पहले ही यहाँ(बीसलपुर आवास )से निकली थी.इस लेख को टाइप करते रहने के दौरान ही मैँ सुरक्षित यात्रा के लिए कामना मेँ था और अनुमान लगाता जा रहा था कि कितनी यात्रा तय की जा चुकी होगी?6.34PMपर मैने अनुमान लगा लिया था कि अब प्रियांशी आदि खजुरिया पहुँच चुकी होँगी.इच्छा तो थी कि अभी काल करके पता लगाएँ कि सही सलामत पहुँची कि नहीँ?लेकिन ,यह खिन्नता क्योँ?6.43PMपर जब प्रियांशी का फोन आया तो मेरी पत्नी उससे कुछ बात करने के बाद हमसे बोली कि प्रियांशी आप से बात करना चाहती है लेकिन मैँ इस वक्त उससे बात नहीँ करना चाहता था?मैने मोबाइल स्वीच आफ कर दिया.मेरी पत्नी ने फिर स्वीच आन कर प्रियांशी को काल किया-हम से ही बात कर लिया करो,देख लिया अपने मौसा जी को?


लेकिन मेरी खिन्नता?

दरअसल,प्रियांशी और मैने एक दिन पूर्व ही निर्णय ले चुके थे कि हम दोनोँ सोमवार,28.06.2010 को सुवह खजुरिया चलेँगेँ लेकिन प्रियांशी आज ही चालीस मिनट पहले ही चली गयी.हूँ......?!खिन्नता का मनोविज्ञान ! हमेँ अभी अन्तर्साधना के पथ पर आने वाले अनेक अवरोधोँ को तोड़ना है.


¤सिक्ख सम्प्रदाय व जीवन¤


जीवन मेँ सीखने व अनुभव का बड़ा महत्व है.सिक्ख परम्परा जिसका आधार है.जीवन को सुन्दर व गतिशील बनाये रखने के लिए जीवन भर सिक्ख परम्परा को बनाए रखना आवश्यक है.जो सिर्फ काम व अर्थ के लिए अपने जीवन मेँ व्यवहार करते हैँ वे सनातन यात्रा व अपनी आत्मा की पकड़ से हीन होते हैँ.ऐसोँ को निरन्तर सत्संग व सिक्ख परम्परा मेँ जीना आवश्यक है.निरन्तरता ही उन्हेँ उनके मन पर सुविचारोँ व सद्भावनाओँ का आवरण देती है.

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