(मानवता प्रकृति व सार्वभौमिक ज्ञान पर समाजिकता का दबाव व चोट!)
समाज व सामजिकता तो कायर होती है क्योंकि वह अन्धविश्वसों, कुरीतियों के खिलाफ जंग नहीं लड़ती।
वह सम्प्रदायों, जातिवाद में जीती है। उसका धर्म नहीं होता।
धर्म तो व्यक्ति का होता है।व्यक्तित्व तो व्यक्ति का होता है। मानवता तो मानव का होती है।
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