लिए भी घातक है .इसको हम इस तरह से समझ सकते हैँ कि जैसे समाज एक जंजीर
है और उसकी कड़ियां व्यक्ति .कड़ियां टूटने से जंजीर का अस्तित्व खत्म होता
ही है कड़ियां बिखर जाती हैँ ,तन्हा हो जाती हैँ .चार वर्ग ब्राह्मण
,क्षत्रिय ,वैश्य ,शूद्र इसलिए स्थापित किए जाते हैँ क्योँकि समाजिक
संरचना अर्थात सोशल नेटवर्क अति आवश्यक है .व्यक्ति चाहेँ विभिन्न स्तर
या व्यक्ति के ऋणात्मक क्योँ न हो लेकिन व्यक्तियोँ के बीच पारस्परिक
सम्बंध होने चाहिए .धर्म ,अध्यात्म आदि का मतलब ये नहीँ है ,अपने
कर्त्तव्य निभाने का मतलब ये नहीँ है कि किसी व्यक्ति से द्वेष या मतभेद
रख उससे दूर रहेँ .घर से निकलने के बाद हम समाज मेँ हैँ ,तब समाज के
व्यक्तियोँ को ऊंच या नीच दृष्टि से देखना अधर्म है व अमानवता .
वह प्रकाश प्रकाश नहीँ जो अंधेरोँ से दूर भागे .अंधेरोँ मेँ ही प्रकाश
का महत्व है .कबीर ,ईसा मसीह .दयानन्द ,बुद्ध आदि किसी गांव व नगर मेँ
जाते थे तो इसका मतलब यह नहीँ था कि उनका नियम था वे तामसी या दुष्ट
व्यक्ति से नहीँ मिलेंगे .ब्राह्मण ,पुरोहित ,संत ,उपदेशक ,शिक्षक
,समाजसेवी आदि गाँव व नगर के दुष्ट व तामसी व्यक्तियोँ से दूर रहने वाले
ढ़ोँगी ,पाखण्डी व अज्ञानी होते हैँ.
समाज आज प्रदूषित क्योँ हो रहा है ? इसलिए क्योँकि गैरतामसी व
गैरदुष्ट भी अपने कर्त्तव्य से विचलित हो गये हैँ व सिर्फ ढ़ोग व पाखण्ड
से जुड़े हैँ .
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संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>
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