समाज व देश के हालातोँ के लिए मतदाता ही दोषी होता है.मतदान करने काफी
मतदाता घर से बाहर निकलता नहीँ .मतदान करते वक्त अब भी नब्बे प्रतिशत से
ज्यादा व्यक्ति संकीर्ण मानसिकता से ग्रस्त है.
(1)अधिक से अधिक लोग वोट डालने निकलेँ .ऐसी सोंच ठीक नहीँ कि वोट डालने
से हमारा क्या लाभ .?
(2)अब भी सामन्तवादी सोंच व गुलामी मानसिकता से हम आप शिकार हैँ.लोकतंत्र
मेँ मतदाता मालिक होता है न कि उसके द्वारा चुना जाने वाला जनप्रतिनिधि.
(3)सूचना पाने का अधिकार समाज के हित मेँ मतदाता को अनिवार्य मानना चाहिए .
(4)मतदाता को सत,सार्वभौमिक ज्ञान तथा कानूनी लक्ष्योँ को जानना चाहिए .
(5)प्रत्येक जाति व मजहब के मतदाताओँ से परस्पर निरन्तर सम्वाद होने
चाहिए और निजस्वार्थ ,जाति ,मजहब आदि के भाव से ऊपर उठ कर क्षेत्र ,समाज
व देश हित जनप्रतिनिधियोँ के चुनने हेतु ईमानदारी से परिचर्चा होनी चाहिए
.
(6)मतदाता अपना जनप्रतिनिधि उसे चुनेँ जो अपना अधिकाँश समय जनता के बीच
बिताये और उसका ऐसा नेटवर्क हो जिससे वह परिवार के अंदर की समस्याओँ तक
को जाने .मतदाता उसके पास न जाए वरन वह मतदाता के पास जायेँ या अपने
नेटवर्क को सक्रिय करे.
(7)वार्ड व गांव स्तर पर नागरिक समितियाँ होँ जोँ संवैधानिक लक्ष्योँ
,योजनाओँ से परिचित होँ.जिनके द्वारा ही प्रत्याशी चयनित किए जाएँ .
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संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>
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