इस जगत मेँ जो अपने को कहता फिरता है कि मैँ हिन्दू हूँ ,मैँ मुसलमान हूँ ,मैँ कुणवी हूँ,मैँ ठाकुर हूँ ,मैँ बिहारी हूँ ,मैँ मराठी हूँ ,मैँ जापानी हूँ ,मैँ हिन्दुस्तानी हूँ आदि.ये हमारा वास्तविक परिचय नहीँ है .ये हमारी धार्मिकता व धार्मिकता नहीँ.
"सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तय: सम्भवन्ति या : ।
तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रद पिता ।।"
श्रीमद्भगवद्गीता (14.4) के अनुसार सभी योनियोँ के जीवोँ का जन्म इस भौतिक प्रकृति से होता है और बीज परमसत्ता चेतनास्वरुप से प्राप्त होता है .मैँ तो यह कहता हूँ कि हमसब पचास प्रतिशत ब्रह्मंश व पचास प्रतिशत प्रकृतिअंश हैँ.इसके अलावा हमारा अन्य परिचय ड्रामा ,अभिनय ,पाखण्ड आदि है.ऐसे मेँ मैँ यदि समाज के अन्य व्यक्तियोँ की भांति धार्मिकता व आध्यात्मिकता मेँ सरीक नहीँ होता ,विरोध करता हूँ तो लोग मुझे बागी या असामाजिक मानते हैँ और न जाने क्या क्या कमेंटस करते हैँ .जिससे प्रेरणा पाकर मैने इस ब्लाग को नाम दिया-<सामाजिकता के दंश> .क्योँकि सामाजिकता को स्वीकार करने का मतलब है,कूपमण्डूकता ,जातिवाद,मजहबवाद ,चापलूसी,हाँहजूरी ,अज्ञानता,गैरकानूनी तथ्य आदि को स्वीकारना.
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