हमने इस ब्लॉग को समाज व सामजिकता को बचपन से ही झेलते रहने की प्रतिक्रिया में बनाया।
होश सँभालते ही हमने अपने मन, चिन्तन,भावनाओं, दिल, दिमाग में महापुरुष,सन्तों की वाणियों को पाया। ऐसे में कुल व लोक मर्यादाएं हमें कचोटती रही हैं।आगे चल हमने देख की स्वयं मीरा भी अपनी भक्ति के बीच लोक मर्यादा, कुल मर्यादा को निम्न पाती हैं। सन्त कबीर ने तो अनेक कटाक्ष किए। आगे चल कर महसूस किया है समाज में शिक्षित भी भ्रम मात्र हैं। शिक्षित होना तो क्रांति है।
योग व आचरण व्यक्ति को जीवन के करीब लाता है।जीवन का साक्षात्कार कराता है। योग का पहला अंग है/यम!हम यम को मृत्यु से जोड़ते हैं,मृत्यु से पूर्व मृत्यु......वैराग्य... त्याग... । कुल मिला कर अच्छा आचरण।जिसे पांच भागों में बंटा है-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह। किसी ने कहा ठीक ही कहा-आचार्य है -मृत्यु।
वर्तमान समाज व सामजिकता पतनगामी /भूतगामी है।
ये पतनगामी/भूतगामी क्या है?
वर्तमान समाज व सामाजिकता भविष्य की ओर है तो लेकिन पतन/भूत के साथ।
इस पर विस्तार से चर्चा फिर आगे करते हैं।
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