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रविवार, 23 सितंबर 2012

...तो क्या समाज झूठ के रास्ते पर चलता है ?

विभिन्न परिस्थितियोँ मेँ मैँ यही विचार देता रहता हूँ कि समाज के आधार पर चलना अलग बात है व अपने ग्रंथोँ और महापुरुषोँ के दर्शन के मूलतत्वोँ के आधार पर चलना अलग बात है.जो समाज के आधार पर चलने के साथ साथ धर्म,धर्मग्रंथोँ व अपने महापुरुषोँ के सम्मान की बात करता है वह मेरी नजर मेँ ढोँगी व पाखण्डी है.विशेष रुप से शिक्षा के जगत से बच्चोँ व परिवारोँ को ये प्रेरणा मिलनी चाहिए कि अध्यात्म व नैतिक शिक्षा का प्रयोग जीवन मेँ कितना महत्वपूर्ण है?इसके बिना व्यक्ति,परिवार,समाज व विश्व को क्या क्षति पहुंच रही है?संस्कारोँ का मानव जीवन मेँ क्या महत्व है?लेकिन ...?लेकिन इन प्रश्नोँ का उत्तर जानने व समझने से पहले हमेँ विभिन्न शब्दोँ की परिभाषा को जानने की जरुरत है.धर्म ,संस्कार,इबादत ,पूजा आदि शब्दोँ की परिभाषा ही हम भूल चुके है.अफसोस की बात ये है कि समाज का मस्तिष्क कहा जाने वाला शिक्षक व कानून के रखवाले ही ज्ञान व कानून से अलग अपना नजरिया व आचरण बनाए बैठे हैँ. समाज के हिसाब से चलो ,ये अब शिक्षक ही उनसे तक कहते है जो सार्वभौमिक ज्ञान की खोज मेँ लगे व ग्रंथोँ व महापुरुषोँ से प्रेरणा लेना चाहते है

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