(मानवता प्रकृति व सार्वभौमिक ज्ञान पर समाजिकता का दबाव व चोट!)
बुधवार, 3 सितंबर 2014
अबकी प्रलय का क���रण मानव
इस धरती पर मानव को देखकर मुझे हंसी आती है . निन्यानवे प्रतिशत मानव पशुओं से भी ज्यादा गिरे हैं . जाति . मजहब आदि की राजनीति मेँ मानवता सम्मानीय नहीं हो पा रही ?
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