सोमवार, 5 जुलाई 2010
मनीष तिवारी:पेड़ वाले ��ाबा
प्रकृति नहीँ तो हम नहीँ.हमारा शरीर जो स्वयं प्रकृति है,प्रकृति के बिना संरक्षित कैसे?17वीँ सदी से विकास की जो दौड़ प्रारम्भ हुई ,उसने प्रकृति की प्राकृतिकता को समाप्त ही किया है.ऐसे मेँ कुछ लोग हमेँ जागरुक करने का प्रयत्न करते रहे हैँ लेकिन हम उनकी एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकालते रहे हैँ.महत्वपूर्ण तो हमारे मन का रूझान है,जिसके विपरीत हम कुछ कर ही नहीँ सकते या फिर दबाव मेँ आकर.बरेली मेँ एक पर्यावरणविद् पंचवटी अभियान चलाये पड़े है .अन्य शहरोँ मेँ भी लोग जागरुक हो रहे हैँ.मनीष तिवारी !मनीष तिवारी नाम पर्यावरण बचाओ आन्दोलन के जगत मेँ एक नक्षत्र हैँ.जो बिहार के गोपालगंज के निबासी हैँ .राष्ट्रीय सहारा ने आज पृष्ठ 11पर उन सम्बन्धित समाचार एवं फोटो प्रकाशित कर सराहनीय कार्य किया है.मीडिया को ऐसी हैशियतेँ विश्व पटल पर अवश्य लानी चाहिए.
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