ये सब जरूरी है ,
लेकिन इंसानियत की सीख भी जरूरी है।
अब भी वक्त है,
सम्भल ले।
हम जैसे पागल की बातें ही मरते वक्त जज्बात बनती हैं।
सुन लो कुदरत को,
सुन लो मानवता को,
धन दौलत के बल से भी कब तक-
आक्सीजन खरीदोगे?
हमारी तुम्हारी हद क्या है,
तुम न समझो कोई बात न,
हम कायर, बुजदिल, खामोश, अज्ञानी, नपोरा ही ठीक-
लेकिन हमें देख कुदरत मुस्कुराती है,
वह हर हमारा दर्द समझती है,
वह दोनों हाथ फैलाए अब भी-
हमारे - आपके स्वागत के लिए खड़ी है।
तुम्हारे बनाबटों की हद भी एक दिन खत्म होगी,
तुम्हारी बनाबटी वस्तुओं पर पड़ी धूल पर भी-
एक नन्हा सा पौधा तब मुस्कुराएगा,
हद तो सभी की एक दिन आती आती है,
लेकिन कुदरत गुणगान सभी का न गाती है।
हर बार बची खुची मानवता-
अतीत की तुम्हारी कंक्रीटों पर,
अंकुरित नये बीजों पर ही मुस्कुराती है,
लाश की चींटियों पर खिलखिलाती है।
अब भी वक्त है,
जीवन भी प्रकृति है,
प्रकृति ही हमें संवारती है,
अवसर दो प्रकृति को,
अन्यथा वह लाशों पर भी अपना अस्तित्व खड़ा कर लेती है।
#अशोकबिन्दु
अशोक कुमार वर्मा "बिंदु"/अशोक बिन्दु भैया
हिमालय व जल नीति बनाओ आंदोलन
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