गुरुवार, 29 अक्तूबर 2020

सँभलो!उनसे दूर रहो, फ़िजिकल डिस्टेंसिंग व होम डिस्टेंसिंग::अशोकबिन्दु


 हम प्रकृति अंश और ब्रह्म अंश हैं।जिसकी कोई जाति नहीं कोई मजहब नहीं उसकी आवश्यकताएं हैं उन आवश्यकताओं के लिए हमें एक प्रकार की व्यवस्था में जीना है जो अध्यात्म मानवता संविधान संविधान की प्रस्तावना आदि से होकर गुजरता है।


वसुधैव कुटुंबकम,विश्व बंधुत्व, सागर में कुंभ कुंभ में सागर ,मानवता आदि में जीने का मतलब क्या है? जाति, मजहब ,धर्म स्थलों आदि की राजनीति से ऊपर उठकर एक दूसरे के सहयोग के लिए सहकारिता के लिए एक दूसरे के कल्याण के लिए जीवन जीना । लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सामने वाले को हम अपने करीब लाएं उनसे घरेलू संबंध बनाएं क्योंकि हमें इस पर भी ध्यान देना चाहिए। हम रोजमर्रा की जिंदगी में घरेलू संबंध किसके साथ रखें किसके साथ नहीं रखते? प्रदूषण बहुत है, वैचारिक प्रदूषण भी है, मानसिक प्रदूषण भी है ,शारीरिक प्रदूषण भी है ।ऐसे में फिजिकल डिस्टेंसिंग रखना अति आवश्यक है। होम डिस्टेंसिंग रखना अति आवश्यक है। चलो ठीक है हम जात पात को नहीं मानते ,हम मजहबवाद को नहीं मानते ,हम दूसरे की बेटियों बहुओं माताओं का अंदर दिल से सम्मान भी करते हैं लेकिन तब भी हम सभी से घरेलू संबंध स्थापित नहीं कर सकते । उनके नजदीक बैठकर हम व्यवहार नहीं कर सकते क्योंकि हम आपसे कहना चाहेंगे समाज क्या है आखिर समाज क्या है ? हमारी नजर में हमारा समाज है- वह लोग जो परस्पर प्रतिदिन शारीरिक मानसिक वैचारिक सद्भावना आदि से समान हो । हम जात पात नहीं मानते हम मजहबवाद नहीं मानते, हम दूसरों की बहू बेटियों का भी सम्मान करना जानते हैं लेकिन सामने वाला यादि जात पात को मानता है ,मजहब वाद को मानता है ,जात पात के नाम पर हिंसा भी कर सकता है , लालच के लिए जो दुर्व्यवहार रखने की भी संभावना रखता है तो ऐसे लोगों से फिजिकल डिस्टेंस  रखना आवश्यक है होम डिस्टेंस रखना आवश्यक है ।उनका भोजन ,उनका खानपान यदि तामसी है और हमें दिक्कत करता है तो हमें उनसे दूरी बना कर ही रहना है । वे यदि जाति मजहब के नाम पर अपराधियों को बचाते हैं तो उनसे दूर रहना है दूसरी जाति दूसरे मजहब की बहू बेटियों से जो दुर्व्यवहार करना जेहाद मानते हैं ऐसे लोगों से दूर रहना है ।समाज का मतलब यही है -सम प्लस आज, प्रतिदिन हम जिसके साथ हर स्तर पर समान रहें। उसी के साथ हम आएं और रहें। हां ,इतना है- एक वक्त होता है सत्संग का पूजा पाठ आराधना का ध्यान मेडिटेशन का उस वक्त हमारे दरबार में कोई भी आ सकता है कोई भी जा सकता है लेकिन इस पर ध्यान देने की जरूरत है बे किस लिए आ रहे हैं बे किस भावना से आ रहे हैं? जरूरी नहीं उनका उद्देश्य  वह हो जो हमारा है । हम देख रहे हैं रोजमर्रा की जिंदगी में हमारे पास पड़ोस संस्था में परिवार में हम जिस विचारधारा में हमारा जो लक्ष्य है उससे उन लोगों को कोई मतलब नहीं होता वह सिर्फ नुक्ताचीनी करना जानते हैं । ऐसे लोगों से दूर रहने की जरूरत है हमारा उद्देश्य दूसरा है उनका उद्देश्य दूसरा है ऐसे में अभी वह हमारे नजदीक आते हैं तब वह हमारे लक्ष्य में बा धा ही बनेंगे ।


गीता में श्री कृष्ण क्या कहते हैं जो भूतों को भेजेगा वह भूतों को प्राप्त होगा जो पितरों को भाजेगा, जो देवों को भजेगा वह देवों को प्राप्त होगा। भूतों, पितरों, देवों से ऊपर भी स्थिति है। उसको प्राप्त करने को लालसयित हो।

सनातन क्या है?
भूतों को भजना?
पितरों को भजना?
देवों को भजना?
ब्रह्मा, विष्णु, महेश को भजना?
कि-आत्मा , परम् आत्मा को भजना?!
गीता में श्री कृष्ण कहते हैं-
"तू भूतों को भजेगा तो भूतों को प्राप्त होगा, तू पितरों को भजेगा तो पितरों को प्राप्त होगा, तू देवो को भजेगा तो देवों को प्राप्त होगा।"

आखिर हम किसको प्राप्त हो रहे हैं?हम क्या हो रहे हैं?कोई कहता है-98.8प्रतिशत भूत योनि की संभावनाओं में ही जी रहे हैं। आखिर सनातन का मतलब किसको प्राप्त होना है।मृत्यु के वक्त 98.8 प्रतिशत किसको प्राप्त होते हैं?सनातन का मतलब क्या जाति, मजहब, बनाबतों, कृत्रिमता ओं में उलझ जाना है?बसुधैवकुटुम्बकम, विश्व बंधुत्व आदि का मतलब क्या है?



हर रात्रि नौ बजे हम सार्वभौमिक प्रार्थना के लिए बैठते हैं। उस वक्त हमारी प्रार्थना सभी के कल्याण के लिए होती है।और24घण्टा उसी भाव में रहने की कोशिस में रहते हैं। लेकिन हमें अफसोस है कि वार्ड, गाँव में एक ग्रुप ऐसा होता है, कुछ लोग ऐसे होते हैं जो  जातिवादी, मजहबी, अपराधी, दबंग, माफिया, नशा व्यापारी आदि होते हैं किसी न किसी नेता, दल से जुड़े होते हैं। जो समाज व राष्ट्र के लिए खतरनाक होते है।
हमने देखा है- परिवार,पास पड़ोस, संस्थाओं ,समाज आदि में कुछ लोग ऐसे होते हैं जो सद्भावना से मुक्त होते है।वे सिर्फ किसी न किसी तरह अपना अस्तित्व चाहते हैं कृत्रिम व्यबस्था में।वे बड़े चतुर होते है।दिखाते ये हैं कि वे परिवार, पास पड़ोस, संस्थाओं मे अति हतैषी हैं-सुप्रबन्धन के लेकिन अंदर से वे बड़े चतुर होते हैं सिर्फ अपना हित सिद्ध करने के लिए।ऐसे लोगों के द्वारा सामने वाला सुधरता भी नहीं है सिर्फ सुधार का दिखाबा सिवा या खुली खमोशी सिबा। वे कोई बुद्ध नहीं होते जो अंगुलिमान की गलियों में जाएं।मनोविज्ञान की नजर में वे अंदर से विकार युक्त होते है।उनकी व्यक्तिगत असफलता चिड़चिड़ा पन, ईर्ष्या, खिन्नता आदि में उनके मन को बदल चुकी होती है। वे तू तड़ाक की भाषा जानते है ।उसी में बात करते हैं।भगत सिंह की तरह वे शांत चित्त हो हर सच्चाई के प्रति ईमानदार भी नहीं होते।न ही सच्चाई के लिए लोभ, लालच आदि कीकुर्बानी का जज्बा रखते है। न ही ये लोग तटस्थता, शरणागति में होते हैं सच्चाई के प्रति।

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