वर्तमान में जब हम विद्यार्थियों, शिक्षितों,शिक्षकों आदि को देखते हैं तो अफसोस होता है।
हम कहते रहे हैं कि समाज देश और विश्व के लिए तथाकथित शिक्षित एवं शिक्षक व्यक्ति कलंक है । यदि ज्ञान के आधार पर नहीं चलते हैं और उनकी समझ,चेतना, भावना, विचार आदि का स्तर आम आदमी से ऊपर उठकर नहीं है । समाज ,व्यक्ति, प्रकृति विभिन्न घटनाओं को देखने का नजरिया यदि आम आदमी से हटकर नहीं है जातीय जयवीर माफियाओं आदि से हटकर नहीं है तो है समाज देश विश्व के लिए कलंक है। सरकारों को बैठकर निश्चित करना चाहिए संयुक्त राष्ट्र संघ को बैठकर निश्चित करना चाहिए शिक्षित व्यक्ति एवं शिक्षक आचरण से विचार सोच से कैसा होना चाहिए? अनेक लोगों को हमारे लिखने से शिकायत है । लेकिन लिखना ए ? इसका विरोध शिक्षक समाज करें तो चिंतनीय है । हमने अनेक विद्वान अनेक संतो की जीवनी पढ़ी है तो पता चलता है । उनके विरोध में कौन खड़े होते हैं ? जन्मजातउच्चवाद, पुरोहितवाद आदि आखिर ऐसा क्यों? शिक्षक महानता बुनता है.
किसी ने कहा ने कहा है कि न कोई हारा हुआ है न कोई जीता हुआ है। सब अनन्त यात्रा का हिसाब है। धरती की कोई चीज निरर्थक नहीं है। 25 वर्ष तक का जीवन प्रयत्न व प्रयास का जीवन है ही वह ब्रह्मचर्य जीवन भी है अर्थात अन्तरदीप को प्रज्वलित करने का जीवन है। अंतर्ज्ञान को प्रकाशित करने का जीवन है इसके लिए एक अवसर की , एक बातावरण की आवश्यकता है।
आखिर बाबूजीमहाराज ने ऐसा क्यों कहा है कि शिक्षित के अधिकार नहीं होते। सिर्फ कर्तव्य होते हैं। आखिर ऐसा क्यों?
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