रविवार, 27 मार्च 2011

उप्र बोर्ड परीक्षा के दंश !

पिछले वर्ष मैं इस पर काफी लिख चुका हूँ.अब फिर कुछ लिख रहा हूँ.इस मामले मे मायावती की उप्र सरकार सराहनीय है,नकलविहीन परीक्षाएं तो नहीं हो रही हैं लेकिन पिछले वर्षों की अपेक्षा कुछ सुधार है.नकल व्यवस्था के लिए अभिभावक व अध्यापक दोनों दोषी हैं.आज के भौतिक भोगवादी युग मे सभी का नजरिया अपने धर्म व आत्मा से हटा है.कैसे भी हो,इंसान हर हालत मे आज की भौतिक भोगवादी दौड़ मे अपने को शामिल कर लेना चाहता है.लेकिन वह इसके परिणाम पर नहीं जाना चाहता.



वर्तमान मे परीक्षा के माहौल मे प्रशासकीय कर्मचारी विद्यालयों मे जा जा कर दोषी व्यक्तियों को दण्डित तो कर रहे हैं लेकिन शासन व प्रशासन को इस प्रति व्यवस्था करने से कोई मतलब नहीं है कि विद्यार्थी नकल की उम्मीद ही क्यों रखें ?विद्यार्थियों व अभिवावकों मे नकल का विचार ही न आये,इसके लिए शासन प्रशासन के पास क्या कोई हल नहीं है?क्या उनके पास दण्डित करने के ही कानून है ?




मै देख रहा हूँ कि जिन विद्यालयों मे प्रशासन की नजर मे भी सब ओके है,वहाँ भी सब ओके नहीं है.
कक्षनिरीक्षकों की कक्षों मे डयूटी ,विद्यालयी सर्च टीम,आदि के स्तर पर भी मौखिक रुप से परीक्षार्थियों की नकल मे सहयोग की भावना रहती है. जो अध्यापक स्वय नकल करते परीक्षार्थियों को बुक करने की क्षमता रखते हैं ,अपने डयूटी कक्ष में नकल कराने वाले अध्यापकों कर्मचारियों का दखल बर्दाश्त नहीं करते,आदि ऐसे अध्यापकों के ही खिलाफ होते हैं-विद्यालय की व्यवस्था देखने वाले अध्यापक.कुछ विद्यालयोँ मेँ तो प्रधानाचार्य , विद्यालय समिति,आदि की चाटुकारिता में लगे अध्यापकों का नियन्त्रण और भी अन्दुरुनी खतरनाक होता है.इस ग्रुप के अध्यापक चाहे कुछ भी करें,वे स्वतन्त्र होते हैं.अध्यापक होकर भी यह पक्ष या विपक्ष देखते न कि आदर्श व मूल्य.









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