संस्कार नहीं, नैतिकता नहीं ,इंसानियत नहीं, उदारता नहीं ,सेवा नहीं ,कर्त्तव्य नहीं तो काहे की शिक्षा ,कैसी शिक्षा?आज के अभिभावक ही भौतिकवादी भोगवाद के पथ पर अपना अस्तित्व खड़ा करना चाहते हैं.वे अपने बच्चों को अब भी सार्वभौमिक ज्ञान,सेवा,उदारता,आदि से दूर रखना चाहते हैं.नकल,धन,आदि के बल पर डिग्रीयां व नौकरी दिलाने का ख्वाब देखते हैं,आरक्षण की बैशाखी के सहारे अपने बच्चों को आगे बढ़ाना चाहते हैं.इसी उम्मीद के साथ अन्य कुछ जातियां अब आरक्षण का ख्वाब देखने लगी हैं .
सोमवार,
28मार्च2011,
अमीर खुसरो, बरेली समाचार पत्र के पृष्ठ सात पर ब्रजेश कुमार का लिखना है कि
आज हमारे देश मे निवास करने वाले सभी धर्मों के लोगों में जाति के अनुसार हमारी सरकारों ने आरक्षण प्रदान कर उनके स्तर को सुधारने का प्रयास किया था.कार्य तो लोक लुभावना था,मगर इस आरक्षण रूपी भस्मासुर ने आज पूरे देश को हिला कर रख दिया है.
....आखिर उससे फायदा क्या होगा?कल को हाई कास्ट वाले भी अपने लिए आरक्षण की मांग करने लगेंगे,तब क्या महत्व रह जायेगा आरक्षण का?
ब्रजेश कुमार जी व अन्य सभी अपनी वैचारिक क्रान्ति मे मदद के माध्यम से योग्यता,नारको परीक्षण,ब्रेन रीडिंग,आदि की अनिवार्यता,जाति व्यवस्था की समाप्ति की वकालत करते रहेंगे.
bahut badhiya post.....aarakshan band hona chaahiye.
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