रविवार, 13 फ़रवरी 2011

VALENTINE'S DAY :प्रेम की अभिव��यक्ति

प्रेम ओह प्रेम!जमाने मेँ कितने व्यक्ति प्रेमवान नजर आते हैँ?अपने गाँव के रमुआ के अलावा अभी तक मुझे प्रेमवान नजर नहीँ आया.प्रेम होता है कि किया जाता है?दुनिया मेँ प्रेम के लायक कौन होता है?प्रेम तो अन्दर की स्थिति है न कि कर्म. यदि हम प्रेमवान हैँ तो सभी से मित्रवत व्यवहार रखेँगे.किसी से किसी प्रकार की द्वेषभावना नहीँ होती लेकिन....., हाँ,रमुआ..?हमारे गाँव मेँ कभी एक रमुआ नाम का अधेड़ व्यक्ति हुआ करता था.बड़ा भोला भाला,सीधा साधा ,कोई चालाकी नहीँ उसमेँ.सभी से बड़ा नम्र व्यवहार रखता था.वह हर हालत मेँ नम्र रहता था. उसकी बखरी(घर)मुसलमानोँ के घर के करीब थी.घर मेँ वह अपनी बूढ़ी माँ के साथ रहता था.बिगड़ैल मुस्लिम लड़कोँ से वह कहता रहता था कि तुम क्या वास्तव मेँ मुसलमान हो? मोहम्मद साहब पर तो एक ओर कूड़ा डालती रहती थी लेकिन......?!इसी तरह वह गैरमुसलमानोँ को भी उनकी धर्म पुस्तकोँ के आधार पर समझाता रहता था.हालाँकि उसकी स्कूली शिक्षा मात्र बेसिक तक थी. जातिभेद व लिँगभेद की भावना से भी वह ऊपर उठकर था लेकिन समाज ऐसोँ को कब अपने मेँ खपा पाये ?वह समाज व भीड़ मेँ रहते हुए भी अलग थलग था.समाज की नजर मेँ उसका चरित्र भी संदिग्ध था .


" ऐ वेलेन्टाइन डे क्या होता है?"


गाँव के मुखिया नेतराम वर्मा के यहाँ अखबार पढ़ने चला जाया करता था.अखबार के माध्यम से ही वह ही वह जाना कि वेलेन्टाइन डे का मतलब क्या है?गाँव मेँ बजरंग दल का एक युवा सदस्य था-कौशल.जिसके कहने पर उसने उसके साथ 14फरबरी को शाहजहाँपुर जाने के लिए हाँ तो कर दी थी लेकिन .....?वेलेन्टाइन डे का विरोध क्योँ? कौशल ने कभी अपने जीवन मेँ झांका ? अपने को सुधार नहीँ पाता ,दुनिया को सुधारने चला लेकिन हमेँ शाहजहाँपुर जाना ही चाहिए कुछ नए अनुभव मिलेंगे.



शाहजहाँपुर मेँ वह कौशल के संग वेलेन्टाइन डे विरोधियोँ के साथ था जरुर लेकिन एक दृष्टा के रुप मेँ.


"प्रेम की क्या अभिव्यक्ति करनी पड़ती है कि अभिव्यक्ति होती है?
प्रेम मेँ क्या कोई अपनी भी इच्छा बाकी रह जाती है कि दूसरे की इच्छा महत्वपूर्ण हो जाती है?दूसरे के प्रति समर्पण भाव आ जाता है?" -एक कमरे मेँ बैठा वह सोँच रहा था.शाम को वह कौशल के साथ उसके दोस्त के मकान पर रुक गया था.



कौशल अपने मित्रोँ के साथ एक कमरे मेँ कुछ युवतियोँ के साथ नशे मेँ मस्त थे और....


इधर दूसरे कमरे मेँ रमुआ अकेला बैठा ओशो टाइम्स पत्रिका पढ़ रहा था.



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