हमारे अन्दर भी नारी है.जिसका हमें ज्ञान नहीं है,जिस तरह कि अन्धेरे कमरे में रखी माचिस.जिस माचिस के सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं हो.एक और उदाहरण है कस्तुरी मृग का ,वह न जाने कहां कहां भटकता है?जो उसके ही पास है,अज्ञानता मे उसके लिए ही भटकता है.
जो ब्राह्माण्ड मे तत्व हैं ,वही तत्व हमारे शरीर में भी उपस्थित हैं.हमारे शरीर के अन्दर भी एक प्रकाश है,जो कि हमारे मन व हमारे नजरिये के कारण हमारे एहसास से दूर है. ओशो ने यहां तक कहा है कि हमारे अन्दर भी सम्भोग होता है.संसार मे जब आपको अचानक किसी को देखकर प्रेम हो जाता है,तो उसका कुल मतलब इतना होता है कि आपके भीतर जो प्रतिछवि है, उसकी छाया किसी मे दिखाई पड़ गई,बस. इसलिए पहली नजर में भी प्रेम हो सकता है,अगर किसी में आपको वह बात दिखाई पड़ गई,जो आपकी चाह है.चाह का मतलब ,जो आपके भीतर छिपी स्त्री या पुरुष है किसी मे वह रुप दिखाई पड़ गया ,जो आप भीतर लिए घूम रहे हैं,जिसकी तलाश है.
प्रेम अपने उस जुड़वा हिस्से की तलाश है,जो खो गया है;जब मिल जाएगा,तो तृप्ति होगी. यही शिव का अर्द्धनारीश्वर रुप है.बायोलाजिस्ट भी आज इसस बात को स्वीकार करते हैं.
सखि सम्प्रदाय मेँ भी कुछ ऐसा ही है.नारी या पुरुष की आधी निर्गुण शक्ति उसके अन्दर अन्धेरे कमरे मे रखे माचिस की तरह होती है जिससे वह अन्जान है.प्रकृति(माँ)का एक हिस्सा होता है हमारा शरीर . जो कि स्त्री या पुरुष होता है व हमारा सूक्ष्म शरीर स्त्री या पुरुष होता है.भाव व मनस शरीर स्त्री मे पुरुष का व पुरुष मे स्त्री का होता है.इन चार शरीरों से ऊपर पांचवा शरीर आत्मा होता है,जो कि अलिंगी होता है न कि स्त्री या पुरुष.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें