गुरुवार, 10 जून 2021

हमारे शिक्षण को 30 जून 2021 को 25 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर::अशोक

 कुछ यह भी::25 से 75 तक! ---------------------------------------


 हमारे शिक्षण कार्य से जुड़े 25 वर्ष हो रहे हैं ।1 जुलाई 2021 ईस्वी को 25 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं ।यह 25 वर्ष और इससे पूर्व का जीवन भी शिक्षा जगत में ही बीता। इत्तेफाक है जिस वक्त हम शिक्षा कार्य से जुड़े, उस वर्ष से हम 5 अक्टूबर को विश्व शिक्षक दिवस मना रहे हैं। 5 अक्टूबर 1966 में यूनेस्को और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की हुई ।उस संयुक्त बैठक को याद करने के लिए मनाया जाता है।जिसमें अध्यापकों की स्थिति पर चर्चा हुई थी और इसके लिए सुझाव प्रस्तुत किए गए थे । सन 2019 में 25 वां विश्व शिक्षक दिवस मनाया गया। 5 अक्टूबर 1994 ईस्वी को पहला विश्व शिक्षक दिवस मनाया गया उस भक्त एसएस कॉलेज शाहजहांपुर में साहित्यकार और b.ed विभागाध्यक्ष अतुल जी के मार्गदर्शन में उनके मकान पर थे पिता जी प्रेम राज वर्मा की प्रेरणा भूमि एसएस कॉलेज शाहजहांपुर की फील्ड थी । यह सत्य है शिक्षा एक क्रांति है शिक्षित होना एक क्रांति है विद्यार्थी होना एक क्रांति है लेकिन यदि ऐसा संभव है तो इसका मतलब है शिक्षा व्यवस्था में कोई कमी है । यूनेस्को संयुक्त राष्ट्र संघ सन 2002 में ही मूल्य आधारित शिक्षा की वकालत कर चुका है इस आधार पर अनेक देश चल चुके हैं लेकिन अभी भारत देश नहीं हां कुछ राज्यों में इस ओर ध्यान दिया जा रहा है। यदि उपदेश आदेश और कर्म महत्वपूर्ण है तो क्या पिछली सरकार और राज्य के ठेकेदारों की नियत में खोट था वर्तमान समाज में अब भी हिंसा अराजकता देश जातिवाद अंधविश्वास आदि देखने को मिलता है नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी को भी निरंतर अभ्यास प्रशिक्षण जागरूकता प्राण आहुति आदि की आवश्यकता होती है अन्यथा फिर तंत्र को जकड़े बैठे लोगों पुलिस जनप्रतिनिधि आदि के चारों ओर दबंग माफिया जाति बल पूंजीवादी ही लाभ में नजर आते रहेंगे । अंगुली मान और अंगुली मान की गलियों में सिर्फ बुध और बुध अस्त ही मुस्कुराता नजर आएगा आपका तंत्र और आपके सम्मानीय वरिष्ठ नहीं। चिंतन मनन कल्पना स्वप्न हमारे जीवन से काफी घुलमिल गए हैं किशोरावस्था एक तूफानी अवस्था होती है जब हमने किशोरावस्था में प्रवेश किया लिखने में लग गया जब हम हरित क्रांति विद्या मंदिर में कक्षा 8 के विद्यार्थी थे हमारे लिखने का उद्देश्य सिर्फ लिखना था अभिव्यक्ति था इसमें कोई समझौता नहीं वर्तमान में लगभग 50 पुस्तकें तैयार हैं जो प्रकाशन के इंतजार में हैं बचपन से ही आर्थिक समस्या सामाजिक कुरीतियों आज को झेला है ऐसा इसलिए और हुआ क्योंकि हमारा संवेदनशील होना लेखन के क्षेत्र में हमारी समस्या रही कैसे हम छपे हां एक बार और एक बात और हम लिखते तो रहे हैं लेकिन लेखन सामग्री को एक शीर्षक देने उसे एक विधा देने में दुविधा रही है लेखन संवाद घटनाएं हमारी रचनाओं में रही हैं लेकिन उस रचना को किस विधा में माना जाए यह दुविधा रही है हमारा उद्देश्य सिर्फ अभिव्यक्ति रहा है । 25 से 75 तक? ए क्या है इस पर हम बहस नहीं कर सकते जिस प्रकार हम अपने रचनाओं के शीर्षक और विधा पर बहस नहीं कर सकते जो लिख गया जो लिख दिया वह लिख दिया। 25 वर्ष शिक्षण कार्य के! 75 वर्ष संयुक्त राष्ट्र संघ के! 75वर्ष श्री रामचन्द्र मिशन के! शांति सुकून की तलाश में हम कहाँ पर आ गये?जातिवाद, मजहबवाद,धर्मस्थलवाद, देशवाद, भीड़ तन्त्र, पूंजीवाद, सत्तावाद आदि हमें चिढ़ाने लगा। ध्यान(मेडिटेशन),मानवता, विश्वबन्धुत्व, बसुधैव कुटुम्बकम, विश्व सरकार हमारे सूक्ष्म जगत अर्थात अन्तर्दशा के हालात हो गये। ऐ इंसान तू कितना भी कर ले सितम तरक्की के नाम पे, कुदरत जब करेगीं सन्तुलन,तो तू न होगा इस महि पे । तेरे लिए हवा-पानी-सब्जी-अनाज इक दिन मुश्किल में ऐ इंसान तो तू तरसेगा आबो दाना के लिए इस जहां में; अपनी तरक्की के नाम पे है तू इंसान इस जहां भ्रम में ।। ऐ इंसान.. #अशोकबिन्दु



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें