गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

30 अप्रैल 2021: अनुसुइया जयंती!! बनाबटों की हद कब तक::अशोकबिन्दु


 ये सब जरूरी है ,

लेकिन इंसानियत की सीख भी जरूरी है।

अब भी वक्त है,

सम्भल ले।

हम जैसे पागल की बातें ही मरते वक्त जज्बात बनती हैं।

सुन लो कुदरत को,

सुन लो मानवता को,

धन दौलत के बल से भी कब तक-

आक्सीजन खरीदोगे?

हमारी तुम्हारी हद क्या है,

तुम न समझो कोई बात न,

हम कायर, बुजदिल, खामोश, अज्ञानी, नपोरा ही ठीक-

लेकिन हमें देख कुदरत मुस्कुराती है,

वह हर हमारा दर्द  समझती है,

वह दोनों हाथ फैलाए अब भी-

हमारे - आपके स्वागत के लिए खड़ी है।

तुम्हारे बनाबटों की हद भी एक दिन खत्म होगी,

तुम्हारी बनाबटी वस्तुओं पर पड़ी धूल पर भी-

एक नन्हा सा पौधा तब मुस्कुराएगा,

हद तो सभी की एक दिन आती आती है,

लेकिन कुदरत गुणगान सभी का न गाती है।

हर बार बची खुची  मानवता-

अतीत की तुम्हारी कंक्रीटों पर,

अंकुरित नये बीजों पर ही मुस्कुराती है,

लाश की चींटियों पर खिलखिलाती है।

अब भी वक्त है,

जीवन भी प्रकृति है,

प्रकृति ही हमें संवारती है,

अवसर दो प्रकृति को,

अन्यथा वह लाशों पर भी अपना अस्तित्व खड़ा कर लेती है।

#अशोकबिन्दु


अशोक कुमार वर्मा "बिंदु"/अशोक बिन्दु भैया 


हिमालय व जल नीति बनाओ आंदोलन

बुधवार, 28 अप्रैल 2021

रिश्तों से बढ़कर है जमीन, धर्म से बढ़कर है जीत: ऐसी सोंच को वोट है जनतंत्र::अशोकबिन्दु

 29 अप्रैल 2021ई0!

ग्राम प्रधान चुनाव...

जनता  चुने किसे ?ये जनता का जााने  ईमान!

जनतंत्र का मतलब है जनता  का तन्त्र, जनता के लिए तन्त्र।

तन्त्र में गड़बड़ी के लिए स्वयं जनता ही दोषी है।
आखिर जनता ही चुनती है अपना प्रतिनिधि....
ऐसे में वह ही दोषी है, जनता ही दोषी है।
जनता का धर्म क्या होना चाहिए?
जनता का ईमान क्या होना चाहिए?

वे जिन्हें काफिर कहते हैं, उन्हें काफिर क्यों कहते हैं?आखिर काफिर कौन होता है?

हम रात्रि 01.30am पर जाग गए थे।
हम विस्तर से उठ बैठे।
मालिक को साक्षी मैं कर हम चिंतन व प्रार्थना में थे।

" जब खानदान में कोई जगप्रिय महात्मा हो जाता है तो क्या होता है?और जब खानदान में कोई जग प्रिय दुरात्मा हो जाता है तो क्या हो जाता है?"


कुर-वाणी, कुल-वाणी का क्या महत्व रह जाता है?पितर शक्तियों के सन्देशों का क्या महत्व रह जाता है?

जनतंत्र में जनता का तन्त्र को दोष लगाना जनता की मूर्खता::अशोकबिन्दु

 सिर्फ सरकारें ही दोषी हैं,

ऑक्सीजन नहीं मिलती है।

जनतंत्र में जनता ही दोषी है,

वह किस आधार पर अपना प्रतिनिधि चुनती है?

जनता जिसे स्वयं चुने,

उसे ही स्वयं दोषी बनाए?

धन्य,

जनता की मूर्खता!

विधायक, सांसद वह आखिर क्यों चुनती है?

जनतंत्र में जन ही दोषी है,

हर हालत में जन ही दोषी है।

जन को स्वयं तय करना होगा-तन्त्र,

तब होगा तन्त्र जनतंत्र,

जाति के अपराधियों को-

दरबज्जे पे आके खड़े हुए हाथ फैलाए को,

वोट देना करो बंद,

हे जन स्वयं आगे बढ़ो-

स्वयं किसी के दरबाजे पे जा कर किसी को चुनों,

छोड़ों दल द्वारा तय प्रत्याशी,

स्वयं ही प्रत्याशी चुनो,

चंदा दे उसका नामांकन कराओ।

जन को स्वयं तय करना होगा-

तन्त्र हो कैसा?

अपने मन का तन्त्र पाने को ,

स्वयं जन को सड़कों पर आना होगा-

तब होगा तन्त्र जनतंत्र।

क्षेत्र के कुछ परिवार से स्वयं की इच्छा से खड़े होने वाले-

कैसे हो गए जन प्रतिनिधि?

किसी जाति का व्यक्ति खड़ा हो ,

जाति का समर्थन पाने वाला -

कैसे हो गया जनप्रतिनिधि?

इस लिए कहता हूँ-

जनतंत्र में है जन दोषी,

जन को स्वयं अपना प्रत्याशी खड़ा करना होगा,

स्वयं उस पर अपने कर्तव्यों को थोपना होगा।

जन तन्त्र में जनता का तन्त्र को दोष देना,

जनता की मूर्खता है।

#अशोकबिन्दु


रविवार, 25 अप्रैल 2021

अशोकबिन्दु ::दैट इज...?!पार्ट-21/एक ऊर्ध्वाधर वातवरण बनाने की जरूरत!!

 आश्रम व यज्ञ शालाएं बनाने के पीछे क्या करना थे?

शिव केंद्र ,गिरिजा केंद्र, गुरुद्वारा के क्या उद्देश्य थे?

अकबर के दरबार में किसी दरबारी के गुरु की क्या हालत थी?!



महात्मा गांधी ने कहा था कि वातवरण ऐसा होना  चाहिए कि कोई गुंडा भी मनमानी न कर सके।

हम  अपने बचपन में लौटे हैं तो पाते हैं कि उस वक्त धरती का वातवरण आज से बेहतर था। हम जिधर भी निकल जाते थे उधर बाग बगीचों की भरमार थी। लोगों के बीच उदारता, सेवा का भाव था।जो हमारे अभिवावकों आदि के दुश्मन भी माने जाते थे, वे भी हम बच्चों से लाड़ दुलार में नजर आते थे।आज तो पता ही नहीं चलता कि कोई हमसे खुंदक क्यों खाये बैठा है? 

अकबर के दरबार में क्या होता है?किसी दरबारी के गुरु खमोश थे। अब वे क्या बोलें?वे तो वर्तमान में रहें, यथार्थ में रहें,सत्य में रहें। तीन दिन बीत गए वह कुछ न बोले तीसरे दिन बीरबल ने दरबार में चर्चा करना शुरू किया।तब बीच बीच में गुरु जी बोलने शुरू हो गए।लोग धीरे शांत होते  गए।गुरु जो को बोलने का अवसर देने लगे। गुरु जी बोलते रहे। समाज में, संस्थाओं में होता क्या है?लोग सामने वाले के समक्ष ऊंची आबाज में बोलते हैं, चीखते हैं, सामने वाले को बोलने को अवसर नहीं देते, इसकी बात को काटने की कोशिश करते हैं, मजाक में बात को टालने की कोशिश करते हैं।शरणागति कहाँ पर है?नजीरया कहाँ पर है?समर्पण कहा पर है?अनेक तो टाइम पास चाहते हैं, खाना पूर्ति चाहते हैं। बस ,साहब के सामने या अपने अहंकार को स्थापित करना चाहते हैं। 

यथार्थ में जीने का मतलब क्या है?सत्य में जीने का मतलब क्या है?हमारे वर्तमान का मतलब क्या है? हम चाहें जिस स्तर पर भी हों, हमारी समझ चाहें जिस स्तर पर भी हो,हमारी चेतना चाहें जिस बिंदु पर भी हो.... उस बिंदु, उस स्तर पर रहकर जो पैदा होना शुरू हो रहा है, उसकी अभिव्यक्ति को सम्मान मिलना चाहिए। एक छोटा बच्चा होता है, उसका स्तर क्या होता है?वह अपने स्तर के आधार पर ही बात कहता, आचरण करता है, तुतलाती भाषा में जो बोलता है ,हम उसे स्वीकार करते हैं। उसके प्रति ईमानदारी, उस का सम्मान कब है?उसका मजाक उड़ाकर?उसको चिड़ाकर....?! 

टांग खिंचने वालों की तो कमी नहीं, हर मूर्ति के प्राणप्रतिष्ठा को अवसर नहीं।सामने वाले में बुराइयों को देखने की नजर तो पैनी लेकिन सामने वाले की अच्छाइयों को देखने नजर पैनी नहीं। यह पैनी नजर क्या है?आध्यत्म में पैनी नजर से मतलब है- अपने ,अन्य व जगत के पूर्णता-स्थूल, सूक्ष्म, मनस,कारण आदि को भी देखने की क्षमता।

उस दिन की बात है, कमरे के अंदर एक चूहा मरा।हम चूहे की प्रकाश आकृति को कमरे में लगभग दो तीन फुट  ऊंचे पर उड़ते देख रहे थे। इस नजर को क्या कहेंगे?


ज्ञान के साथ भी क्या हो रहा है?सम्विधान के साथ भी क्या हो रहा है?कुल,समाज, पास पड़ोस,संस्थाओं के खास, वरिष्ठ, पदाधिकारी के बीच क्या हो रहा है?एक जिसमें ज्ञान पैदा होता है, सम्विधान पैदा होता है, चिंतन मनन, कल्पना, नजरिया का, भावना का हिस्सा हो रहा है, कल्पनाओं  में आ रहा है... वह की क्या स्थिति होती है?उसका क्या कैसा सम्मान होता है? देश विश्व तक माफिया, पक्ष या विपक्ष, पूंजीवाद, सामन्तवाद, सत्तावाद से तन्त्र ग्रस्त होता जा रहा है। 

हम यही देख रहे हैं-वार्ड, गांव, विभिन्न संस्थाओं में दबंग ,जाति बल, चापलूस, हाँहजुर, चाटुकार, नियमों के खिलाफ अनेक विकल्प खड़े करने वाले आदि  सिस्ट्म का हिस्सा हैं।यह हाल अभी से नहीं है, आदि काल से है। ऐसे में गुप्त साधनाओं,प्रयत्नों का ही महत्व बढ़ जाता है।हमें सिर्फ भगवान(एक स्थिति/व्यवस्था) व कर्म(कर्तव्य) प्रति भी भी खामोशी से प्रयत्न शील रहना चाहिए।तीसरे पक्ष की नजर में चालाकी रखने की जरूरत है।


आज की तारीख में जहां हमने सम्मान के साथ सुनने ,हमारे विचारों को स्वीकारने, हमारे समकक्ष वैचारिक वातावरण, आदि को पाया है वहाँ हमारी क्षमता स्वतः उजागर हुई है। यह तो होना ही चाहिए कि कहां पर यथार्थ की स्वीकारता है जो हमें व अन्य को अपने वर्तमान स्तर से ऊपर उठने का अवसर दे?


अफसोस, आज कल माफियाओं, नशा व्यापार, खाद्य मिलावट, विपरीत लिंगाकर्षण विषयों आदि के खिलाफ कोई मुहिम नहीं चलाना चाहता।धर्म ,कानून, समाज सेवा आदि के ठेकेदार भी अंगुलिमानों की गलियों में जाना नहीं।चाहते।

बुधवार, 21 अप्रैल 2021

शिक्षा में आत्म प्रतिष्ठा / आत्म प्रबन्धन की अपूर्णता::अशोकबिन्दु

 सन्दर्भ::स्वतंत्रता है आत्मा::अरविंद घोष

           :: शिक्षा कमजोर दिल वालों के लिए नहीं है::दाजी

           :: जो जिस स्तर का है, उसे उस स्तर से ही शुरू करने के साथ अभ्यास में रहना चाहिए। तभी सामर्थ्य बढ़ती है। अनन्त प्रवृतियों से जोड़ती है::भीष्म पर्व, महाभारत

             




हम से जब पूछा जाता है कि सबसे बड़ा भृष्टाचार क्या है तो हमारा जबाब होता है -शिक्षा।

शिक्षा में बाल मनोविज्ञान व शैक्षिक मनोविज्ञान का बड़ा महत्व है। कब,क्यों,किसलिए, कैसे, कहाँ, किसके साथ कैसा व्यवहार दिया जाए?यह महत्वपूर्ण है।ऐसे में ज्ञान के प्रति सम्मान या तटस्थता या रुचि आवश्यक है। 


किसको शिक्षित करना है?जो शिक्षित करना है वह कौन है?

पौराणिक कथाओं से स्पष्ट है कि कोई जब शिक्षा प्राप्त करने जंगल/आश्रम जाता था तो सर्वप्रथम उसे इस पर ही केंद्रित किया जाता था कि -तुम कौन हो?हम कौन हैं? इसके बिना शिक्षा की शुरुआत निम्न स्तर की ही रहती है जो भ्रष्टाचार को ही जन्म देती है।


सहज मार्ग में चारी जी कहते है कि किसी की आत्म प्रतिष्ठा पर ठेस पहुंचाए बिना शिक्षा असम्भव है।व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आर्थिक, आचरण आदि के आधार पर उसे उपेक्षित, नजरअंदाज, अपमानित करना आदि सरासर गलत है।वह जिस स्तर से है, उस स्तर से ही उसे आगे बढ़ने के अवसर देने की आवश्यकता होती है।

कोई हमारे हिसाब से नहीं है इसका मतलब ये नहीं है उसका अपमान करना, उसकी  उपेक्षा करना नहीं है, उसका सम्मान  न करना।

गुरुवार, 15 अप्रैल 2021

अशोकबिन्दु :: दैट इज..?!पार्ट-20!!अनन्त प्रबुद्धता के बीच हम भीड़ परम्परा की दुर्गमता में?!

 हम 13 अप्रैल 2021 से हम अपने में अनन्त घटित होता महसूस कर रहे हैं।छितिज के पार असीम को महसूस करने की कोशिश कर रहे हैं।जहां रास्ता तो है लेकिन मंजिल नहीं।और हमें लग रहा है, ईश्वर व धर्म के नाम पर समाज में जो हो रहा है वहां पर रुकावट ही रुकावट है।पूर्णता नहीं।पूर्णता कहीं है ही नहीं।अनन्त की तुलना हमारी बुद्धि से परे है।

10-14 फरबरी 2021 से हमें विशेष मालिक कृपा से गुजरने का वक्त मिल रहा है लेकिन उसके लिए हमें मौन में रहने का निर्देश मिला था।




असलियत दुनिया नहीं है!समाज व संस्थाओं के ठेकेदार नहीं हैं.....
हम तो किशोरावस्था से ही उन कुछ लोगों को सुनते आए हैं जिन्हें दुनिया ने नहीं सुना है।मानव समाज ने नहीं सुना है।विज्ञान प्रगति, अविष्कार, युगनिर्माण आदि अनेक पत्रिकाओं के माध्यम से हम उन्हें पढ़ते नहीं, चिंतन मनन करते रहे हैं । 

हम जो सन1985में 2025 का सुनते आए थे वही हो रहा है। जो सत्य या यथार्थ का ही रूप है,स्तर है। 

हम बचपन से ही महसूस करते रहे हैं कि क्या होना चाहिए क्या नहीं होना चाहिए? बालक अपना दर्द, समस्या को कहां रखेगा?यदि माता पिता के सामने न रखेगा?समाज में, विभिन्न संस्थाओं में आकाओं की कमी नहीं है।उनके सामने समाज व संस्थाओं की समस्याएं न आने का मतलब क्या है? या नजरअंदाज होने का कारण क्या है?

आज का असन्तुष्ट भविष्य के असन्तुष्ट का नायक भी हो सकता है।इतिहास में अनेक बार हुआ है असन्तुष्ट ने इतिहास को बदला है।

हम बचपन से जिन असंतुष्टों को पढ़ते आये हैं,वे आज सत्य साबित होने की ओर हैं।

वर्तमान का सत्य ये नहीं है कि हम अपनी इच्छाओं के लिए दूसरों के सम्मान, दूसरों की इच्छाओं, प्रकृति असन्तुलन को अंजाम दे दें। 

मौन का मतलब क्या है? 
उसको अवसर देना जो सत्य है,जो वर्तमान है।
सत्य हमारी इच्छाएं नहीं है।सत्य तो है जो है।अब स्तर उसका चाहें कोई हो। हर स्तर से हम सत्य उजागर की ओर बढ़ते है।

ज्योतिष क्या है?वह भी विज्ञान है।
जो वर्तमान में दिख रहा है, वही सिर्फ सत्य नहीं है।जो दिख रहा है,वह कल ऐसा न था।जो दिख रहा है-वह कल  ऐसा न होगा। सत्य, ज्ञान ,आत्मा हमारे लिए एक दशा ही हो जाती है कभी कभी।जो त्रिकाल दर्शी है। जो निरन्तर से बंधा है।जो अनन्त सम्भावनाएं छिपाए है। जो कल मर गया, आज देवता बना कर पूजा जा रहा है।यह सरासर गलत है। जो आत्मा है उसको अवसर देने से हमारा अन्तःकरण परम्आत्मा होने की ओर अग्रसर तो हो सकता है लेकिन अनन्त पूर्णता से तुलना असम्भव है।
जो बार बार मरता है,वह प्रकृति व पंच तत्व का विज्ञान है। वह स्पष्ट है।हमारी नजर में स्पष्ट न हो तो अलग की बात। आत्माएं तो अनन्त यात्रा में साहचर्य हैं, जिम्मेदारी हैं।जो हमारे समय चक्र से परे हैं।वह अतीत व भविष्य मुक्त समय में अर्थात वर्तमान में है।जो सत्य है, जो यथार्थ है।


मौन,प्रतिक्रिया व इच्छाएं?
10-14 फरबरी-09-13 मई 2021ई0.....!!

अंदर की शांति को पाने के लिए बाहर को नजरअंदाज करना होता है।तटस्थ रहना होता है। प्रतिक्रिया शून्य होना होता है।
पहिया की धुरी स्थिर होती है। चक्रवात का केंद्र स्थिर - शांत होता है। आत्मा के हालत भी ऐसे होते हैं । 
इच्छाएं हमें  चेष्टावान ,प्रतिक्रियावादी  बनाती है।जो हमारे अंतरमन को मौन होने अर्थात आत्मा केंद्रित होने की गतिशीलता देता है।

अनन्त प्रबुद्धता के    बीच  हम रेत के एक कण का अनन्त हिस्सा भी नहीं हैं। लेकिन जब तक हम इस हाड़ मास शरीर में है तब तक  के लिए ही  हम आत्मा के रूप में अस्तित्ववान नहीं हैं। यह भी सम्भव है कि हम अपने अन्तस्थ से न थकने वाली प्रबुद्धता पा सकते हैं ।जिसे हमारी बुद्धि,मन,शरीर संभाल कर न रख पाए यह अलग बात।



#अशोकबिन्दु

हमारा यज्ञ है अपने व जगत के प्रकृति अंदर स्वतः, निरन्तर, जैविक घड़ी के अहसास में अपने को आहूत करना:::अशोकबिन्दु

 एक साल से हमें बार बार मैसेज मिल रहे है कि हमारी व जगत की प्रकृति को क्या चाहिए लेकिन हमें उन मैसेज को पकड़ने की जरूरत ही महसूस नहीं हो रही है।

मनोवोज्ञानिक ठीक कहते हैं कि हम जन्म से हर पल जो सोंच, दिनचर्या, विचार, भावना जीते हैं वह हमारे रोम रोम में बस जाती है और एक दशा वह भी आ जाती है जब हम उससे छुटकारा भी चाहते हैं तो छुटकारा नहीं पा पाते।आखिर जो बोया जाएगा वही तो मिलेगा।

अनेक बुजुर्गों से सीख मिलती है कि जो हम विद्यार्थी जीवन/ब्रह्मचर्य आश्रम में प्रति पल जिए अब वह जीवन में कुंडलिनी मार कर बैठ गया है। जैसे कि एक कुत्ते को रोटी डालना क्या शुरू किया अब वह दरबज्जा पर ही जमा रहता है।

#दाजी जी ठीक ही कहते हैं-हम को जीते है प्रतिपल मन, भाव,नजरिया, आचरण से वह हमें पकड़ कर बैठ जाता है।इसलिए हम को हर वक्त अभ्यास, सत्संग ,सतत स्मरण में रहने की जरूरत है। 

जमाने की उलझने तो दुख ही देने वाली हैं।


बदलाव की क्षमता बुध्दिमत्ता की माप है, वैज्ञानिक आइंस्टीन ने ऐसा कहा था।

धरती को कुरूप कौन बना रहा है?

मानव समाज ही कुदरत की नजर में समस्या है।हम मानव के वर्तमान सिस्टम में ही ऊपर उठने की जरूरत हैमानव समाज अब भी कुदरत के सम्मान में ,मानवता के सम्मान में कुछ भी बदलाव करने को तैयार नहीं।

अब भी वक्त है!!

आध्यत्म,मानव व प्रकृति हमारी प्रकृति, मानवता व आध्यत्म के स्वागत के लिए दोनों हाथ फैलाए स्वागत में हर वक्त खड़ी है।लेकिन वक्त के हिसाब से सब सम्भव है।अब भी वक्त है।अन्यथा बचा खुचा मानव हम पर थूकेगा, हमारे बनाबटी निर्माण पर कोसेगा।जो प्रकृति है, सहज है उसको बिगाड़ने के लिए। प्रकृति तो सन्तुलन करना जानती है लेकिन मानव के बस में नहीं रह जायेगा सन्तुलन बनाना। अब भी वक्त है। जीवन तो प्रकृति है।उसे प्रकृति के भरोसे उस प्रति अपने कर्तव्यों  निभाते हुए उस पर ही छोड़ दो। 

हमारी व जगत की प्रकृति को प्रकृति ही चाहिए।मानव के इच्छाओं का सैलाब नहीं। वह तो दुख व उपद्रव का का कारण है।अपने व जगत की प्रकृति की व्यवस्था के प्रति अपने कर्तव्य को समझिए!!


बदलाव की क्षमता बुध्दिमत्ता की माप है, वैज्ञानिक आइंस्टीन ने ऐसा कहा था।

धरती को कुरूप कौन बना रहा है?

मानव समाज ही कुदरत की नजर में समस्या है।हम मानव के वर्तमान सिस्टम में ही ऊपर उठने की जरूरत हैमानव समाज अब भी कुदरत के सम्मान में ,मानवता के सम्मान में कुछ भी बदलाव करने को तैयार नहीं।

अब भी वक्त है!!

आध्यत्म,मानव व प्रकृति हमारी प्रकृति, मानवता व आध्यत्म के स्वागत के लिए दोनों हाथ फैलाए स्वागत में हर वक्त खड़ी है।लेकिन वक्त के हिसाब से सब सम्भव है।अब भी वक्त है।अन्यथा बचा खुचा मानव हम पर थूकेगा, हमारे बनाबटी निर्माण पर कोसेगा।जो प्रकृति है, सहज है उसको बिगाड़ने के लिए। प्रकृति तो सन्तुलन करना जानती है लेकिन मानव के बस में नहीं रह जायेगा सन्तुलन बनाना। अब भी वक्त है। जीवन तो प्रकृति है।उसे प्रकृति के भरोसे उस प्रति अपने कर्तव्यों  निभाते हुए उस पर ही छोड़ दो। 

हमारी व जगत की प्रकृति को प्रकृति ही चाहिए।मानव के इच्छाओं का सैलाब नहीं। वह तो दुख व उपद्रव का का कारण है।अपने व जगत की प्रकृति की व्यवस्था के प्रति अपने कर्तव्य को समझिए!!

अशोकबिन्दु


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अशोकबिन्दु


जब डॉक्टर हाथ ऊपर खड़ा कर देगा तो फिर भगवान भरोसे ही रहना होगा।अब भी समय है सन्तुलन बनाने का।आध्यत्म, मानवता, प्रकृति अब भी तुम्हारे स्वागत को तैयार है अन्यथा बची खुची मानवता तुम पर थूकेंगी::अशोकबिन्दु

 बदलाव की क्षमता बुध्दिमत्ता की माप है, वैज्ञानिक आइंस्टीन ने ऐसा कहा था।

धरती को कुरूप कौन बना रहा है?

मानव समाज ही कुदरत की नजर में समस्या है।हम मानव के वर्तमान सिस्टम में ही ऊपर उठने की जरूरत हैमानव समाज अब भी कुदरत के सम्मान में ,मानवता के सम्मान में कुछ भी बदलाव करने को तैयार नहीं।

अब भी वक्त है!!

आध्यत्म,मानव व प्रकृति हमारी प्रकृति, मानवता व आध्यत्म के स्वागत के लिए दोनों हाथ फैलाए स्वागत में हर वक्त खड़ी है।लेकिन वक्त के हिसाब से सब सम्भव है।अब भी वक्त है।अन्यथा बचा खुचा मानव हम पर थूकेगा, हमारे बनाबटी निर्माण पर कोसेगा।जो प्रकृति है, सहज है उसको बिगाड़ने के लिए। प्रकृति तो सन्तुलन करना जानती है लेकिन मानव के बस में नहीं रह जायेगा सन्तुलन बनाना। अब भी वक्त है। जीवन तो प्रकृति है।उसे प्रकृति के भरोसे उस प्रति अपने कर्तव्यों  निभाते हुए उस पर ही छोड़ दो। 

हमारी व जगत की प्रकृति को प्रकृति ही चाहिए।मानव के इच्छाओं का सैलाब नहीं। वह तो दुख व उपद्रव का का कारण है।अपने व जगत की प्रकृति की व्यवस्था के प्रति अपने कर्तव्य को समझिए!!

अशोकबिन्दु


मंगलवार, 13 अप्रैल 2021

रम जान का माह हमारी नजर में:::अशोकबिन्दु

 हमारे लिए रमजान है-वह दशा जो खुदा की याद में है। जो प्राण में रमी है।

 श्रीमद्भगवदगीता में श्रीकृष्ण के माध्यम महाकाल का विश्व रूप या विराट रूप  हमें अभेद का संदेश देता है।औऱ उस दशा की ओर संकेत करता है जिसमें हम नगेटिव व पॉजीटिव दोनों से ऊपर उठता है।

महाभारत के बाद हमारे लिए पहली आध्यात्मिक क्रांति है- हजरत इब्राहिम (लगभग 2000 ई0पूर्व)..!!

हमारी नजर में  इस्लाम शब्द हो सकता है कि दुनिया की नजर में नया न हो लेकिन इस्लाम एक विचार,दर्शन ,एक आंतरिक  दशा के रुप में  सदा से है।

हमसे कोई पूछता है-इस्लाम क्या है तो हम कहते हैं-"  वह जमात जो पुनर्जन्म से मुक्त है।

सुना जाता है मोहम्मद साहब सपरिवार साल में एक बार 30-40 दिन हिरा की पहाड़ी की गुफा में रहकर व्रत में रहते थे।  उस समय   30-40 दिन चन्द्रायण व्रत ,काया कल्प व्रत आदि की परंपरा साधकों में थी। ऐसा भी सुना जाता है कि उन दिनों अनेक विषम परिस्थियों से लोगों को गुजरना पड़ता था। वास्तव में ईमान में जीने वालों के लिए दुनिया हमेशा एक भयानक  जंगल की तरह रही है। 

शनिवार, 10 अप्रैल 2021

47 वां वर्ष?!47वां वर्ष अनेक व्यक्तियों के लिए खास रहा है::अशोकबिन्दु



 लगभग 47 वर्षीय सोनू  सूद  अपने मकान के बरामदेे में नीचे सिर झुकाए टहल रहे थे।

अनेक व्यक्तियों के लिए 47 वां वर्ष महत्वपूर्ण रहा है। 

मुंबई क्रांति:: पहले सिनेमा, फिर टीवी अब सोशल मीडिया...!?पूंजीवाद, माफिया, अंडरवर्ड की मिलीभगत ?दिल्ली कलकत्ता से ही नहीं मुंबई से एक बड़ा खेल खेला गया::अशोकबिन्दु

 नेता, माफिया, जातिवाद, मजहबवाद,क्षद्म सेक्यूलरवाद, भीड़ हिंसा?!  और बेचारा जनतंत्र?!

----------------------------------------------------अशोकबिन्दु


सन 1935 से ही देश की राजनीति निम्न स्तर की होने लगी। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस,सरदार पटेल, अम्बेडकर आदि जैसे लोग जो राजनीति सिर्फ देश सेवा के लिए ही करना चाहते थे उनको हटाने के षड्यंत्र चलने लगे थे। सन 1947ई0 में सत्तापरिवर्तन के बाद भी क्या हुआ? सामन्तवाद, पूंजीवाद, सत्तावाद आदि नई शक्ल में आगया।कुछ अलगाववादी, लुटेरे पन्थ परिवर्तन कर धर्म की पताका ले,कुछ समाज सेवा की पताका लिए, कुछ मुंबई में सिनेमा स्टार बन, कुछ कुछ विश्व विद्यालयों में  इतिहासविद हो गए.....आदि आदि।एक बड़ा खेल तो बालीबुड के माध्यम से खेला गया।

तन्त्र के नाम से देश में सामंतवादी  जनतंत्र का उदय हुआ। तन्त्र को जनता के हित में न बना कर पूंजीपतियों, सामंतवादियों, मजहबीयों ,माफियाओं आदि के लिए खड़ा किया गया। 73 सालों में ईमानदार, सम्विधान प्रेमी, मानवतावादियों आदि को ही संरक्षण व आरक्षण की व्यवस्था न कर पाया। गांव व वार्ड का गुंडा, दबंग आदि किसी न किसी नेता या दल का खास होता है या जन्मजात उच्चवाद, जन्मजात पुरोहितवाद आदि से प्रभावित होता है।



मुंबई की ओर जब निगाह डालते हैं तो वहां से हमें भारत की बर्बादी की चमक दिखाई देती है। 


एक मनोवैज्ञानिक जानता है कि सन 1947 के बाद जो सामाजिक मनोविज्ञान बनाया गया है,उसमें वे भी शामिल हैं जो समाज में सम्माननीय भी हैं।

विभिन्न समस्याओं पर समाज व सामाजिकता की क्या भूमिका है? अब एक समस्या है- दहेज।दहेज के खिलाफ समाज व सामाजिकता की क्या भूमिका है? एक समस्या है- औरत जाति के प्रति बनती सोंच। जिसके खिलाफ समाज व सामाजिकता की क्या भूमिका है?बालिकाओं, युवतियों  को तो अपनी क्षमताओं, प्रतिभाओं आदि से समझौता करना पड़ रहा है,उन पर बंदिशें लगाई जा रहीं है, उनको आत्म निर्भर व सशक्त बनाने की मानसिकता अब भी समाज व सामाजिकता की नहीं है। ऊपर से 99 प्रतिशत बालकों, युवकों की दशा क्या हो रही है?नशा व्यापार, सेक्स, बिरादरी के अपराधियों, माफियाओं की हाँहजुरी आदि.... समाज व सामाजिकता इसके खिलाफ क्या एक्शन ले रही है?

महाभारत के बाद क्रांति का पहला बिगुल बजाया था-हजरत इब्राहीम (ईसा पूर्व 2000 वर्ष) ने !! प्रिय की कुर्बानी?!प्रिय की कुर वाणी ???!! शब्दों के पीछे बड़ा महान व अनन्त पथ छिपा है लेकिन शब्दों पर भी राजनीति हो जाती है लेकिन उसके पीछे के अनन्तता की खोज नहीं।


#अशोकबिन्दु




शुक्रवार, 9 अप्रैल 2021

आरोप प्रत्यारोप ,निंदा से इंसानियत नहीं सजती::अशोकबिन्दु

 ईसा मसीह यात्रा पर थे।कहीं पर एक औरत को गांव के लोग उस पर पत्थर आदि मार रहे थे। 

ईसा मसीह बोले -सावधान! थोड़ी देर रुको मेरी भी सुन लो।हम भी इस पर पत्थर मरेंगे।पहले सोचों हम स्वयं क्या हैं?क्या हम कोई पाप नहीं करते?हम स्वयं क्या कोई पाप नहीं करते?क्या हम भविष्य में कोई पाप नहीं करेंगे?

ईसा मसीह के इस  प्रसंग के साथ हम भीम राव अम्बेडकर को आज याद करते हैैं। आज की तारीख में भी उन सेे बेहतर कोई   विद्यार्थी नहीं है विश्वविद्यालय में उन्होंने शिक्षा प्राप्त की थी ।

हमने कहीं प्रसंग पढ़ा है-अम्बेडकर के जीवन में एक लम्हा ऐसा भी था कि वे आत्म हत्या का विचार भी ले आये थे।  लेकिन अंतर्द्वंद्व में वे इस निष्कर्ष में पहुंचे कि हमें जिंदा रहना है।हम जैसे अनेक भाई बन्धु हैं जो अभी संघर्ष करने की हिम्मत नहीं रखते। उनका साहस हमें बनना है। मानव समाज में अब भी अनेक मानव हैं जिन्हें मानव नहीं समझा जाता।

बुधवार, 7 अप्रैल 2021

08 अप्रैल ::: विश्व स्वास्थ्य दिवस/जान है तो जहान ::अशोकबिन्दु


 शब्दो व वाक्यों के पीछे अनन्त छिपा है, अनेक स्तरों से गुजरते हुए।

जान है तो जहान है।

इस वाक्य में अनन्त छिपा है लेकिन वह अनन्त कब मिलेगा?

स्वास्थ्य?!
स्वास्थ्य शब्द में अनन्त छिपा है लेकिन वह कब मिलेगा?

हम कहते रहे हैं कि जगत में जो भी है उसके तीन स्तर हैं-स्थूल, सूक्ष्म व कारण। इन तीनों स्तरों से ऊपर गुजरते हुए अनन्त यात्रा में अनन्त बिंदु हैं,अनन्त स्तर हैं। ऐसे में प्रत्येक बिंदु या स्तर पर कोई पूर्ण नहीं है।प्रत्येक बिंदु या स्तर पर दो तरह की सम्भावनाएं हैं।

आज हम स्वास्थ्य पर चर्चा करते हैं। स्वास्थ्य के भी तीन स्तर हैं और तीनों स्तरों से ऊपर अनन्त यात्रा की ओर अनन्त स्तर या अनन्त बिंदु है।

समाज में कहावत है कि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है लेकिन सहज मार्ग में ऐसा नहीं है।सहज मार्ग राज योग में ऐसा नहीं है।यहां मनोविज्ञान ही सब कुछ है। मन चंगा तो कठौती में गंगा.... मन के हारे हार है मन के जीते जीत.... मन ही मन लड्डू फोड़ना..... मन का राजा होना.... आदि का सहज मार्ग राजयोग में बड़ा महत्व है। पॉजीटिव सोंच में रहना बड़ा महत्व है।इसमें किसी की निंदा, आलोचना ,आरोप प्रत्यारोप आदि भी पॉजीटिव सोंच का निम्न स्तर है।सबका अलग अलग स्तर है, महत्वपूर्ण है कि हर स्तर पर दिव्य सम्भावना उपस्थित है जिसके लिए निरन्तर अवसर ही सुप्रबन्धन है।

सहज मार्ग राजयोग में स्वस्थ है-स्व में स्थित, आत्मा में स्थित।
हाड़मांस शरीर की स्वस्थता की हद कहां तक है?अनन्त तक नहीं है। जो कहते हैं कि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है1 उनसे हम पूछना चाहेंगे कि क्या उनFका मनोविज्ञान, मन प्रबन्धन स्वस्थ है?वे क्या क्रोध नहीं करते?वे क्या लोभ लालच, ईर्ष्या, चाटुकारिता, हाँहजुरी,कामबासना, इंद्रियों आदि में नहीं जीते?अहंकार में नहीं जीते?सुख दुख में नहीं जीते?! ये सरासर गलत है कि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है।

स्वस्थ है आत्मा में स्थित।स्वार्थ है आत्मार्थ।आत्मा के लिए, धर्म के लिए।


रविवार, 4 अप्रैल 2021

कोई भी विकास पूर्ण नहीं है::अशोकबिन्दु

 16 वीं सदी पहले जो सोच थी वह ये थी कि दुनिया व प्रकृति को उसके हाल पर छोड़ दो।हमे अपने चेतना व समझ के स्तर को बढ़ाना चाहिए। कोई विकास को प्राप्त कर ही नहीं सकता प्रगतिशील रह सकता है। एक समय ऐसा था जब मशीने नहीं थीं लेकिन आज से ज्यादा विज्ञान था। आज कल भौतिकता, मशीने तो बड़ी है लेकिन मानव की चेतना व समझ का स्तर संकुचित हुआ है। महाभारत युद्ध ने जो नुकसान किया है वह अब भी नहीं भरपाई कर पाया है। 


द्रोपदी, गांधारी, धृतराष्ट की आत्मा आज भी दुखित है लेकिन अफसोस हर घर में व कदम कदम पर द्रोपदी, गांधारी, धृतराष्ट्र जिंदा हैं, नये पैदा हो रहे हैं। उस समय की झुंझलाहट अब भी कुछ जातियों, कुछ पंथों, कुछ व्यक्तियों में देखने को मिलती है।लेकिन वे श्रीकृष्ण के शान्तिदूत रूप को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं।


भक्त विदुर की कबीला परम्परा अब भी विश्व बंधुत्व, बसुधैवकुटुम्बकम, अनेकता में एकता ,विश्व सरकार, एक विश्व नागरिकता आदि के इंतजार में हैं।


जगजीवन राम का सङ्घर्ष व वन्यसमाज,दलित,पिछड़ा आदि के बीच पूंजीवाद,सत्तावाद की धमक ::अशोकबिन्दु

 5 अप्रैल ::जगजीवनराम जन्मदिन!!


आदि काल से ही कुछ समान होता आया है।



धरती के पहले अधिकारी


वन्यसमाज,जीवजन्तु,जंगल,कृषक,पशुपालक,लघु व कुटीर उद्योग,समूह व सहकारी संस्कृति के खिलाफ बड़ी मिठास से भी षड्यंत्र रचे जाते रहे।


बसुधैब कुटुम्बकम,जगत का कल्याण हो,सागर में कुम्भकुम्भ में सागर,महाकाल का विराट रूप आदि का प्रवचन देने वाले अब अपने ही परिजनों व रिश्तेदारों से जंग करते नजर आ रहे हैं। दूसरी तरफ सत्तावाद,पूंजीवाद, जन्मजात पुरोहितवाद, जनमजात उच्चवाद, जन्मजात निम्नवाद आदि आदि काल से मानव समाज व वन्य समाज को कुचलते मसलते रहे हैं।


विश्व का आर्थिक व सामाजिक लोकतंत्र पूंजीवाद, सत्तावाद आदि की बलि चढ़ता रहा है।


हमारे संविधान सभा ने सम्विधान की प्रस्तावना में समाजवाद आदि शब्दों को डाल तो दिया लेकिन अभी तन्त्र से पूंजीवाद, सत्तावाद, सामन्तवाद, जातिवाद आदि दूर नहीं हुआ है।

शुक्रवार, 2 अप्रैल 2021

तन्त्र में प्रमुखों के सम्मान का महत्व ::अशोकबिन्दु

 मोदी हो या योगी, राहुल हो या ममता ::जनतंत्र में सबका सम्मान आवश्यक::-अशोकबिन्दु

जनतंत्र का मतलब क्या है?!

सभी को अपने मत की स्वतंत्रता। 


ऐसे में विपक्ष का भी मजबूत होना आवश्यक है।

जनमत से नियुक्त प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, सांसद, विधायक आदि सम्मान का हकदार है।वास्तव में वह नियुक्त होने के बाद किसी दल या जाति मजहब का प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, सांसद, विधायक आदि नहीं होता है।

एक कहावत है कि ड्राइबर के समीप बैठने से झटके नहीं लगते। विपक्ष में होने का मतलब विपक्ष में होना नहीं, दुश्मनी में होना नहीं।जनतंत्र में विपक्ष एक व्यवस्था है। जो दुश्मनी, अपराध, जोर जबरदस्ती पर बल देता है वह जनतंत्र का ही दुश्मन नहीं वरन कानून की नजर में भी अपराधी है।वह जेल में होना चाहिए।भीड़ हिंसा या किसी भी तरह की हिंसा जनतंत्र में अपराध है।


मोदी हो या योगी,जो उनके खिलाफ खड़ें हैं वे कानूनी व्यवस्था  में अपराधी हैं।जनतंत्र में वे जनमत प्राप्त कर पद को प्राप्त किए हैं।उसका सम्मान होना चाहिए। जनतंत्र में आप स्वतंत्र हैं विपक्ष में रहने को लेकिन विपक्ष में रहने का मतलब जनतंत्र में दुश्मनी नहीं है। जो दुश्मनी पर उतारू हैं या अपने जाति मजहब के लिए कानून व जनतंत्र को भी ताख पर रख देने के लिए तैयार हैं उन्हें जेल में होना ही चाहिए।व्यवस्था है पांच साल रहने की,जो जीत कर आया है वह पांच साल रहने का हकदार है। यदि आप विपक्ष में है तो आप सिर्फ अपनी बात कह सकते हैं, शांति से आंदोलन, धरना आदि कर सकते हैं।लेकिन जो एक मत प्राप्त कर चुन आया है, उस मत धारियों का क्या अपमान नहीं है?उसका दुश्मन जैसा विरोध करना या अपनी जाति मजहब के लिए सबकुछ करना। जाति मजहब तो और भी हैं।जनतंत्र का मतलब तो समझो।


#अशोकबिन्दु


गुरुवार, 1 अप्रैल 2021

आदिकाल से 15 प्रतिशत बनाम 85 प्रतिशत और जातिव्यवस्था::अशोकबिन्दु


 वर्तमान में तथाकथित ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य तो नजर आ रहे हैं लेकिन शूद्र नजर नहीं आ रहे हैं। यदि ये ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य के अलावा शेष सब शूद्र के नाम पर एकत्रित हो जाएं तो विश्व की राजनीति ही बदल जाये। ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य के अलावा शेष सब जाति, उपजाति के नाम पर विभक्त हैं उतना कोई नहीं।यदि ये सब जाति, उपजाति भुला कर राजनैतिक मंच पर एक हो जाएं तो हजारों साल इनका शासन हो जाये। 


  समय समय पर जाति व्यवस्था के खिलाफ कुछ लोग अलख जगाते रहे हैं लेकिन ऐसा सम्भव न हो सका। ओशो कहते हैं गुलामी का असर काफी पुराना है और काफी समय तक रहना।और फिर सत्तावाद नहीं चाहता कि आम आदमी जागे।ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य के अलावा शेष सब को यदि अपना इतिहास पता चल जाये तो हिन्दू अल्पसंख्यक हो जाएगा।ओशो ऐसा कहते हैं।



कॉर्ल मार्क्स ने कहा है कि दुनिया को बर्वाद करने वाले हैं-पूंजीवाद, सत्तावाद व पुरोहित वाद। ये कभी आम आदमी को अवसर नहीं देना चाहते।  अनेक सन्तों व ऋषि परम्परा को महत्व देने वाले कहते रहे हैं कि दुनिया में,प्रकृति में कहीं भी कोई समस्या नहीं है।समस्या  मानव समाज में हैं।आध्यत्म व मानवता ,विश्व सरकार में सभी समस्याओं का हल है।



सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर,बसुधैब कुटुम्बकम, विश्व बंधुत्व आदि दशा से पहले मानव की धार्मिकता, आध्यत्मिकता, ईश भक्ति, ईमान, मुसलमान होना, सत्संगी होना आदि सब बेईमानी है।