बाबा रामदेव जी के द्वारा नगर नगर जा कर अपने योग शिविरों में कालेधन व भ्रष्टाचार पर विचारों ने देश को प्रभावित करने के साथ साथ मुझे भी प्रेरित कर रखा था.जब छब्बीस फरबरी को अन्ना हजारे ने सम्बाद दाता सम्मेलन बुला कर नागरिक समाज द्वारा तैयार किए गए जन लोकपाल विधेयक पर पांच अप्रैल तक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कोई फैसला न लेने पर आमरण अनशन पर बैठने की घोषणा करने के बाद मुझमेँ भी कुछ कर गुजरने की तमन्ना जागी.सन 2000ई0के आते आते में अन्ना हजारे के दैनिक जीवन व मूल्यों से प्रभावित हो अपने लेखों व सम्वादों में उनका जिक्र करने लगा था.सन 2002ई0में स्वसम्पादित व प्रकाशित पत्रिका 'स्पर्श' में भी मैने अन्ना पर दो पेज प्रकाशित किए थे.
15जून1938ई0को महाराष्ट्र के रालेगांव सिद्धी गांव में जन्मे किशन बाबूराव हजारे आज अन्ना हजारे नाम से पूरी दुनिया मेँ चर्चित हो चुके हैं.जो कहते फिरते हैं कि देश में आदर्श व्यवस्था स्थापित नहीं की जा सकती ,अन्ना हजारे कार्यों से प्रेरणा लेनी चाहिए.यह अपने स्वार्थ में राजनीति को व्यवसाय समझने वाले राजनेताओं की अब भी चाटुकारिता नजर आते हैं.जो चोर को चोरी करना, कत्लियों को कत्ल करना ,शराबी का शराब पीना,दबंगों की दबंगयी करना,आदि नहीं रोक सकते ऐसे राजनेताओं को समर्थन करने वाले मूर्ख हैँ.अब भी ऋणात्मक सोंच रखने वाले व्यक्ति यही कहते फिरते हैं कि आम आदमी का भला होने वाला नहीं. किशोरावस्था से मैं अभी तक जो सोंचता आया था ,उसको धरती पर लाने काम अब शुरु हो चुका है.मेरा एक ख्वाब था कि तमाम बुद्धिजीवी,कलाकार,साहित्यकार,संत,आदि बदलाव के लिए एक मंच पर आयेँ,यह ख्वाब अब पूरा होता नजर आ रहा था.मैं विचार बना चुका था ,जन्तर मन्तर पर जाने का.लेकिन इससे पूर्व मैं स्थानीय स्तर पर अपने नेतृत्व में कार्यक्रम कर लेना चाहता था.आस पड़ोस में होने वाले कार्यक्रमों में शामिल हो अनुभव बटोरने लगा था.आखिर रविवार,10अप्रैल को 8.00 AM का समय हमने निश्चित कर लिया,जिसके तहत कार्यक्रम में जलूस व एक सभा तय थी.इस बीच मैने अनुभव किया कि जो बड़ी मुश्किल से वोट डालने नहीं निकलते वे इस जनान्दोलन का हिस्सा बनने के लिए व्याकुल हो चले थे.इन दिनों में दुनिया को यह मैसैज भी मिला कि लोग सिर्फ राजनैतिक पार्टियों की भीड़ का ही सिर्फ हिस्सा नहीं बन सकते.
वास्तव मे हममे यदि थोड़ा भी धर्म जिन्दा है ,तो ऐसे कार्यक्रमों के दौरान खामोश नहीं बैठ सकते. लेकिन तब भी हमे ऐसे लोग भी मिले,जो कहते कि अपने को देखो व अपनी फैमिली को देखो.मैं उनसे कहता कि शायद आप धर्म की एबीसी तक नहीं जानते,धर्म के रास्ते पर अपना कोई नहीं होता और जो अपने को सामाजिक समझ कर मेरी सामाजिकता पर अंगुली उठाते हैं,शायद प्रभु हमेँ ऐसा अवसर देगा जब मै दुनिया को सामाजिकता दिखाऊंगा.इन्सानियतहीन व मेरीगैरानुपस्थिति में भी सम्पन्न होने वाले उन सामाजिक कार्यों में जिनसे इंसानियत का उद्धार नहीं होता ,उनमें भागीदार न होने से यदि हम पर असामाजिकता का ठप्पा लगता है,तो चलॅगा लेकिन महान लोगों के पथ पर मैँ कुर्वान होना सहर्ष स्वीकार करुंगा.इन दिनो मैने महसूस किया है कि देश का बुद्धिजीवी अन्ना के साथ खड़ा था,मैं मामूली सा व्यक्ति कैसे पीछे छूट जाऊँ?
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