मुलाकात, सम्वाद, सहयोग ,सेवा, आदि मानवता के लिए अति आवश्यक है.मानवता से बढ़कर और क्या ? और फिर अपने मिशन को आगे बढ़ाने के लिए सहयोग की आवश्यकता पड़ती ही है.दान व चन्दा का आदिकाल से महत्व रहा है.हाँ,यदि दान व चन्दा का हेतु मानवता के हित मेँ न हो कर किसी देश जाति ,पन्थ, विशेष आदि के व्यक्तियोँ के विरोध मेँ हो तो चिन्तनीय है.
पुलिस सूत्रोँ के मुताबिक धर्मशाला से 10किलोमीटर दूर सिद्धबाड़ी मेँ तिब्बती धर्मगुरु करमापा उग्येन त्रिनले दोरजी के मठ मेँ शुक्रवार रात को उनसे पूछताछ शुरु की गई . तिब्बती बौद्ध अनुयायी करमापा को करमा काग्यू का 17 वां अवतार मानते हैँ.वह दलाई लामा व पांचेन लामा के बाद के तीसरे सर्वोच्च संत माने जाते हैँ.करमापा के अस्थायी निवास से मिली सात करोड़ रुपए मूल्य की विदेशी और भारतीय मुद्रा व ऊना पुलिस द्वारा मैहतपुर मेँ गाड़ी से बरामद एक करोड़ रुपए के सिलसिले मेँ करमापा पुलिस ने पचास प्रश्न पूछे.करमापा ने पुलिस को बताया कि उन्हेँ यह रकम दान मेँ मिली है.मठ के प्रतिनिधि करमा तोपेन ने भी कहा कि करमापा का चीन से कोई संबंध नहीं है.देहरादून से शनिवार सुबह धर्मशाला पहुंचे गोंपो छेरिंग और उनकी छोडन ने अपने पहुंचने की सूचना पुलिस को दी तो पुलिस ने तुरंत गोंपो छेरिंग को हिरासत मेँ ले लिया.छेरिंग ने बताया कि कमरे मेँ रखी रकम करमापा के हाल ही के भारत भ्रमण के दौरान एकत्रित चढावा है.इसकी गिनती की जानी थी.
महत्वपूर्ण यह नहीँ कि करमापा के पास से पायी गयी मुद्रा की राशि क्या है?महत्वपूर्ण यह है कि इस मुद्रा का इस्तेमाल कैसे और कहाँ पर होना था.यदि प्रश्न यह है कि यह मुद्रा जिनसे प्राप्त हुई है वे कैसे लोग हैँ?तो फिर.........!?तो फिर देश के अन्दर मौजूद मिलावटखोरोँ, नकली औषधि विक्रेताओँ ,आदि के खिलाफ कार्यवाही कर उनसे चन्दा व दान लेने वालोँ पर कार्यवाही क्योँ नहीँ? देश भी स्वयं मेँ क्या हैँ?जनसंख्या से विहीन देश की भी क्या कल्पना की जा सकती है?जो देश की जनता के स्वास्थ्य व भविष्य के साथ खिलवाड़ करने मेँ लगे हैँ वे देशद्रोही क्योँ नहीँ?यदि नहीँ,तो 'देशद्रोही 'की परिभाषा पर पुनर्विचार की आवश्यकता है.
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