कौटिल्य शिष्य चन्द्र गुप्त ने पंजाब व अन्य क्षेत्र के असंतुष्टों को एकजुट कर सेना बनाई थी। बाबर ने भी ऐसा ही किया। अन्य भी इस तरह के उदाहरण है। भविष्य नए दलों का होगा।वर्तमान दल समाज व देश की दिशा व काया नहीं बदल सकते।
कुछ बीमारी ही हद पर यहां तक पहुंच जाते हैं कि दुनिया के डॉक्टर अपने हाथ खड़े कर लेते हैं। दुनिया व देश,सरकारों, नेताशाही, नौकरशाही का सिस्टम/तन्त्र उतना ही बीमार है कि वह बीमारी से मुक्त नहीं हो सकता। उसके मरने का इंतजार करना होगा। कुदरत की मार को झेलना ही होगा। 2011 से2025 तक का समय काफी महत्वपूर्ण है। भविष्य में जो होना है,उसका रास्ता बन रहा है। कुदरत की ओर से भी कुछ शक्तियां कार्य कर रही हैं। समय पर हिसाब किताव बराबर हो जाएगा लेकिन धृतराष्ट्र व गांधारी के हाथ कुछ भी न लगेगा। हमें अफसोस है कि हमने 2014 में कुछ ज्यादा ही उम्मीदें कर लीं जिस तरह केजरीवाल आदि के षड्यंत्र में फंसे अन्ना आंदोलन से कर बैठे। स्तर दर स्तर अभी काफी कुछ होना बाकी है।अफसोस कि मोदी पूंजीवाद, सत्तावाद,माफिया तन्त्र में ही फंसे हुए हैं। जयगुरुदेव ने कहा था, देश के हालात ऐसे हो जाएंगे जैसे कुत्ते के गले में फंसी हड्डी! इतिहास गबाह है क्रांति कौन करता है?#असन्तुष्ट मगध के राज्य के खिलाफ क्रांति का स्वर भरने वाला चाहें चाणक्य को मानो या चन्द्र गुप्त को लेकिन यह सत्य है कि उनके साथ खड़ा था-#असन्तुष्ट ! फ्रांस की क्रांति हो या रूस की क्रांति?या इंग्लैंड की क्रांति? किसने शुरू की थी? #असन्तुष्ट ने। ये उठा कर देख लो- नौकरशाही, सत्तावाद,पूंजीवाद, पुरोहितवाद,माफियावाद नें क्रांति में अपनी आहुतियां नहीं दी है । आदि काल से वन्य समाज,किसान, पशु पालक, परिवर्तनों के कारण बेरोजगार, मजदूर आदि को ठगा जाता रहा है। समाज,देश व विश्व में क्या होना चाहिए?इससे बुद्धिजीवी निष्पक्षता उपेक्षित रही है। वर्तमान दल, नेताओं, सरकारों के पास वह हिम्मत व जज्बा नहीं है जो जड़ से जुड़ी समस्याओं का हल कर सकें। सरदार पटेल,अम्बेडकर, दीनदयाल, अटल, लोहिया आदि को लेकर तो राजनीति चल रही है लेकिन उनके विचारों को आत्मसात करते हुए नहीं। एक वक्त आएगा जब वर्तमान नेताओं, दलों को हालातों को संभालना मुश्किल होगा। पूंजीवाद, सत्तावाद, पुरोहित वाद, जातिवाद,माफिया वाद आदि में लिप्त व्यवस्था समाज व देश का भला नहीं कर सकती। #अशोकबिन्दु
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