सहज मार्ग में व्यवहारिक रूप से व्यक्ति के अंदर की दशा को महत्व दिया गया।पुस्तकें सिर्फ विचार जगत को बदलाव लाने के लिए हैं।हम आस्तिक हों या नास्तिक, ब्राह्मण हों या शूद्र, हिंदुस्तानी हों या इंग्लिस्तानी, गरीब हों या गरीब, हिन्दू हों या मुसलमान.... आदि आदि,यह महत्वपूर्ण नहीं है।यह भी महत्वपूर्ण नहीं है कि हमारे ग्रन्थ क्या कहते हैं?महत्वपूर्ण ये भी नहीं हैं कि हमारे पूर्वज क्या थे?महत्वपूर्ण यह है कि हमारे अनुभव, अहसास, महसूसीकरण शक्ति, आभास करने की शक्ति, चेतना व समझ का स्तर, बुद्धिमत्ता(बदलाव को स्वीकार करने की क्षमता बुद्धिमत्ता की माप है:आइंस्टीन)....आदि आदि।सहज मार्ग में जो भी साहित्य है, वह आत्मा के अध्ययन का परिणाम है, अनुभव है न कि पुस्तकों के अध्ययन का परिणाम। हम आप को अपनी जाति, अपने मजहब, अपने ग्रन्थों, अपने महापुरुषों, अपने धर्मस्थलों आदि पर कितना भी नाज हो,यह शाश्वत जीवन, कुदरत, हमारे अंदर व प्रकृति के अंदर के स्वतः, निरन्तर, जैविक घड़ी आदि की नजर में वह महत्वपूर्ण नही है।वह हम आपकी उच्चता को प्रदर्शित नहीं करता न ही निम्नता को। #अशोकबिन्दु #सहजमार्ग
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