मंगलवार, 28 जुलाई 2020

अनन्त यात्रा में सुर बनाम असुर::अशोकबिन्दु





हम सब इस भाव में रहने का प्रयत्न करते हैं कि सागर में कुम्भ, कुम्भ में सागर। हमारे अंदर आत्मा है जो अनंत यात्रा का द्वार है सभी प्राणियों में सभी में प्राणशक्ति मौजूद है इसलिए निरंतर स्वयं ही प्राण आहुति में रहना अपने अंदर सबके अंदर प्रणाहूति को महसूस करने का अभ्यास करना उसके बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता इसको एहसास करने का प्रयत्न करना हमारे वैश्विक मार्गदर्शक कमलेश डी पटेल दाजी कहते हैं लोग मतभेद में रहते हैं ईश्वर है कि नहीं मैं तो कहना चाहूंगा तुम आस्तिक हो या नास्तिक यह महत्वपूर्ण नहीं है महत्वपूर्ण है कि तुम महसूस क्या कर रहे हो अनुभव क्या कर रहे हो महसूस करने अनुभव करने से ही हम शुरुआत करते हैं परमात्मा की ओर जाने की अनंत यात्रा की ओर जाने की।

एक असुर वे भी थे जो ब्रह्म,विष्णु महेश को भी खुश कर लेते थे लेकिन दुनिया की सभी नगेटिव हरकतों में व्यस्त रहते थे।आज भी हैं।यज्ञ भी करते हैं, धर्म स्थलों पर भी जाते हैं, जागरण कराते हैं, धर्म व ईश्वर के नाम पर न जाने क्या क्या करते हैं लेकिन उन्हें असुर क्यों न कहा जाए?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें