शांति शांति करते हम दक्षेस सरकार व विश्व सरकार का भी सपना देख बैठे।
ये हमारी भविष्य यात्रा का हिस्सा है।
हम कहते आये हैं-हम सिर्फ प्रकृति अंश व ब्रह्म अंश हैं।
प्रकृति व ब्रह्म का असर ऐसे में हम पर स्वाभाविक है लेकिन हम इससे हट कर बनाबटी, कृत्रिम जीवन को जीते हैं।जो कि यज्ञ/मिशन के खिलाफ है। जगत में मनुष्य को छोंड़ सभी प्रकृति अभियान
अर्थात यज्ञ में जीते हैं।
लेकिन हम इसे कैसे जिएं?
इसे हम महसूस कैसे करें?
ज्योतिष स्वयं क्या है?
अनेक ने इसके विरोध में भी लिखा है।
शब्द कोषों में जितने भी शब्द हैं, निरर्थक नहीं हैं।
हम ये भी कहते रहे हैं कि हम हो या जगत की कोई वस्तु कोई शब्द कोई वाक्य कोई ध्वनि स्वयं जगत या ब्रह्मांड .......उसकी 3 अवस्थाएं है- स्थूल सूक्ष्म व कारण।
ऐसा शब्द के साथ भी है, वाक्यों के साथ भी है।
शब्द या वाक्य भी के तीन स्तर हैं, तीन अवस्थाएं है-स्थूल, सूक्ष्म व कारण।
इसलिए कमलेश डी पटेल दाजी कहते हैं-इससे फर्क नहीं पड़ता कि आप नास्तिक है या आस्तिक।महत्वपूर्ण है आप महसूस क्या करते हैं?अनुभव क्या करते है?चिन्तन मनन क्या है?नजरिया क्या है?
अपना अदृश्य?
अपना व जगत का अदृश्य भी है,जो सूक्ष्म, सूक्ष्म से सूक्ष्मतर... व कारण।
हम चौराहे पर आए और दो हजार का नोट सड़क पर पड़ा मिल जाए?हम खुश हो बैठते हैं।मन उछल पड़ता है।
होश आया, तुम्हारे धर्म स्थलों में रुचि नहीं, तुम्हारे जातियों मजहबों में रुचि नहीं । किशोरावस्था में आते ही आंख बंद कर हम जो पाने लगे वह तुम्हारे पुरोहितवाद, सत्तावाद, पूंजीवाद, जाति वाद आदि में न मिले।
अचानक कुछ होता रहा है।आकस्मिक।हमने तो आकस्मिक योग,एक्सीडेंटल योगा को भी महसूस किया है। अचानक कुछ अदृश्य से प्राप्त होना। लेकिन उसे प्राप्त कर उछलना खतरनाक है।
हमारे सभी स्वप्न,कल्पना, अहसास आदि सिर्फ बकबास ही नहीं होते।
आम आदमी ने भी इसे महसूस किया है, अर्द्ध निद्रा में जो देखा वह अगले दिन घटित हो गया।
पूरे नगर में जब पहली बार परिक्रमा की एक विशेष भाव में तो इसके बाद उस रात ये क्या?
अरे, वो उनका घर है?
ये वो है?
भमोरी रोड पर वहां वो है?
थाना के सामने वहां वो है?
जलालाबाद रोड पर ही फ़ीलनगर नगर में उस मंदिर में वो है?
रामनगर कालोनी में वो अमुख अमुख परिवार है।
अरे, ये क्या?
आतिशबाजान में ये?
हम कक्षा पांच से शांति कुंज साहित्य, आर्य समाज साहित्य, अखंड ज्योति पत्रिका को पढ़ते रहे हैं। पढ़ते कम, चिंतन मनन, कल्पना में ज्यादा लाए...... हमने पड़ा था- हमारा सूक्ष्म जनता है।
आयुर्वेद तो कहता है, हमारे साथ क्या होने वाला है-वह हम छह महीने पहले ही जान सकते हैं।
इस निष्कर्ष पर विज्ञान भी पहुँचा है।जब से रूस में एक तकनीकी आयी है, आभा मंडल कैच करने की।
और ये क्या?
अर्द्धनिद्रा में-
अर्द्ध निद्रा में एक बार दो यमदूत हमारे समीप से यह कह कर गुजरे, आओ चलो।हम एक दूत का फरसा लेकर चल देते है। एक गली में पहुंच कर एक को आवाज देते हैं।वह बाहर आता है,तो उसे फरसे से मार देते हैं।....ऐसे स्वप्न?!
दूसरे दिन स्कूल जाते वक्त पता चला कि अमुख - अमुख लड़का अपने मित्र के साथ गंगा स्नान पर गया था, एक्सीडेंट में मारा गया।
ऐसे स्वप्न?!
ये क्या है?
ऐसे नगेटिव - पॉजीटिव स्वप्नों ,अहसासों से हमारी रातें भरी है।अब तो ऐसा दिन में भी होने लगा है।
लेकिन?!
लेकिन ये स्वप्न, अहसास आदि हमारी सफलता नहीं हैं। कोई साधना स्वयं में पूर्ण नहीं है।
भविष्य यात्रा में विकसित कुछ भी नहीं, विकासशील है...... निरन्तर है।
हम तो यही कहेंगे कि अपने किए कुछ कर जाना चाहते हों तो शान्ति को चाहो। चरित्र ये नहीं है, दुनिया की नजर में जीना। दुनिया को बर्दाश्त करते हुए अपना जीवन जीते चलो।
यश - अपयश का हानि......
आज का नायक भविष्य का खलनायक भी ही सकता है।
आइंस्टीन ने कहा है- "कल्पना ज्ञान से भी अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि ज्ञान सीमित होता है, जबकि कल्पना सम्पूर्ण विश्व को समाविष्ट कर लेती है।यह प्रगति को तेज करती है जिससे विकास होता है।"
विद्यार्थी, अभ्यासी, साधक आदि जब शास्त्रीय ज्ञान, पुस्तक विषय, पाठ्यक्रम आदि के तथ्यों को उठाकर कल्पना, चिंतन, मनन में उतरता है वह असीमितता की ओर अपनी चेतना व समझ को बढ़ाने का कार्य करता है।
हमारे व जगत के अंदर,अन्य मनुष्यों एवं जीव जंतुओं के अंदर स्वतः ,निरन्तर है।जब हमारी चेतना व समझ उस ओर बढ़ती है तब हमारी स्थिति सागर में एक लहर की तरह हो जाती है। जो विभिन्न लहरों की समीपता के अहसास के साथ पूरे सागर का अहसास करने लगती है। ये स्थिति हमें त्रिकाल दर्शी से जोड़ती है।
ये आध्यत्म से ही सम्भव है।
शांति व मौन में उतरने से सम्भव है।
शांति बुन बुन हम विश्व शांति, बसुधैव कुटुम्बकम, विश्व बंधुत्व आदि को बुनने लगते हैं।
जातिवाद, मजहब वाद, पूंजीवाद, सामन्तवाद, पुरोहितवाद, धर्मस्थल आदि सबके सब भौतिक सामिग्री, बनाबटी, कृत्रिमताओं आदि नजर आने लगते हैं। हम प्रकृति अभियान/यज्ञ/अनन्त यात्रा के साक्षी हो जाते हैं।
विद्यार्थी या साधक जीवन को ब्रह्मचर्य जीवन मानने का मतलब यही हो जाता है कि हमारी यात्रा अंतरज्योति के साथ शुरू होकर विभिन्न अंतर ज्योतियों व उनके बीच अर्थात विविधता में एकता जैसे एकत्व में प्रवेश कर जाती है।जहां से हम अनन्त यात्रा हम पाते हैं।राजनीति में हमें विश्व सरकार व विश्व शांति का दरबाजा खटखटाना पड़ता है।विश्व बंधुत्व, बसुधैब कुटुम्बकम का दरवाजा खटखटाना पड़ता है।
शब्द?!
शब्द शोर कब बन जाते हैं?बकबास कब बन जाते हैं?गाली कब बन जाते हैं?शब्द व वाक्य बकबास व अश्लील कब हो जाते हैं?
हमारे स्थूल कब-'बरसात में रेंगती गिजाईयों के झुंड'-जैसा हो जाते हैं?निर्रथक कब हो जाते हैं?औचित्य हींन कब हो जाते हैं?अश्लिल व बोझ कब हो जाते हैं?
बात तो शब्द व वाक्य की हो रही थी।
सुबह सुबह जब आ आंख खुलती है, 'अल्लाह हो अकबर'- की आवाज सुनाई देती है।कहीं किधर से गीता के श्लोक, रामचरित मानस की चौपाइयों आदि की आवाज सुनाई देती है।
ये वाक्य स्वयं में क्या हैं?
इन वाक्यों के पीछे महानताओं का संसार छिपा है।
बस, नजरिया की बात है।नजर कहाँ पर है?
इसी तरह शब्द!
अल्लाह!(अल:)!!
इला:!(इलाहा)!!..........आदि आदि!
भाषा विज्ञान में जाने की जरूरत है।
सूक्ष्म में जाने की जरूरत है।
सूक्ष्म में जब हम उतरते हैं तो समाज के धर्मों की धारणाएं विदा हो जाती हैं। पंथों की सारी धारणाएं विदा हो जाती हैं।
शब्द व वाक्य के पीछे की दशा उजागर होने लगती है।
किसी ने ठीक कहा है, भीड़ का धर्म नहीं होता- उन्माद, सम्प्रदायिकता होती है। जिसके दिल में धर्म व दिव्यता फैलती है वह जमाने के धर्मों, धर्मस्थलों की नजर में भी अलग थलग हो जाता है।
ज्योतिष स्वयं क्या है?
ज्योति+ईष अर्थात ज्योति का प्रतीक/चिह्न!अर्थात संकेत! इसके पीछे की दशाएं या स्थितियां क्या है?
हमारे सभी स्वप्न, कल्पना, अहसास आदि सिर्फ बकबास ही होते।
शान्ति का जीवन में क्या महत्व है?
शांति या खामोशी हम स्वीकार नहीं सकते।
बेटा उछलते हुए कप लेकर आता है।लड़खड़ाता है, कप गिर जाता है.... कप गिर टूट जाता है। हम झल लाए, बिगड़े।चलो, ठीक हैं।
सिस्टम के लिए, व्यवस्था के लिए चिल्लाना भी जरूरी हो सकता है लेकिन किस स्तर पर?
नुकसान?!
हमारा कोई बड़ा भौतिक नुकसान हो जाता है, हम हतास उदास या हिंसा से भर जाते हैं।
शांति या खामोशी किस स्तर की? किस स्तर पर!!अपने सूक्ष्म व कारण को हम नजरअंदाज कर दें?
सूक्ष्म व कारण की शर्त पर स्थूल को,भौतिकता ओं को नजरअंदाज कर देना ही कुर्बानी है,समर्पण है, स्वीकार्यता है, शरणागति है?तटस्थता है? क्या हम ठीक सोंचते हैं?
आचार्य क्या है?योगी क्या है?योग क्या है?योगांग-यम क्या है?कोई इसका उत्तर देता है- मृत्यु।
क्या कहा?आचार्य मृत्यु है?योगी मृत्यु है?यम मृत्यु है?
हमारे वरिष्ठ व सरकारें शांति के लिए कितना समय व धन खर्च कर रही हैं?
शांति के लिए हम क्या कर रहे हैं?खामोशी के लिए हम क्या करते है?
अपरिग्रह!?
हम अपरिग्रह के खिलाफ खड़े हो गए हैं?
गेट पर ताले लगाने पड़ रहे हैं?हथियार रखने पड़ रहे हैं? धर्मस्थलों में ही ताले लगाने पड़ रहे हैं?
कहीं तो कुछ गलत हो रहा है?समाज व धर्म के ठेकेदार क्या कर रहे हैं? हूँ, अहंकार में तो न जाने क्या क्या कर जाते है लेकिन धर्म कहाँ है?
हमारी व्यवस्थाए,सरकारें, ठेकेदार किस स्तर के है?
अंगुलिमाल की गलियों से वे क्यों डरते हैं?
'एकता में अनेकता, अनेकता में एकता'- के भाव ,बसुधैब कुटुम्बकम के भाव ,विश्व बंधुत्व के भाव व आचरण से मानव प्रबन्धन जुदा है।विश्व का कल्याण हो? विश्व का कल्याण कैसे हो?
सिर्फ विश्व सरकार...
ज्योतिष!?
ज्योतिष की दशा क्या है?
हमारा वेद आत्मा है।
ज्योतिष=ज्योति+ई ष! ज्योति से जब संकेत मिलने शुरू हो जाएं।कब? सागर में कुम्भ कुंभ में सागर.....
आखिर कमलेश डी पटेल दाजी क्यों कहते है -महत्वपूर्ण ये नहीं है कि हम आस्तिक है या नास्तिक? महत्वपूर्ण है-हम महसूस क्या करते हैं?हमारा आचरण क्या है?
ये हमारी भविष्य यात्रा का हिस्सा है।
हम कहते आये हैं-हम सिर्फ प्रकृति अंश व ब्रह्म अंश हैं।
प्रकृति व ब्रह्म का असर ऐसे में हम पर स्वाभाविक है लेकिन हम इससे हट कर बनाबटी, कृत्रिम जीवन को जीते हैं।जो कि यज्ञ/मिशन के खिलाफ है। जगत में मनुष्य को छोंड़ सभी प्रकृति अभियान
अर्थात यज्ञ में जीते हैं।
लेकिन हम इसे कैसे जिएं?
इसे हम महसूस कैसे करें?
ज्योतिष स्वयं क्या है?
अनेक ने इसके विरोध में भी लिखा है।
शब्द कोषों में जितने भी शब्द हैं, निरर्थक नहीं हैं।
हम ये भी कहते रहे हैं कि हम हो या जगत की कोई वस्तु कोई शब्द कोई वाक्य कोई ध्वनि स्वयं जगत या ब्रह्मांड .......उसकी 3 अवस्थाएं है- स्थूल सूक्ष्म व कारण।
ऐसा शब्द के साथ भी है, वाक्यों के साथ भी है।
शब्द या वाक्य भी के तीन स्तर हैं, तीन अवस्थाएं है-स्थूल, सूक्ष्म व कारण।
इसलिए कमलेश डी पटेल दाजी कहते हैं-इससे फर्क नहीं पड़ता कि आप नास्तिक है या आस्तिक।महत्वपूर्ण है आप महसूस क्या करते हैं?अनुभव क्या करते है?चिन्तन मनन क्या है?नजरिया क्या है?
अपना अदृश्य?
अपना व जगत का अदृश्य भी है,जो सूक्ष्म, सूक्ष्म से सूक्ष्मतर... व कारण।
हम चौराहे पर आए और दो हजार का नोट सड़क पर पड़ा मिल जाए?हम खुश हो बैठते हैं।मन उछल पड़ता है।
होश आया, तुम्हारे धर्म स्थलों में रुचि नहीं, तुम्हारे जातियों मजहबों में रुचि नहीं । किशोरावस्था में आते ही आंख बंद कर हम जो पाने लगे वह तुम्हारे पुरोहितवाद, सत्तावाद, पूंजीवाद, जाति वाद आदि में न मिले।
अचानक कुछ होता रहा है।आकस्मिक।हमने तो आकस्मिक योग,एक्सीडेंटल योगा को भी महसूस किया है। अचानक कुछ अदृश्य से प्राप्त होना। लेकिन उसे प्राप्त कर उछलना खतरनाक है।
हमारे सभी स्वप्न,कल्पना, अहसास आदि सिर्फ बकबास ही नहीं होते।
आम आदमी ने भी इसे महसूस किया है, अर्द्ध निद्रा में जो देखा वह अगले दिन घटित हो गया।
पूरे नगर में जब पहली बार परिक्रमा की एक विशेष भाव में तो इसके बाद उस रात ये क्या?
अरे, वो उनका घर है?
ये वो है?
भमोरी रोड पर वहां वो है?
थाना के सामने वहां वो है?
जलालाबाद रोड पर ही फ़ीलनगर नगर में उस मंदिर में वो है?
रामनगर कालोनी में वो अमुख अमुख परिवार है।
अरे, ये क्या?
आतिशबाजान में ये?
हम कक्षा पांच से शांति कुंज साहित्य, आर्य समाज साहित्य, अखंड ज्योति पत्रिका को पढ़ते रहे हैं। पढ़ते कम, चिंतन मनन, कल्पना में ज्यादा लाए...... हमने पड़ा था- हमारा सूक्ष्म जनता है।
आयुर्वेद तो कहता है, हमारे साथ क्या होने वाला है-वह हम छह महीने पहले ही जान सकते हैं।
इस निष्कर्ष पर विज्ञान भी पहुँचा है।जब से रूस में एक तकनीकी आयी है, आभा मंडल कैच करने की।
और ये क्या?
अर्द्धनिद्रा में-
अर्द्ध निद्रा में एक बार दो यमदूत हमारे समीप से यह कह कर गुजरे, आओ चलो।हम एक दूत का फरसा लेकर चल देते है। एक गली में पहुंच कर एक को आवाज देते हैं।वह बाहर आता है,तो उसे फरसे से मार देते हैं।....ऐसे स्वप्न?!
दूसरे दिन स्कूल जाते वक्त पता चला कि अमुख - अमुख लड़का अपने मित्र के साथ गंगा स्नान पर गया था, एक्सीडेंट में मारा गया।
ऐसे स्वप्न?!
ये क्या है?
ऐसे नगेटिव - पॉजीटिव स्वप्नों ,अहसासों से हमारी रातें भरी है।अब तो ऐसा दिन में भी होने लगा है।
लेकिन?!
लेकिन ये स्वप्न, अहसास आदि हमारी सफलता नहीं हैं। कोई साधना स्वयं में पूर्ण नहीं है।
भविष्य यात्रा में विकसित कुछ भी नहीं, विकासशील है...... निरन्तर है।
हम तो यही कहेंगे कि अपने किए कुछ कर जाना चाहते हों तो शान्ति को चाहो। चरित्र ये नहीं है, दुनिया की नजर में जीना। दुनिया को बर्दाश्त करते हुए अपना जीवन जीते चलो।
यश - अपयश का हानि......
आज का नायक भविष्य का खलनायक भी ही सकता है।
आइंस्टीन ने कहा है- "कल्पना ज्ञान से भी अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि ज्ञान सीमित होता है, जबकि कल्पना सम्पूर्ण विश्व को समाविष्ट कर लेती है।यह प्रगति को तेज करती है जिससे विकास होता है।"
विद्यार्थी, अभ्यासी, साधक आदि जब शास्त्रीय ज्ञान, पुस्तक विषय, पाठ्यक्रम आदि के तथ्यों को उठाकर कल्पना, चिंतन, मनन में उतरता है वह असीमितता की ओर अपनी चेतना व समझ को बढ़ाने का कार्य करता है।
हमारे व जगत के अंदर,अन्य मनुष्यों एवं जीव जंतुओं के अंदर स्वतः ,निरन्तर है।जब हमारी चेतना व समझ उस ओर बढ़ती है तब हमारी स्थिति सागर में एक लहर की तरह हो जाती है। जो विभिन्न लहरों की समीपता के अहसास के साथ पूरे सागर का अहसास करने लगती है। ये स्थिति हमें त्रिकाल दर्शी से जोड़ती है।
ये आध्यत्म से ही सम्भव है।
शांति व मौन में उतरने से सम्भव है।
शांति बुन बुन हम विश्व शांति, बसुधैव कुटुम्बकम, विश्व बंधुत्व आदि को बुनने लगते हैं।
जातिवाद, मजहब वाद, पूंजीवाद, सामन्तवाद, पुरोहितवाद, धर्मस्थल आदि सबके सब भौतिक सामिग्री, बनाबटी, कृत्रिमताओं आदि नजर आने लगते हैं। हम प्रकृति अभियान/यज्ञ/अनन्त यात्रा के साक्षी हो जाते हैं।
विद्यार्थी या साधक जीवन को ब्रह्मचर्य जीवन मानने का मतलब यही हो जाता है कि हमारी यात्रा अंतरज्योति के साथ शुरू होकर विभिन्न अंतर ज्योतियों व उनके बीच अर्थात विविधता में एकता जैसे एकत्व में प्रवेश कर जाती है।जहां से हम अनन्त यात्रा हम पाते हैं।राजनीति में हमें विश्व सरकार व विश्व शांति का दरबाजा खटखटाना पड़ता है।विश्व बंधुत्व, बसुधैब कुटुम्बकम का दरवाजा खटखटाना पड़ता है।
शब्द?!
शब्द शोर कब बन जाते हैं?बकबास कब बन जाते हैं?गाली कब बन जाते हैं?शब्द व वाक्य बकबास व अश्लील कब हो जाते हैं?
हमारे स्थूल कब-'बरसात में रेंगती गिजाईयों के झुंड'-जैसा हो जाते हैं?निर्रथक कब हो जाते हैं?औचित्य हींन कब हो जाते हैं?अश्लिल व बोझ कब हो जाते हैं?
बात तो शब्द व वाक्य की हो रही थी।
सुबह सुबह जब आ आंख खुलती है, 'अल्लाह हो अकबर'- की आवाज सुनाई देती है।कहीं किधर से गीता के श्लोक, रामचरित मानस की चौपाइयों आदि की आवाज सुनाई देती है।
ये वाक्य स्वयं में क्या हैं?
इन वाक्यों के पीछे महानताओं का संसार छिपा है।
बस, नजरिया की बात है।नजर कहाँ पर है?
इसी तरह शब्द!
अल्लाह!(अल:)!!
इला:!(इलाहा)!!..........आदि आदि!
भाषा विज्ञान में जाने की जरूरत है।
सूक्ष्म में जाने की जरूरत है।
सूक्ष्म में जब हम उतरते हैं तो समाज के धर्मों की धारणाएं विदा हो जाती हैं। पंथों की सारी धारणाएं विदा हो जाती हैं।
शब्द व वाक्य के पीछे की दशा उजागर होने लगती है।
किसी ने ठीक कहा है, भीड़ का धर्म नहीं होता- उन्माद, सम्प्रदायिकता होती है। जिसके दिल में धर्म व दिव्यता फैलती है वह जमाने के धर्मों, धर्मस्थलों की नजर में भी अलग थलग हो जाता है।
ज्योतिष स्वयं क्या है?
ज्योति+ईष अर्थात ज्योति का प्रतीक/चिह्न!अर्थात संकेत! इसके पीछे की दशाएं या स्थितियां क्या है?
हमारे सभी स्वप्न, कल्पना, अहसास आदि सिर्फ बकबास ही होते।
शान्ति का जीवन में क्या महत्व है?
शांति या खामोशी हम स्वीकार नहीं सकते।
बेटा उछलते हुए कप लेकर आता है।लड़खड़ाता है, कप गिर जाता है.... कप गिर टूट जाता है। हम झल लाए, बिगड़े।चलो, ठीक हैं।
सिस्टम के लिए, व्यवस्था के लिए चिल्लाना भी जरूरी हो सकता है लेकिन किस स्तर पर?
नुकसान?!
हमारा कोई बड़ा भौतिक नुकसान हो जाता है, हम हतास उदास या हिंसा से भर जाते हैं।
शांति या खामोशी किस स्तर की? किस स्तर पर!!अपने सूक्ष्म व कारण को हम नजरअंदाज कर दें?
सूक्ष्म व कारण की शर्त पर स्थूल को,भौतिकता ओं को नजरअंदाज कर देना ही कुर्बानी है,समर्पण है, स्वीकार्यता है, शरणागति है?तटस्थता है? क्या हम ठीक सोंचते हैं?
आचार्य क्या है?योगी क्या है?योग क्या है?योगांग-यम क्या है?कोई इसका उत्तर देता है- मृत्यु।
क्या कहा?आचार्य मृत्यु है?योगी मृत्यु है?यम मृत्यु है?
हमारे वरिष्ठ व सरकारें शांति के लिए कितना समय व धन खर्च कर रही हैं?
शांति के लिए हम क्या कर रहे हैं?खामोशी के लिए हम क्या करते है?
अपरिग्रह!?
हम अपरिग्रह के खिलाफ खड़े हो गए हैं?
गेट पर ताले लगाने पड़ रहे हैं?हथियार रखने पड़ रहे हैं? धर्मस्थलों में ही ताले लगाने पड़ रहे हैं?
कहीं तो कुछ गलत हो रहा है?समाज व धर्म के ठेकेदार क्या कर रहे हैं? हूँ, अहंकार में तो न जाने क्या क्या कर जाते है लेकिन धर्म कहाँ है?
हमारी व्यवस्थाए,सरकारें, ठेकेदार किस स्तर के है?
अंगुलिमाल की गलियों से वे क्यों डरते हैं?
'एकता में अनेकता, अनेकता में एकता'- के भाव ,बसुधैब कुटुम्बकम के भाव ,विश्व बंधुत्व के भाव व आचरण से मानव प्रबन्धन जुदा है।विश्व का कल्याण हो? विश्व का कल्याण कैसे हो?
सिर्फ विश्व सरकार...
ज्योतिष!?
ज्योतिष की दशा क्या है?
हमारा वेद आत्मा है।
ज्योतिष=ज्योति+ई ष! ज्योति से जब संकेत मिलने शुरू हो जाएं।कब? सागर में कुम्भ कुंभ में सागर.....
आखिर कमलेश डी पटेल दाजी क्यों कहते है -महत्वपूर्ण ये नहीं है कि हम आस्तिक है या नास्तिक? महत्वपूर्ण है-हम महसूस क्या करते हैं?हमारा आचरण क्या है?
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