मंगलवार, 26 मई 2020

जो जीता वही चन्द्र गुप्त मौर्य:: अब एक नए युग प्रवर्तक की तलाश में ::अशोकबिन्दु

  इतिहास गबाह है कि असंतुष्टो,भूखों ने इतिहास रचा है।
आधुनिक लोकतांत्रिक इतिहास व राष्ट्र वाद की शुरुआत फ्रांस की क्रांति से होती है।इसके बाद हमें रूस की क्रांति, अमेरिका की क्रांति, इंग्लैंड की क्रांति आदि से प्रेरणा मिलती है। सन 1947 की आजादी को हम सिर्फ सत्ता हस्तांतरण मानते है न कि आजादी। ये वर्ष 2011 -2025 ई0 काफी महत्वपूर्ण है।विभिन्न क्रांतियों में क्रांति के जो कारण थे वे अब भी जिंदा है।सन1947 से पहले आजादी के संघर्ष के लिए जो कारण थे वे अब भी मौजूद हैं। पूंजीवाद, सत्तावाद, सामन्तवाद, बेरोजगारी, खाद्यमिलावट, नशा व्यापार, सामाजिक असमानता, आर्थिक असमानता, व्यवहारिक ,व्यवसायिक,चारित्रिक शिक्षा का अभाव,समाजसेवी नौकरशाही व नेताशाही का अभाव, जातिवाद व साम्प्रदायिकता विरोध का अभाव, नागरिक सम्मान व निरपेक्ष जनता को सुविधाओं को अभाव आदिआदि समस्याएं आम आदमी को माहौल नहीं दे पा रही हैं। सरकार परिवर्तन नहीं व्यवस्था परिवर्तन की आवश्यकता है।नेताओं की नहीं समाजसेवियों की आवश्यकता है। कर्मचारियों की नहीं राष्ट्र सेवियों की आवश्यकता है।

दो वर्षों से इलाहाबाद यूपी बोर्ड ने कक्षा 09 व 10 में सामाजिक विज्ञान का पाठ्यक्रम चेंज हुआ है।जो लोकतंत्र को प्रशिक्षित करने वाला सलेब्स है यदि कोई वास्तव में इसका ईमानदारी से अध्ययन कर अमल में लाए। कोर्स में चरवाहों, किसानों, जंगली जातियों, घुमकडू जातियों आदि का इतिहास पढ़ाए जाने के मतलब क्या है?वास्तव2 में हर क्रांति में इनका बड़ा योगदान रहा है।



ये लेख आज हम क्यों लिख रहे हैं?ये लेख हम आज जिस हेतु लिख रहे हैं वह की झलक अभी इसमें नहीं आ पा रही है।इसके लिए हमे अलग से एक लेख लिखना होगा। ये समय सरकारों को बार बार बदलते रहने के लिए नहीं है, व्यवस्था परिवर्तन के लिए है।जो स्थायित्व में है उन्हें काफी नुकसान भविष्य में उठाना होगा।जो अपने को बदलने के लिए तैयार रहेगा वही  भविष्य के लिए महत्वपूर्ण रहेगा। वर्तमान  व इन70 साल में राजनीतिक नायक भविष्य में खलनायक घटित होने वाले है कुछ अपवादों को छोड़ कर।वर्तमान में कोई दल, नेता व संग़ठन देश को समस्याओं से3 उबरने वाला नहीं है। जयगुरुदेव/सन्त तुलसी दास का तो मानना था-देश के हालात ऐसे हो जाएंगे जैसे कुत्ते के गले में हड्ड़ी।भीम राव अम्बेडकर ने भी कहा था- सामाजिक लोकतंत्र व आर्थिक लोकतंत्र के बिना राजनीतिक लोकतंत्र को खतरा बना रहेगा।


देश के सिस्टम में अब भी वह लोग हॉबी हैं जो जातिवाद, पूंजीवाद, सामन्तवाद, नशा व्यापार, खाद्यमिलावट, जन्म जात उच्चता, माफ़ियावाद ,पुरोहितबाद आदि को खत्म नहीं करना चाहता। श्रमवाद, श्रम कानून ,मानवाधिकार, सम्विधान गरिमा आदि नहीं चाहता। देश अभी तक अल्पसंख्यकों, मानवतावादियों ,सम्विधान प्रेमियों आदि के लिए कोई व्यवस्था नहीं कर पाया है।
प्राइवेट कर्मचारियों ,शिक्षकों के लिए कुछ भी न कर पाया है।
ईमानदार, कानून के आधार पर चलने वालों की सुरक्षा व भविष्य भी सुरक्षित नहीं कर पाया है।

हम अब मुख्य मकसद पर आते हैं।इस कोरोना संक्रमण के दौरान हमें काफी कुछ अवसर मिला है अपनी धारणाओं को स्थापित करने का व उनको मजबूत करने का। हमारा किसी दल,नेता से कल्याण नहीं होने वाला है।हां, नुकसान अवश्य हो सकता है।हम तो यही कहेंगे कि जो हमारा सहयोग नहीं कर सकते उनको हमसे चन्दा, दक्षिणा, वोट मांगने का क्या हक?हमसे उम्मीदे रखने का क्या हक?जो देश के हित की सिर्फ बात कर देश के सम्विधान की गरिमा में चल कर जातिवाद ,पूंजीवाद, सामन्तवाद,नशा व्यापार,खाद्यमिलावट आदि के खिलाफ मुहिम के लिए कार्य करना चाहते है वे क्या समझते है कि वर्तमान दलों, नेताओं को चुनने से देश का उद्धार हो जाएगा?


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें