रविवार, 3 मार्च 2013

होनहार गरीब,ग्रामीण युवा व भूमिहीन परिवार ....कबतक रखेँ सरकार पर आस?

एक ओर कुछ जातियां व मजहब सरकारीआरक्षण की उम्मीदोँ पर टिक अपनी अन्दरुनी
प्रतिभा जागरण हीनता,जातिहीनता
,सम्प्रदायकिताहीन,कूपमण्डूकता,मनमानी,स्वाबलम्वन हीनता,
आत्मनिर्भरताहीन,आत्मविश्वासहीन आदि मेँ ही बने रहना चाह भ्रष्टतंत्र का
हिस्सा बनना चाहते हैँ या बने हुए हैँ . वहीँ दुसरी ओर प्रतिभावान
,ईमानदार,कर्त्तव्यशील,ज्ञानवान ,सत्यान्वेषणी,जातिविरोधी
,पंथविरोधी,कानून व्यवस्था प्रेमी आदि को सरकारेँ अनुकूल वातावरण नहीँ दे
पा रही हैँ.साक्षर व शिक्षित भी अज्ञानी व लापरवाह बने हुए
हैँ.जातितंत्र,मजहबतंत्र,मनमानी,भ्रष्टाचार,कुप्रबंधन आदि हाबी है .गरीबी
बढ़ती जा रही है .बेरोजगारी बढ़ रही है .खाद्यमिलावट व नकलीदवाईयोँ का जोर
है . स्वास्थ्य व शिक्षा का स्तर सुधरने का नाम नहीँ ले रहा है .पर्यावरण
बिगाड़ने का कार्य तेजी से चल रहा है.सरकारेँ भूमिहीन मजदूरोँ ,गरीब
होनहारोँ ,ग्रामीण युवाओँ ,जातिवाद व सम्प्रदाय विरोधी युवकयुवतियोँ ,देश

पर्यावरण शुभचिंतकोँ आदि की सुरक्षा व विकास के लिए साहस नहीँ दिखा पा रही हैँ .



मैँ देख रहा हूँ कि देश मेँ होनहारोँ की कमी नहीँ है लेकिन उन होनहारोँ
के सामने अनेक समस्याएं बनी हुई हैँ .एक ओर बिगड़े माँ बाप की बिगड़ी
औलादेँ अपना उपद्रव फैलाए हुई हैँ वहीँ दूसरी ओर होनहार अपने माँ बाप या
अपने परिवार की ओर से ही समस्याग्रस्त हैँ.उत्तरखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय
के प्रोफेसर गोविन्द सिँह कहते हैँ कि आईआईटी और आईआईएम की हालिया फीस
बढ़ोत्तरी के साथ ये श्रेष्ठ संस्थान मध्यम वर्ग के मेधावी छात्रोँ की
पहुँच से और दूर चले गए हैँ.मैँ शिक्षा जगत से जुड़ा हूँ .देखता रहता हूँ
कि गरीब व मध्यम वर्ग के होनहार कैसे हालातोँ की मार सह अपनी प्रतिभा से
समझौता कर लेते हैँ .डाक्टर ,इंजिनियर आदि का सपना देखने वाले इण्टर
क्लास मेँ आते आते ट्यूशन पढ़ाने के कार्य से भी जुड़ जाते हैँ .ऐसा होना
चाहिए जहाँ होनहार गरीब भी आगे बढ़ सकेँ .


ग्रामीण बालको युवकोँ को ध्यान मेँ रख कर सरकार अपने फैसले ईमानदारी
से नहीँ लेती .पंकज चतुर्वेदी राष्ट्रीय सहारा मेँ लिखते हैँ कि गांवोँ
मेँ आज ग्रेजुएट या पोस्ट ग्रेजुएट डिग्रीधारी युवकोँ के बजाए मध्यम स्तर
तक पढ़े लिखे और कृषि तकनीक मेँ पारंगत श्रमशील युवाओँ की भारी जरुरत है
.वहां खेती पशुपालन ग्रामीण प्रबंधन के प्रायोगिक प्रशिक्षण संस्थान
खोलना उपयोगी होगा .


देश मेँ लाखोँ दलित ,गरीब आदि ऐसे हैँ जो भूमिहीन हैँ .गाँव मेँ अब भी
दबंगोँ की ही चलती है .कमजोर ,सीधे ,अकेले आदि व्यक्ति ,विधवाओँ आदि की
पोजीशन भयानक बनी हुई है.अनेक भूमियां ऐसी है जिसका लाभ उसके मालिक न उठा
कर दबंग उठा रहे हैँ.


आखिर कब तक सिर्फ कागजी आँकड़ोँ तक सरकारी तंत्र सक्रिय रहेगा?देश मेँ
लाखोँ लोग हैँ जिन्हेँ पट्टे पर भूमि कागजी आँकड़ोँ के आधार पर दे दी गयी
है लेकिन व्यवहारिक स्तर पर नहीँ .जनजातिय व वनबासियोँ की भूमियोँ पर भी
दबंग हावी हैँ .


क्या क्या बताऊँ ? देश हर ओर से बीमार चल रहा है .स्वास्थ्य विभाग ही
जब बीमार है ,शिक्षा जगत ही जब सत्यान्वेण व ईमानदार शिक्षकोँ से दूर
होता जा रहा है ,पुलिस तंत्र ही गैरकानूनी कार्य मेँ जब लिप्त है आदि आदि
.तो क्या कहूँ ?कब तक कहूँ ?

--
संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>

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